Delhi: दिल्ली HC की टिप्पणी- बिजली आवश्यक सेवा, बिना ठोस वजह आपूर्ति से वंचित नहीं किया जा सकता
Delhi Electricity: दिल्ली हाईकोर्ट की यह टिप्पणी दो वरिष्ठ नागरिकों की उस याचिका पर आई, जिसमें उन्होंने बीएसईएस-वाईपीएल को उस परिसर में नया बिजली मीटर लगाने का निर्देश देने की मांग की थी.
Delhi Electricity: दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने कहा है कि बिजली एक आवश्यक सेवा है. हाईकोर्ट ने बिना ठोस और वैध कारण के किसी व्यक्ति को इससे वंचित नहीं किया जा सकता. हाईकोर्ट ने कहा है कि जब किसी संपत्ति के स्वामित्व पर विवाद होता है, तब भी अधिकारी मालिक होने का दावा करने वालों से अनापत्ति प्रमाण पत्र (NOC) लाने पर जोर देकर कानूनी कब्जे वाले व्यक्ति को बिजली से वंचित नहीं कर सकते हैं.
जस्टिस मनोज कुमार ओहरी ने 14 नवंबर को दिए गए एक आदेश में कहा, "इसमें कोई दो राय नहीं है कि बिजली एक आवश्यक सेवा है, जिससे किसी व्यक्ति को बिना ठोस, वैध कारण के वंचित नहीं किया जा सकता है. यह पूर्ण रूप से स्थापित है कि जिस संपत्ति पर बिजली कनेक्शन मांगा गया है, उस संपत्ति के स्वामित्व के रूप में विवाद जारी रहने के बावजूद संबंधित अधिकारी कानूनी तौर पर कब्जा वाले व्यक्ति को मालिक होने का दावा करने वाले व्यक्ति से एनओसी लाने को नहीं कह सकता."
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एनओसी मांग रहे थे बीएसईएस-वाईपीएल
हाईकोर्ट की यह टिप्पणी दो वरिष्ठ नागरिकों की उस याचिका पर आई थी, जिसमें उन्होंने बीएसईएस-वाईपीएल को उस परिसर में नया बिजली मीटर लगाने का निर्देश देने की मांग की थी, जिसमें वे रह रहे थे. उनकी शिकायत थी कि मीटर लगाने के लिए बीएसईएस-वाईपीएल याचिकाकर्ताओं में से एक के भाइयों से एनओसी मांग रहा था, जबकि वे संपत्ति बंटवारे को लेकर मुकदमे में उलझे थे.
'किरायेदार को भी बिजली देने से नहीं किया जा सकता मना'
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि बिजली एक बुनियादी सुविधा है और मकान मालिक की ओर से अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करने में विफल रहने या इनकार करने के आधार पर किरायेदार को भी बिजली देने से मना नहीं किया जा सकता है और प्राधिकरण को केवल यह जांचना आवश्यक होता है कि क्या आवेदनकर्ता विवादित परिसर में रहता है या नहीं. हाईकोर्ट ने प्राधिकरण से एनओसी पर जोर दिए बिना आवेदन को दो सप्ताह के भीतर संसाधित करने के लिए कहा और स्पष्ट किया कि इस आदेश को विवादित परिसर के संबंध में याचिकाकर्ताओं के किसी भी अधिकार के तौर पर नहीं समझा जाएगा.