Delhi Municipal Corporation Debt: दिल्ली नगर निगम चुनाव (MCD Election) के लिए बीजेपी (BJP), आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) और कांग्रेस (Congress) की ओर से घोषणा पत्र जारी कर दिया गया है. इसमें किसी भी पार्टी ने 15,000 करोड़ रुपये घाटे में चल रहे दिल्ली नगर निगम को कर्ज से उबारने का कोई भी प्लान या एजेंडा जनता के सामने नहीं रखा है. दिल्ली नगर निगम के कर्मचारियों को कई महीनों तक सैलरी नहीं मिल पाने खबरें अक्सर चर्चा में रहती ही हैं. इसके अलावा पहले भी विभागों की ओर से जारी सूची के आधार पर यह रिपोर्ट आई कि दिल्ली नगर निगम पर 15,000 करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज है.

 

इस कर्ज को कम करने के लिए अभी तक किसी भी पार्टी की ओर से कोई एजेंडा दिल्ली की जनता के सामने नहीं रखा गया है. दिल्ली नगर निगम पर लदा हजारों करोड़ रुपये का कर्ज एक बड़ी रुकावट पैदा कर सकता है. इसके समाधान के लिए एबीपी लाइव ने अर्थशास्त्री आकाश जिंदल से खास बातचीत की. उन्होंने सुझाव देते हुए कहा कि दिल्ली के लोगों पर टैक्स का भारी भरकम बोझ न हो, ऐसा कुछ उपाय निगम में बैठी अगली सरकार की ओर से किया जाना चाहिए. दिल्ली के व्यवसायिक जगहों को रेंट पर देकर या एडवर्टाइजमेंट के माध्यम से अन्य ऐसे उपाय, जिनका दिल्ली की जनता पर बोझ न पड़े, उसको अपनाकर दिल्ली नगर निगम के बजट को सामान्य किया जा सकता है. निश्चित ही ऐसे आवश्यक कदम आने वाले समय में उठाने चाहिए.

 


 

'दिल्ली नगर निगम सरकार में रहने वाली पार्टी का 1 साल में हो मूल्यांकन'

राज्य और दिल्ली नगर निगम दोनों में अलग-अलग दलों का शासन है और दोनों में विरोधाभास है. इस स्थिति में दिल्ली नगर निगम की हालत को सुधारना बड़ी चुनौती है. एबीपी लाइव के इन सवालों का जवाब देते हुए आकाश जिंदल ने कहा, "दिल्ली की बुनियादी सुविधाओं को व्यवस्थित करने की जिम्मेदारी एमसीडी की होती है. किसी भी पार्टी को सही गलत आंकने के लिए जरूरी है कि हर साल दिल्ली नगर निगम में बैठी हुई पार्टी का मूल्यांकन हो कि उन्होंने 1 साल में क्या कुछ किया है. राजधानी का कितना विकास किया है. इस एमसीडी चुनाव में आरोप-प्रत्यारोप को एक तरफ रखते हुए दिल्ली को बेहतर बनाने वाले दल को ही चुनना होगा.

 

राजधानी में बढ़ती जनसंख्या एक चुनौती

दिल्ली में बढ़ती जनसंख्या की वजह से पानी की किल्लत पर तो हमने कई रिपोर्ट देखे होंगे, लेकिन अन्य बुनियादी सुविधाओं का अभाव भी अब इससे पीछे नहीं. राजधानी में अन्य राज्यों से आने वाले लोगों की संख्या दिनों दिन बढ़ती जा रही है, जिसकी वजह से प्राकृतिक संसाधन के अलावा सड़क, पानी, पार्किंग, स्वच्छता और प्रदूषण मुक्त वातावरण को बनाए रखना अब एक बड़ी चुनौती है. परिसीमन के बाद दिल्ली नगर निगम वार्डों की संख्या भले ही 250 कर दी गई है, लेकिन एक मेयर की ओर से नगर निगम को हजारों करोड़ रुपये के कर्ज से मुक्ति दिलाकर दिल्ली को विकास की रफ्तार से आगे बढ़ाना इतना आसान नहीं होगा.