Delhi News: दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना ने जीएनसीटीडी नियम 1993 के व्यापार के लेनदेन के नियम 19 (5) के तहत विशेष अधिकार का प्रयोग करते हुए विकास से जुड़ीं 11 परियोजनाओं पर संबंधित एजेंसियों को काम शुरू करने को कहा है. अभी तक दिल्ली सरकार की स्वीकृति न मिलने से इन परियोजनाओं पर वर्षों से काम रुकी हुईं थी.


खास बात यह है कि एलजी ने इन परियोजनाओं की फाइलें दिल्ली सरकार से भेजने को कहा था. वहां से फाइल मिलते ही उन्होंने काम शुरू करने की मंजूरी दे दी है. एलजी के इस रुख पर दिल्ली सरकार की ओर से तत्काल कोई प्रतिक्रिया अभी तक नहीं आई है. बताया गया है कि इन परियोजनाओं पर काम शुरू करने की मंजूरी देने का मकसद दिल्ली के बुनियादी ढांचे को बदलना है-
 
इन पर काम होने से दिल्ली का होगा कायाकल्प 
एलजी आफिस ने जिन परियोजाओं को मंजूरी दी है उनमें 2019 से लंबित श्रीनिवासपुरी में जीपीआरए कॉलोनी का पुनर्विकास, अगस्त 2021 से लंबित जीपीआरए सरोजिनी नगर और सितंबर 2021 से लंबित एनएचएआई द्वारा अर्बन एक्सटेंशन रोड (यूईआर-द्वितीय) सहित अन्य परियोजनाएं शामिल हैं. एलजी आफिस की ओर से बताया गया है कि इन परियोजनाएं पर काम को मंजूरी मिलने से दिल्ली में विकास को गति मिलेगी. इससे दिल्ली की तस्वीर बदल जाएगी ​बल्कि देश की राजधानी का कायाकल्प भी होगा.


जीएनसीटीडी एक्ट देता है एलजी को ऐसा करने का अधिकार
इससे पहले नौ दिसंबर को एलजी वीके सक्सेना ने जीएनसीटीडी नियमावली (टीओबीआर), 1993 के व्यापार के लेनदेन के नियम 19(5) के संदर्भ में फाइलों को वापस बुलाने की अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए केजरीवाल सरकार को आखिरकार दिल्ली के लिए महत्वपूर्ण ढांचागत बदलाव की 11 फाइलें भेजने के लिए कहा था. दरअसल, एलजी टीओबीआर नियम 19(5)  एलजी को जनहित में मंत्रियों और मुख्यमंत्री के पास लंबित फाइलों को अपने पास मंगवाकर उस पर काम शुरू कराने का अधिकार देता है.


3 साल से धूल चाट रही थीं ये फाइलें


एलजी सचिवालय की ओर से कहा गया है कि जो फाइलें बिना किसी कारण के वर्षों और महीनों से लंबित थीं, उसे एलजी ने अपने मंगवाया था। एलजी के इस रुख के बाद पर्यावरण मंत्री और मुख्यमंत्री द्वारा फाइल अपने हस्तक्षर के साथ भेजे गए थ अनुमोदित और हस्ताक्षरित किया गया और एलजी को अनुमोदन के लिए भेजा गया। वृक्षों के स्थानान्तरण और वृक्षारोपण की मंजूरी से संबंधित ये फाइलें पर्यावरण विभाग और मंत्री के पास एक से तीन साल से अधिक समय से रुकी हुई थीं। 


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