Delhi MCD Election 2022: दिल्ली नगर निगम चुनाव में BJP का पसमांदा मुस्लिम प्रेम, चुनाव में उतारे 4 प्रत्याशी, क्या है प्लान?
Delhi MCD Election 2022: बीजेपी नेताओं के मुताबिक पसमांदा समाज को जोड़ने और इसे आगे बढ़ाने के लिए पीएम नरेंद्र मोदी ने जो बात कही थी, पार्टी उसे ही आगे बढ़ाने का काम कर रही है.
BJP Pasmanda Muslim Candidates: पसमांदा मुस्लिमों को राजनीति में प्रतिनिधित्व देने और उनका पिछड़ापन दूर करने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) के वादे की झलक अब दिल्ली नगर निगम चुनाव (Delhi Municipal Corporation Election) में दिखाई दे रही है. बीजेपी (BJP) ने एमसीडी चुनाव में चार मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं, जिसमें तीन महिलाएं और एक पुरूष हैं. अहम बात ये है बीजेपी ने जिन मुस्लिमों को उम्मीदवार बनाया है, वो सभी पसमांदा मुस्लिम हैं.
पुरानी दिल्ली के चांदनी महल वार्ड से इरफान मलिक, सीलमपुर के चौहान बांगड़ वार्ड से सबा गाजी, कुरैश नगर वेस्ट वार्ड से शमीन रजा कुरैशी और मुस्तफाबाद वार्ड से शबनम मलिक को बीजेपी ने मैदान में उतारा है. ये सभी पसमांदा (ओबीसी) मुस्लिम हैं. बीजेपी ने पुरानी दिल्ली इलाके की चांदनी महल वार्ड नंबर 76 से इरफान मलिक को उम्मीदवार बनाया है. इरफान बताते हैं कि उनको उम्मीद नहीं थी कि उन्हें भी पार्टी प्रत्याशी बनाएगी, लेकिन अब जब मौका मिला है, तो जीत की उम्मीद भी जता रहे हैं.
इरफान मलिक बोले- बीजेपी ने पसमांदा समाज को बढ़ाने का शुरू किया काम
इरफान ने कहा कि पहला बार किसी प्रधानमंत्री ने पसमांदा मुसलमानों की बात रखी है. इस पिछले समाज को बढ़ाने की बात की है और जब से उन्होंने ये बात रखी है, तभी से पसमांदा मुसलमानों से जुड़े समाज में खुशी है कि आखिर किसी ने उनके उत्थान का मुद्दा उठाया है. इरफान मलिक ने कहा कि निगम चुनाव में पसमांदा चेहरों को मौका मिलना ये दर्शाता है कि बीजेपी ने इस समाज को बढ़ाने का काम शुरू कर दिया है और लोग इसका समर्थन भी करेंगे.
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बीजेपी को पसमांदा उम्मीदवारों की जीत की उम्मीद
सिर्फ इरफान मलिक ही नहीं, बीजेपी ने सीलमपुर की चौहान बांगड़, कुरैश नगर वार्ड और मुस्तफाबाद से भी पसमांदा मुस्लिम उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं. बीजेपी नेताओं के मुताबिक इस समाज को जोड़ने और इसे आगे बढ़ाने के लिए पीएम मोदी ने जो बात कही थी, पार्टी उसे ही आगे बढ़ाने का काम कर रही है. दिल्ली बीजेपी की ओर से नगर निगम चुनाव के लिए कैंपेन कमेटी के इंचार्ज बनाए गए आशीष सूद ने कहा कि बीजेपी का नारा है 'सबका साथ और सबका विकास' और इसी नारे पर बीजेपी पीएम मोदी के नेतृत्व में काम कर रही है. यही वजह है कि इस निगम चुनाव में पसमांदा मुस्लिम चेहरों को भी पार्टी ने टिकट दिया है और उनसे जीत की उम्मीद भी बड़ी है.
क्या है बीजेपी का पसमांदा मुसलमानों का गणित?
इसमें कोई दो राय नहीं है कि यूपी या देश के दूसरे राज्यों में मुसलमानों का वोट बीजेपी को बहुत कम प्रतिशत में मिला. ये जरूर रहा है कि जिस पार्टी में भी बीजेपी को हराने का दम दिखा, मुसलमानों का एकमुश्त वोट उस पार्टी को मिला, लेकिन जहां भी ये वोट बैंक बिखरा बीजेपी को उससे फायदा हुआ है. बीजेपी ने भी इसको लेकर रणनीति बनाई है. इसको लोकसभा चुनाव में यूपी की सभी 80 सीटें जीतने के प्लान के साथ भी जोड़कर देखा जा रहा है.
कौन हैं पसमांदा मुस्लिम?
पसमांदा शब्द मुसलमानों की उन जातियों के लिए बोला जाता हैृ, जो सामाजिक रूप से पिछड़े हैं या फिर कई अधिकारों से उनको शुरू से ही वंचित रखा गया. इनमें बैकवर्ड, दलित और आदिवासी मुसलमान शामिल हैं, लेकिन मुसलमानों में जातियों का ये गणित हिंदुओं में जातियों के गणित की तरह ही काफी उलझा हुआ है और यहां भी जाति के हिसाब से सामाजिक हैसियत तय की जाती है. साल 1998 में पहली बार 'पसमांदा मुस्लिम' का इस्तेमाल किया गया था. जब पूर्व राज्यसभा सांसद अली अनवर अंसारी ने पसमांदा मुस्लिम महाज का गठन किया था. उसी समय ये मांग उठी थी कि सभी दलित मुसलमानों की अलग से पहचान हो और उनको ओबीसी के अंर्तगत रखा जाए.