Delhi Ambedkar Musical Show: निर्देशक महुआ चौहान (Director Mahua Chauhan) ने 120 मिनट के संगीत कार्यक्रम बाबासाहेब: द ग्रैंड म्यूजिकल (Babasaheb: The Grand Musical) को जवाहरलाल नेहरू स्टेडियम (Jawaharlal Nehru Stadium) में पेश किया. इस कार्यक्रम के दौरान राष्ट्र पिता महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) और डॉ. बीआर अंबेडकर (Dr. BR Ambedkar) के बीच हुई बातचीत को दर्शाने के लिए स्टेडियम के वेटलिफ्टिंग ऑडिटोरियम को पुणे (Pune) की यरवदा जेल (Yerwada Jail) में बदल तब्दील कर दिया गया.


बाबासाहेब: द ग्रैंड म्यूजिकल कार्यक्रम में विशेष
विचारधारा के टकराव में दोनों महान हस्तियों को जटिल भारतीय जाति व्यवस्था की अवधारणा को, अपने तर्कों और व्याख्याओं से सुदृढ़ करने के लिए जाना जाता रहा है. जहां अंबेडकर जाति को राजनीतिक जांच के रूप में देखते हैं और भारत के दलित समुदाय के लिए एक लगा निर्वाचन चाहते हैं, वहीं गांधी जाति को एक सामाजिक मुद्दे के रूप में देखते हैं और अलगाव के पक्ष में नहीं थे. 15 अगस्त 1932 को ब्रिटिश सरकार के जरिये अलग निर्वाचन मंडल के एलान के तुरंत बाद, महात्मा गांधी ने पुणे जेल में आमरण अनशन शुरू कर दिया था, जहां उन्हें राजद्रोह के आरोप में रखा गया था.


अभिनेता रोहित रॉय ने अपने शानदार अभिनय से अंबेडकर के किरदार को जीवंत बना दिया, उनके इस कोशिश को दर्शकों की तालियां बजाकर भरपूर दाद दी गई. दिल्ली सरकार ने पिछले साल ही इस कार्यक्रम को करने की योजना बनाई थी, इस कार्यक्रम की तैयारी में 6 महीने लगे थे. हालांकि दिल्ली में कोरोना के तेजी से बढ़ते मामलों के बाद इसे स्थगित कर दिया गया था. 


 


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डॉ. भीमराव अंबेडकर के जीवन से जुड़े संघर्षों को, आम लोगों को नाटक के जरिये कराया गया रूबरू
सेट डिजाइनर ओमंग कुमार के जरिये बनाये गए 40 फीट बड़े घूमने वाले मंच को संगीत के लिए तैयार किया गया है. इसमें 10 से अधिक गीतों के अलावा भव्य नाटक का शुभारंभ किया गया है. इस नाटक में 160 डांसर्स और सपोर्टिंग एक्टर ने कहानी में चार चांद लगा दिया. इस नाटक के जरिये भारत रत्न भीमराव अंबेडकर के विभिन्न सामाजिक वर्गों से मिले ताने और आलोचना को को झेलते हुए भी, उनके सामाजिक संघर्षों को दर्शाया जायेगा. इसके अलावा इस नाटक में महिला सशक्तिकरण सहित कई समाजिक मुद्दो को भी लोगों के सामने प्रस्तुत, जागरूक किया जायेगा.


मध्य प्रदेश के महू (अब अम्बेडकर नगर) में पला बढ़ा छोटा सा एक बच्चा, जिसको स्कूली शिक्षा के दौरान क्लास से बाहर बैठ कर अपनी पढ़ाई की पूरी की और कई सामाजिक भेदभावों को झेलते हुए, पहले मुंबई फिर वहां से कोलंबिया यूनिवर्सिटी पहुंचे. बाद में वह फादर ऑफ़ इंडियन कंस्टीटूशन बने. इस स्टेज शो के जरिये डॉ. भीम राव अंबेडकर के जीवन से जुड़े यथार्थ को नाटक जरिये पेश कर, सामजिक प्रेरणा देने की कोशिश की गई.  


"सत्ता को सवाल सुनने की आदत नहीं होती, वो अपने ही मन की बात करती है", टीकम जोशी के नाटक के इस डायलॉग पर तालियों की गड़गड़ाहट से खूब वाहवाही बटोरी. वहीं रचनात्मक निर्देशक रोशन अब्बास के नाटक का समापन संविधान की प्रस्तावना (Constitution Preamble) पाठ के साथ हुआ. कार्यक्रम में विनीत पंछी और कौसर मुनीर के गीतों ने लोगों को बांधे रखा.


 


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