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Delhi: 'कमाने की क्षमता के बावजूद जीवनसाथी पर बोझ नहीं डाल सकते पति या पत्नी', HC की टिप्पणी

Delhi High Court Order: दिल्ली की एक अदालत ने पति से अलग रह रही महिला द्वारा गुजारा भत्ता मांगे जाने से संबंधित याचिका पर महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है. कोर्ट की टिप्पणी बेहद अहम मानी जा रही है.

Delhi News: दिल्ली हाई कोर्ट  (Delhi High Court) ने कहा है कि कमाने की योग्यता रखने वाले पति या पत्नी को बेरोजगार (Unemployed) रहने और खर्चों का बोझ अपने जीवनसाथी पर डालने की अनुमति नहीं दी जा सकती. हाई कोर्ट ने कहा है कि एक पति या पत्नी जिसके पास कमाने की उचित क्षमता है, लेकिन पर्याप्त स्पष्टीकरण के बिना वह बेरोजगार रहना चाहते है तो उन्हें दूसरे साथी पर भरण-पोषण (Maintenance) के खर्चों को पूरा करने की एकतरफा जिम्मेदारी डालने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.

हाई कोर्ट ने एक व्यक्ति द्वारा अलग रह रही अपनी पत्नी को हिंदू विवाह अधिनियम (एचएमए) के तहत दिए जाने वाले मासिक भरण-पोषण की राशि को 30,000 रुपये से घटाकर 21,000 रुपये करते हुए यह टिप्पणी की. अदालत ने कहा कि महिला ने दावा किया है कि उसके पास आय का कोई स्रोत नहीं है, लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक होने के कारण उसकी शैक्षिक पृष्ठभूमि उचित है.

एकतरफा नहीं डाल सकते जिम्मेदारी- कोर्ट
जस्टिस वी. कामेश्वर राव और जस्टिस अनूप कुमार मेंदीरत्ता की एक पीठ ने कहा, ‘‘ऐसे पति या पत्नी जिनके पास कमाने की उचित क्षमता है, लेकिन जो बिना किसी पर्याप्त स्पष्टीकरण या रोजगार हासिल करने के अपने ईमानदार प्रयासों का संकेत दिए बिना बेरोजगार रहना पसंद करते हैं, उन्हें अपने खर्चों को पूरा करने की एकतरफा जिम्मेदारी दूसरे पक्ष पर डालने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए.’’

निचली अदालत ने सुनाया था यह आदेश
पीठ ने कहा कि एचएमए के तहत भरण-पोषण का प्रावधान लैंगिक रूप से तटस्थ है और अधिनियम की धाराओं 24 और 25 के तहत दोनों पक्षों के बीच विवाह अधिकारों, देनदारियों और दायित्वों का प्रावधान किया गया है. उच्च न्यायालय उस व्यक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें निचली अदालत के आदेश को चुनौती दी गई थी. निचली अदालत ने व्यक्ति को अपनी अलग रह रही पत्नी को 30,000 रुपये मासिक गुजारा भत्ता और 51,000 रुपये मुकदमे का खर्च देने का निर्देश दिया था.

47 हजार कमाने वाले पति को देना पड़ रहा था 30 हजार भत्ता
पीठ ने कहा कि पहले निचली अदालत ने उनसे महिला को 21,000 रुपये मासिक भुगतान करने को कहा था, लेकिन बाद में परिस्थितियों में कोई बदलाव किए बिना इसे बढ़ाकर 30,000 रुपये कर दिया गया. व्यक्ति ने कहा कि उसे 47,000 रुपये का वेतन मिल रहा है और उसे अपने परिवार का भरण-पोषण करना है और उसके लिए प्रति माह 30,000 रुपये का भुगतान करना संभव नहीं होगा. व्यक्ति ने दावा किया कि महिला यहां एक अस्पताल में काम करती थी और 25,000 रुपये मासिक कमाती थी. महिला ने हालांकि कहा कि वह केवल एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में काम कर रही थी और अस्पताल से कोई वेतन नहीं ले रही थी. इन दोनों ने 2018 में शादी की थी लेकिन उनके बीच मतभेद के कारण महिला जुलाई 2020 में अपने माता-पिता के घर लौट आई थी.

य़े भी पढ़ें- दिल्ली के मुख्य सचिव के खिलाफ कथित भ्रष्टाचार मामले में आतिशी ने भेजी CM केजरीवाल को रिपोर्ट, जानें- पूरा मामला

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