Deepfake Technology: देश में डीपफेक तकनीक के बढ़ते खतरे को देखते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि अब इस गंभीर मसले पर ठोस कदम उठाने का समय आ गया है. कोर्ट ने सरकार द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति को निर्देश दिया कि वह अगली सुनवाई से पहले अपनी रिपोर्ट दाखिल करे. दिल्ली हाई कोर्ट ने तीन महीने में सरकार द्वारा गठित विशेषज्ञ समिति को अपनी रिपोर्ट दाख़िल करने का निर्देश दिया है.


कोर्ट ने कहा कि डीपफेक तकनीक के गलत इस्तेमाल से समाज में अफरा-तफरी मचाई जा रही है, जिससे लोकतंत्र और सार्वजनिक व्यवस्था को गंभीर खतरा है. चीफ जस्टिस डी.के. उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की बेंच ने मामले की सुनवाई करते हुए केंद्र सरकार से जवाब तलब किया.


अदालत ने कहा कि सरकार की ओर से गठित समिति याचिकाकर्ताओं की चिंता को नजरअंदाज नहीं कर सकती. कोर्ट ने साफ किया हम अगली तारीख तक समिति से पूरी रिपोर्ट की उम्मीद करते हैं. समय पर कार्रवाई न होने पर कोर्ट को कड़े आदेश पारित करने पड़ सकते हैं. 


क्या है पूरा विवाद ?
दिल्ली कोर्ट में तीन अलग-अलग जनहित याचिकाएं दाखिल हुई हैं, जिनमें डीपफेक तकनीक के गैर-नियंत्रित इस्तेमाल पर रोक लगाने की मांग की तत्काल मांग की गई है, याचिकाकर्ता का कहना है कि इस तकनीक के जरिए फर्जी वीडियो, ऑडियो और फोटो बनाए जा रहे हैं, जिनसे जनता को गुमराह किया जा रहा है और समाज में अव्यवस्था फैल रही है.


दिल्ली हाई कोर्ट में दाख़िल याचिका में जताई गई चिंता
दिल्ली हाईकोर्ट में दाखिल याचिका में याचिकाकर्ता ने मांग की कि डीपफेक तकनीक पर नियंत्रण के लिए सख्त कानून बनाए जाएं. कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा कि डीपफेक तकनीक का बेकाबू इस्तेमाल लोकतंत्र, समाज और नागरिकों की निजता के लिए गंभीर खतरा बन चुका है. इससे दुष्प्रचार फैलाकर लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को कमजोर किया जा रहा है. कोर्ट में दाखिल अर्जी में यह भी मांग की कि उन एप्स और सॉफ्टवेयर को ब्लॉक किया जाए, जो आम लोगों को भी डीपफेक बनाने की सुविधा दे रहे हैं.


वकील चैतन्य रोहिल्ला की याचिका में चेतावनी
वकील चैतन्य रोहिल्ला ने अपनी याचिका में कहा कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और डीपफेक तकनीक के दुरुपयोग पर अगर समय रहते रोक नहीं लगी तो देश को बड़े संकट का सामना करना पड़ सकता है. उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार को एक व्यापक नीति बनानी चाहिए, जिसमें डीपफेक कंटेंट बनाने, साझा करने और प्रसारित करने पर सख्त सजा का प्रावधान हो.


केंद्र सरकार का पक्ष और गठित समिति की स्थिति
केंद्र सरकार की ओर से पेश वकील ने बताया कि इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) ने 20 नवंबर 2024 को एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया था. अब तक इस समिति की दो बैठकें हो चुकी हैं. सरकार का कहना है कि यह एक तकनीकी रूप से जटिल मुद्दा है, जिस पर गहराई से अध्ययन जरूरी है. इसलिए सरकार ने अदालत से तीन महीने का अतिरिक्त समय मांगा है.


दिल्ली हाई कोर्ट ने जताई असंतुष्टि, दिखाया सख्त रुख
हालांकि दिल्ली हाईकोर्ट  ने केंद्र सरकार के इस अनुरोध पर असंतोष जताते हुए कहा कि इस गंभीर विषय में देरी करना उचित नहीं है. कोर्ट ने समिति को याचिकाकर्ताओं द्वारा सुझाए गए उपायों पर भी विचार करने का निर्देश दिया और कहा कि अगली सुनवाई 21 जुलाई से पहले रिपोर्ट दाखिल की जाए.


क्या है डीपफेक तकनीक ?
डीपफेक एक ऐसी तकनीक है, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से किसी भी व्यक्ति की आवाज और चेहरे को हूबहू नकल कर नकली वीडियो और ऑडियो तैयार करती है. इसकी मदद से फर्जी बयान, वीडियो क्लिप और फोटो बनाकर किसी की छवि खराब करना बेहद आसान हो गया है.


क्यों खतरनाक है डीपफेक ?
हाल के दिनों में कई नामी हस्तियों के डीपफेक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुए हैं. इससे व्यक्ति विशेष की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने के साथ-साथ समाज में भ्रम और अविश्वास का माहौल बनता है. चुनावी प्रक्रिया, राष्ट्रीय सुरक्षा और व्यक्तिगत गोपनीयता पर भी इसका गहरा प्रभाव पड़ सकता है.


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