Delhi News: केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) ने अपने पूरक आरोपपत्र में आरोप लगाया है कि दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के प्रशिक्षुओं से अनुकूल राय हासिल करके आबकारी नीति के समर्थन में जनता की राय गढ़ी.
जांच एजेंसी ने 25 अप्रैल को विशेष सीबीआई अदालत के समक्ष दायर आरोपपत्र में आरोप लगाया है कि दिल्ली सरकार ने आबकारी नीति में आमूल-चूल परिवर्तन के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था, जिसने अपनी सिफारिशें दी थीं. आरोपपत्र में कहा गया है कि सिसोदिया सिफारिशों से नाखुश थे, इसलिए उन्होंने तत्कालीन आबकारी आयुक्त राहुल सिंह को धवन समिति की रिपोर्ट वेबसाइट पर डालकर जनता की राय लेने के लिए कहा.
मामले में सिसोदिया और अन्य आरोपियों के खिलाफ दायर पूरक आरोपपत्र में, केंद्रीय एजेंसी ने आरोप लगाया है कि वह अपने 'पूर्व-कल्पित' विचारों के अनुसार आबकारी नीति में प्रावधानों को 'बेईमानी और धोखे से' शामिल करने के लिए 'जनता की गढ़ी राय' के माध्यम से आधार तैयार करना चाहते थे.
आरोपपत्र में आरोप लगाया गया है कि सिसोदिया ने ‘‘दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष जाकिर खान के माध्यम से कुछ गढ़े हुए ईमेल प्राप्त किये, जो दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के प्रशिक्षुओं द्वारा आबकारी विभाग की समर्पित ईमेल आईडी पर भेजे गए थे ... जिसमें एक प्रति आरोपी मनीष सिसोदिया को संलग्न की गई थी.’’
इसमें आरोप लगाया गया है कि ईमेल में दिए गए सुझाव - ज़ोन की नीलामी के माध्यम से खुदरा शराब लाइसेंस का आवंटन, आबकारी शुल्क और वैट में कमी के साथ-साथ लाइसेंस शुल्क में वृद्धि और शराब की दुकानों की संख्या में वृद्धि- खान को सिसोदिया द्वारा सौंपे गए हस्तलिखित नोट में थे, जिसमें निर्देश दिया गया था कि 'उक्त तर्ज' पर जनता की राय प्राप्त करने के लिए दिए गए ईमेल आईडी पर विभिन्न ईमेल प्राप्त किये जाएं.
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पूर्व-कल्पित विचारों के साथ काम कर रहे थे मनीष सिसोदिया
इसमें आरोप लगाया गया है, ‘‘यह साबित करता है कि आरोपी मनीष सिसोदिया आबकारी नीति तैयार करने के लिए पूर्व-कल्पित विचारों के साथ काम कर रहे थे और उसी के समर्थन में जनता की गढ़ी हुई राय प्राप्त कर रहे थे.’’
एजेंसी ने सरकारी अधिकारियों की गवाही पर भरोसा किया है, जिसमें आरोपी पूर्व आबकारी आयुक्त अरवा गोपी कृष्णा शामिल हैं, जो प्राथमिकी में नामजद हैं. इनके खिलाफ सीबीआई को आपराधिक कदाचार का कोई भी सबूत नहीं मिला और उसे केवल गवाह के रूप में उद्धृत किया.
एजेंसी ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज किए गए उनके बयान सिसोदिया और अन्य आरोपियों के खिलाफ आरोपों को साबित करने के लिए 'प्रासंगिक' हैं.
सीबीआई ने आरोप लगाया है कि सिसोदिया ने दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के प्रशिक्षुओं द्वारा भेजे गए गढ़े हुए ईमेल की प्रतियां अपने सचिव सी अरविंद के माध्यम से प्राप्त कीं.
उन्होंने आबकारी आयुक्त राहुल सिंह को निर्देशित किया कि उनके ईमेल पर प्राप्त कई राय विभाग द्वारा तैयार सारांश में शामिल नहीं की गई हैं और उन्हें भी शामिल करने का निर्देश दिया.
आरोपपत्र में आरोप लगाया गया है, ‘‘इस तरह, मनीष सिसोदिया आबकारी नीति में अपने पूर्व कल्पित प्रावधानों को बेईमानी और धोखाधड़ी से शामिल करने के लिए आधार तैयार करने के वास्ते इन गढ़े हुए जनता की राय के माध्यम से आधार तैयार करना चाहते थे.’’
आरोपपत्र के अनुसार, इसके बाद सिसोदिया ने सिंह को 28 जनवरी, 2021 को हुई मंत्रिपरिषद की बैठक के समक्ष रखे जाने वाले सारांश की तर्ज पर एक मसौदा कैबिनेट नोट तैयार करने का निर्देश दिया. आरोपपत्र के अनुसार, सिसोदिया ने सचिव के माध्यम से सिंह को कैबिनेट नोट का मसौदा व्हाट्सऐप पर उपलब्ध कराया.
सिसोदिया के निर्देश पर तैयार मसौदा नोट में, आबकारी विभाग ने तीन कानूनी दिग्गजों - पूर्व प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) रंजन गोगोई और के जी बालाकृष्णन और पूर्व अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी - की कानूनी राय को भी शामिल किया, जिन्होंने यथास्थिति का सुझाव दिया.
ये राय दिल्ली एल्कोबेव रिटेलर्स एसोसिएशन द्वारा प्राप्त की गई थी और जनता की राय के हिस्से के रूप में प्रस्तुत की गई थी.
कैबिनेट नोट 28 जनवरी, 2021 को मंत्रिपरिषद् की बैठक में विचार के लिए नहीं आया, लेकिन सिसोदिया ने कानूनी विशेषज्ञों के विचार को शामिल करने के लिए सिंह पर अपना गुस्सा व्यक्त किया.
डिजिटल फॉरेंसिक साक्ष्य का इस्तेमाल कि
सीबीआई ने आरोप लगाया है कि उक्त फ़ाइल का 'पता नहीं चल पाया है.’’ सीबीआई ने आरोप लगाया है कि सिसोदिया ने नोट की फ़ाइल को 'नष्ट/गायब कर दिया', क्योंकि यह उनकी मंशा के अनुरूप नहीं था.
एजेंसी ने प्रक्रिया में शामिल सरकारी अधिकारियों के फोन से प्राप्त डिजिटल फॉरेंसिक साक्ष्य का इस्तेमाल किया.
सीबीआई ने आरोप लगाया कि बाद में, सिसोदिया ने कानूनी राय को रोकते हुए एक नया नोट तैयार किया और इसे 5 फरवरी, 2021 को कैबिनेट के समक्ष रखा, जिसमें आबकारी नीति तैयार करने के लिए उनके नेतृत्व में मंत्रियों का एक समूह बनाने का निर्णय लिया गया.
यह नीति नवंबर 2021 में अस्तित्व में आई थी, लेकिन बाद में भ्रष्टाचार के आरोपों के बाद इसे रद्द कर दिया गया था.
यह आरोप लगाया गया है कि नीति कुछ डीलर का पक्ष लेती है, जिन्होंने इसके लिए कथित तौर पर रिश्वत दी थी, इस आरोप का आम आदमी पार्टी (आप) ने जोरदार खंडन किया है.