दिल्ली स्टैंडिंग कमेटी पर BJP का कब्जा हुआ तो MCD में दिखाई देगा LG-CM जैसा पॉवर क्लैश!
MCD Politics: अगर दिल्ली स्टैंडिंग कमेटी पर बीजेपी का कब्जा हुआ तो एमसीडी में दिखाई दे सकता है एलजी-सीएम जैसा पॉवर क्लैश जैसा नजारा.
MCD Power Clash News: दिल्ली में उपराज्यपाल वीके सक्सेना और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के बीच काफी समय से अधिकारों को लेकर जंग जारी है. टकराव की गंभीरता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दोनों के बीच अधिकारों की यह जंग एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है. कमोवेश, यही हालात दिल्ली नगर निगम (MCD) में मेयर (Mayor), स्टैंडिंग कमेटी (Standing Committee) और निगमायुक्त (Municipal commissioner) के बीच भी होने के आसार हैं. अगर ऐसा हुआ तो दिल्ली सरकार की तरह नगर निगम में भी आप (AAP) और बीजेपी (BJP) के बीच तनातनी बढ़ सकती है.
एमसीडी (MCD) में भी दिल्ली सरकार की तरह पावर फाइट की संभावना अभी से दिखने लगी है. वर्तमान में जो सियासी समीकरण एमसीडी में है उसके लिहाज से आप सदन में अपना महापौर बना सकती है. स्थायी समिति पर बीजेपी का कब्जा हो सकता है. दरअसल, स्थायी समिति में कुल 18 सदस्य होते हैं. बीजेपी 12 जोन में से सात सदस्य बना लेने में कामयाब हो सकती है. अगर ऐसा हुआ तो स्थायी समिति पर बीजेपी का कब्जा हो जाएगा. ऐसा होने पर दिल्ली सरकार की तरह निगम में भी पहली बार सत्ता के दो केंद्र होंगे.जब सत्ता के केंद्र दो होंगे तो टकराव होना भी वाजिब है.
एमसीडी में टकराव क्यों?
दिल्ली नगर निगम में अधिकांश प्रस्ताव स्थायी समिति से पारित होकर सदन में पहुंचते हैं. सदन उन पर अंतिम निर्णय लेता है. जब सत्ता के दो केंद्र होंगे तो किसी भी दल के लिए सदन और स्थायी समिति में प्रस्ताव पारित कराना कठिन हो सकता है. प्रस्ताव पारित नहीं होगा तो विवाद को गंभीर बनने से रोकना भी नामुमकिन जैसा ही होगा. इसके अलावे एमसीडी में मेयर, स्टैंडिंग कमेटी और निगमायुक्त के अधिकार भी अलग-अलग हैं. तीनों कानूनी दायरे में रहकर स्वतंत्र होकर फैसला ले सकते हैं. ऐसे में हित कॉमन न होने पर तीनों एक-दूसरे की राह में रोड़ा बनेंगे. आइए, हम आपको बताते हैं, तीनों के कानूनी अधिकार क्या-क्या हैं?
महापौर
ए श्रेणी के अधिकारियों की अप्वाइंटमेंट, प्रमोशन और डेप्यूटेशन पर आये अफसर की नियुक्ति का अधिकार सदन के पास है. रिटायर्ड या कार्यरत कर्मचारी और अधिकारी पर अनुशासनात्मक कार्रवाई व दंड देने का अधिकार सदन के पास है. संपत्तिकर की दरें क्या होंगी और किसे छूट दी जानी है, यह अधिकार भी सदन के यानी मेयर के पास है. 50 हजार रुपए से अधिक की कोई भी अचल संपत्ति किराए पर देने या बेचने का अधिकार महापौर के पास है. महापौर निगमायुक्त से कोई भी रिकॉर्ड मांग सकता है. नीति बनाने या संशोधन के प्रस्ताव पर स्थायी समिति पहले निर्णय लेती है, फिर, वहीं प्रस्ताव सदन में जाता है. अंतिम निर्णय सदन लेता है. पदों के सृजन और पदों को समाप्त करने का अधिकार भी सदन के पास है.
स्टैंडिंग कमेटी
एमसीडी में ठेके वाली परियोजनाओं पर मेयर और निगमायुक्त को पहले स्थायी समिति से मंजूरी लेनी होगी. स्टैंडिंग कमेटी में पास होने के बाद ही इसे मेयर सदन से पास कराने के लिए रख सकते हैं. प्रस्ताव से अहसमत होने पर सदन स्थायी समिति की परियोजना को खारिज कर सकती है. स्थायी समिति प्रस्तावों को वापस कर, विभाग को नये सिरे से समीक्षा करने का आदेश दे सकती है. बड़े व्यावसायिक और आवासीय संपत्तियों के नक्शे और ले-आउट प्लान पास करने का अधिकार स्थायी समिति के पास है. निगमायुक्त की छुट्टी स्वीकृत करने और कौन सी एजेंसी काम करेगी और कौन नहीं का फैसला लेने का अधिकार स्टैंडिंग कमेटी के पास है. निगमायुक्त् की छुट्टी स्वीकृत करने का अधिकार भी स्थायी समिति के पास है. किसी भी परियोजना का बजट तय करने और 50 हजार रुपए तक की कोई भी अचल संपत्ति बेचने और किराए पर देने का अधिकार भी स्टैंडिंग कमेटी के पास है.
निगमायुक्त
दिल्ली नगर निगम में अधिकारियों को विभाग आवंटन का फैसला निगमायुक्त ही लेते हैं. निगमायुक्त पांच करोड़ रुपए तक की परियोजना सदन या स्थायी समिति की मंजूरी के बिना भी मंजूर कर सकते हैं. इतना ही नहीं, अधिकारियों और कर्मचारियों की ट्रांसफर और पोस्टिंग का अधिकार भी निगमायुक्त के पास है.