Delhi MCD Election 2022: दिल्ली दंगा होगा चुनावी मुद्दा? जानें- क्या बोले हिंसा प्रभावित इलाकों के मतदाता
Delhi MCD Election 2022: एमसीडी चुनाव में कुछ लोग उत्तर पूर्वी दिल्ली में लगभग तीन साल पहले हुई हिंसा को भी एक मुद्दा मान रहे हैं. हालांकि, कुछ लोगों का कहना है कि चुनाव पर इसका असर नहीं होगा.
Delhi MCD Election 2022: दिल्ली नगर निगम चुनाव (Delhi Municipal Corporation Election) आमतौर पर साफ-सफाई और दूसरी बुनियादी सुविधाओं के मुद्दों पर लड़ी जाती है. वहीं इस बार एमसीडी चुनाव में कुछ लोग उत्तर पूर्वी दिल्ली में लगभग तीन साल पहले हुई सांप्रदायिक हिंसा को भी एक मुद्दा मान रहे हैं. फरवरी 2020 में संशोधित नागरिकता कानून (CAA) के समर्थकों और विरोधियों के बीच हुई झड़पों ने 24 फरवरी को सांप्रदायिक दंगों का रूप ले लिया था. इस हिंसा में 53 लोगों की मौत हुई थी और 700 से ज्यादा लोग जख्मी हुए थे.
दंगों में सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों में शिव विहार, मुस्तफाबाद, भजनपुरा, विजय पार्क, यमुना विहार और मौजपुर रहे थे. शिव विहार के फेज छह में रहने वाले मोहम्मद शमीम की दुकान को दंगाइयों ने आग लगा दी थी. उन्होंने कहा, "जो हादसा होना था, वह हो गया है, लेकिन अब ऐसा कुछ नहीं है, लोग उस घटना को भूल चुके हैं. एमसीडी चुनाव में मुद्दे तो स्थानीय ही हैं. इन पर दंगों का कोई असर नहीं है, क्योंकि हमारा इलाका विकास के मामले में काफी पिछड़ा हुआ है." उनकी दुकान से कुछ दूर रहने वाले एक अन्य दंगा पीड़ित मोहम्मद राशिद का कहना है, "इन चुनावों पर दंगों का मुद्दा हावी रहेगा. सड़क-नाली का मुद्दा दंगों से बड़ा नहीं है."
दंगा दावा आयोग के पास आए हैं नुकसान के 2,775 दावे
राशिद के तीन मंजिला मकान को दंगाइयों ने आग लगा दी थी. शमीम और राशिद दोनों ने इस बात पर दुख जताया कि उन्हें वादे के मुताबिक सरकार की तरफ से पूरा मुआवजा नहीं मिला है. दोनों का दावा है कि उन्हें सरकार से अब तक ढाई-ढाई लाख रुपये ही मिले हैं, जबकि मुआवजा नीति के मुताबिक उन्हें इससे अधिक मुआवजा मिलना चाहिए था. उत्तर पूर्वी दिल्ली दंगा दावा आयोग के पास नुकसान के 2,775 दावे आए हैं. एमसीडी के 250 वार्ड के लिए चार दिसंबर को मतदान होना है, जबकि मतगणना सात दिसंबर को होगी. इनमें से 26 वार्ड उत्तर पूर्वी दिल्ली में हैं.
जाफराबाद मेट्रो स्टेशन के नीचे धरने पर बैठी थीं महिलाएं
उत्तर पूर्वी दिल्ली के जाफराबाद में रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता और स्थानीय शांति समिति के सदस्य डॉ. फहीम बेग का कहना है, "कुछ मुस्लिम प्रत्याशी दंगों और तब्लीगी जमात के प्रकरण को उठाने की कोशिश कर रहे हैं. हालांकि, अब इन मुद्दों का कोई जोर नहीं है. लोग इन घटनाओं को भूल चुके हैं. वैसे भी यह चुनाव नाली और गलियों का है और इसमें इसी मुद्दों पर बातचीत की जा रही है. मुझे नहीं लगता है कि इस चुनाव पर दंगों का कोई प्रभाव पड़ेगा." जाफराबाद वही इलाका है, जहां 22 फरवरी 2020 की रात बड़ी संख्या में महिलाएं मेट्रो स्टेशन के नीचे धरने पर बैठ गई थीं.
करीब 29 फीसदी है मुसलमानों की जनसंख्या
उत्तर पूर्वी दिल्ली की आबादी करीब 22.5 लाख है. क्षेत्र में मुसलमानों की जनसंख्या करीब 29 फीसदी है. विजय पार्क में रहने वाले नईम अहमद ने कहा, "निगम पार्षद के चुनाव में दंगों का कोई आधार नहीं है. इस चुनाव में सारे स्थानीय उम्मीदवार हैं. इनमें से एक को यह देखकर चुनना है कि कौन अच्छा काम कर सकता है. सफाई व्यवस्था ठीक कर सकता है. यह स्थानीय शख्स ही कर सकता है. इस चुनाव में पार्टी देखकर वोट नहीं डाला जाएगा." इस सीट से आम आदमी पार्टी ने साजिद खान, कांग्रेस ने हाजी जरीफ और भारतीय जनता पार्टी ने विनोद गुप्ता को टिकट दिया है. मुस्तफाबाद में रहने वाले साहबजादा कहते हैं कि भले ही चुनाव एमसीडी का हो रहा है, लेकिन इसमें दंगों के असर को नहीं नकारा जा सकता है.
'अब प्रेम से साथ-साथ रह रहे हैं दोनों समुदाय'
उनके मुताबिक चुनाव पर इसका असर तो पड़ेगा ही, लेकिन यह कितना प्रभावित करेगा, यह सात दिसंबर को मालूम होगा. बाबू नगर में रहने वाले रमेश का कहना है, "दंगों के बाद कुछ दिनों तक इसका असर रहा था. अब सब खत्म हो गया है. लोग भूल गए हैं कि दंगा हुआ भी था. ये शरारती तत्वों की हरकतें थीं. दोनों समुदाय प्रेम से साथ-साथ रह रहे हैं."
कबीर नगर से आप के उम्मीदवार खान ने कहा, "यह चुनाव स्थानीय मुद्दों पर होता है और उन्हीं पर हो रहा है. इस पर दंगों का कोई असर नहीं है." उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ दल लोगों को गुमराह करने के लिए दंगों का मुद्दा उठा रहे हैं. इसी सीट से कांग्रेस उम्मीदवार जरीफ कहते हैं, "कांग्रेस स्थानीय मुद्दों पर ही चुनाव लड़ रही है और लोगों से जुड़े स्थानीय मुद्दे ही उठा रही है, लेकिन दंगों का असर है और इसका प्रभाव पड़ेगा."
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