LG Saxena vs CM Kejriwal: दिल्ली (Delhi) के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना (LG VK Saxena) और मुख्यमंत्री अरंविद केजरीवाल (CM Arvind Kejriwal) के बीच तनातनी सक्सेना के एलजी नियुक्त होने के शुरुआती दिनों से ही देखी जा रही है. दोनों के बीच पावर शेयरिंग को लेकर विवाद कम होने के बजाय बढ़ती ही जा रही है. पिछले कुछ माह के दौरान देश की राजधानी के संवैधानिक प्रमुख उपराज्यपाल और सीएम केजरीवाल के बीच एक के बाद एक कई विवाद सामने आये हैं. ये विवाद न केवल देश में बल्कि दुनिया भर में चर्चा का विषय बने. अब तो दोनों के बीच का विवाद चरम पर पहुंच गया है. 


यहां पर इस बात का भी जिक्र कर दें कि सीएम अरविंद केजरीवाल का एलजी से विवाद कोई नया मसला नहीं है. वो तीन ​बार दिल्ली का सीएम बन चुके हैं. हर बार उनका एलजी से विवाद होता रहा. चाहे बात नजीब जंग की हो या अनिल बैजल की, या फिर अब वीके सक्सेना की. हर एलजी के साथ सीएम केजरीवाल का विवाद चरम पर रहा है. 


एलजी ने सीएम को सिंगापुर जाने से रोका


विजय कुमार सक्सेना को 26 मई, 2022 को दिल्ली का उपरज्यपाल नियुक्त किया गया था. सीएम केजरीवाल ने 1 अगस्त, 2022 को सिंगापुर के समिट में दिल्ली का विकास मॉडल प्रस्तुत करने के लिए वहां जाने की इजाजत मांगी थी, लेकिन एलजी ने यह कहकर मंजूरी देने से इनकार कर दिया था कि इस आयोजन में कहीं से भी मुख्यमंत्री का जाना आवश्यक नहीं है. एलजी के इस रुख के खिलाफ आम आदमी पार्टी ने जमकर हंगामा मचाया थाद्ध 


आबकारी घोटाला विवाद 
दिल्ली उपराज्यपाल द्वारा केजरीवाल सरकार की नई आबकारी नीति को एलजी ने यह कहकर रिजेक्ट कर दिया कि यह पूरी तरीके से संवैधानिक नियमों का उल्लंघन करने वाली नीति है. इस मामले गंभीर मानते हुए एलजी ने आबकारी घोटाले की सीबीआई से जांच कराने की केंद्र से सिफारिश कर दी. इस पर आम आदमी पार्टी के नेताओं से आबकारी नीति मामले को लेकर पूछताछ भी की. सीएम मनीष सिसोदिया के ठिकाने पर छापे भी मारे गए. सीबीआई ने उनसे पूछताछ भी है. य​ह विवाद भी काफी सुर्खियों में रहा. हाल ही में सीबीआई डिप्टी सीएम सिसोदिया के कार्यालय से कुछ दस्तावेज हासिल करने के लिए पहुंची थी. 


एमसीडी मेयर चुनाव  
दिल्ली नगर निगम चुनाव में तीन प्रमुख दल आमने-सामने रहे, लेकिन प्रचार के दौरान आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी आमने-सामने सियासी बयानबाजी ज्यादा देखने को मिली चुनावी प्रचार के दौरान भी उपराज्यपाल द्वारा पार्टी प्रचार में अनावश्यक रुपए खर्च को लेकर सख्त टिप्पणी की गई तो इसे लेकर जमकर बयानबाजी हुई. आप नेताओं ने एलजी पर बीजेपी के इशारे पर काम करने का आरोप लगाया और चुनावी माहौल में बीजेपी को मदद करने की बात कही थी. चुनाव परिणाम आने के बाद भी यह मसला थमा नहीं और मेयर, डिप्टी मेयर और स्टैंडिंग कमेटी के सदस्यों का चुनाव अभी तक नहीं हो सकता है. अब तीनों पदों पर चुनाव 24 जनवरी को प्रस्तावित है. 


एल्डरमैन पार्षदों के मनोनयन पर बवाल 
एमसीडी चुनाव में 15 साल बाद आम आदमी पार्टी ने 250 में से 134 सीटों पर जीत दर्ज कर बीजेपी को निगम की सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया. 6 जनवरी को सदन की पहली बैठक में मेयर, उप मेयर व स्थाई समिति के सदस्यों का चुनाव तय किया गया. इससे पहले संवैधानिक प्रक्रिया व अधिकारों के तहत उपराज्यपाल ने 10 पार्षदों को मनोनीत कर दिया जो बीजेपी से जुड़े थे. इसके बाद दिल्ली सीएम, डिप्टी सीएम सहित आम आदमी पार्टी के विधायकों व नेताओं ने एलजी पर बीजेपी को मदद करने का आरोप लगाया और कहा कि उपराज्यपाल द्वारा संवैधानिक अधिकारों का दुरुपयोग किया जा रहा है. हालांकि, इसके बाद 6 जनवरी को सबसे पहले मनोनीत पार्षदों के शपथ शुरू होते ही सदन में जमकर हंगामा हुआ. मारपीट तक की नौबत आ गई जिसने भारतीय लोकतंत्र की मर्यादा को तार-तार कर दिया.


टीचर्स को विदेश भेजने पर भी एलजी-सीएम आमने-सामने


सीएम अरविंद केजरीवाल और डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया शीतकालीन सत्र के दौरान बड़ा मुद्दा उठाया कि उनके द्वारा प्रस्तावित शिक्षकों को फिनलैंड में ट्रेनिंग भेजने के आग्रह को एलजी द्वारा स्वीकार नहीं किया गया है. इसके उलट, एलजी द्वारा दिल्ली सीएम को भेजे गए पत्र में यह स्पष्ट किया गया है कि कहीं से भी उन्होंने विदेश में ट्रेनिंग के लिए शिक्षकों को भेजने के प्रस्ताव को अस्वीकार नहीं किया है. कुछ प्रावधान और नियमों के तहत मंत्रालय से केवल सवाल पूछे गए हैं. इस मसले को लेकर सीएम केजरीवाल ने एलजी के खिलाफ विधानसभा में अमर्यादित भाषा का भी इस्तेमाल किया. इतना ही नहीं, आप के मार्च में सीएम शामिल हुए और राजनिवास उनसे मिलने पहुंच गए. उनके रवैये को देखते हुए एलजी ने मिलने से इनकार कर दिया था. अब यह मामला दोनों के बीच लेटरबाजी की हद तक पहुंच गया है. 


बता दें कि दिल्ली केंद्र शासित प्रदेश के साथ देश की राजधानी भी है. संवैधानिक तौर पर उपराज्यपाल यहां के प्रमुख हैं. एलजी को केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त जाता है. जबकि सीएम का चयन प्रत्यक्ष चुनाव के जरिए होता है. ऐसे में केंद्र और प्रदेश में सरकार अलग-अलग होने से राजधानी की व्यवस्थाओं का सही तरीके से संचालित करना बड़ी चुनौतीपूर्ण विषय हो गया है. इसका नतीजा यह है कि दिल्ली का विकास थम गया है और कई परियोजनाएं अधर में लटकी हुई हैं. 


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