दिल्ली में अगले साल होने वाले नगर निगम चुनाव से पहले कांग्रेस को झटका लगा है. दिल्ली कांग्रेस के पूर्व नेता और दिल्ली विधानसभा के पूर्व स्पीकर योगानंद शास्त्री राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) में शामिल हो गए. एनसीपी ने उन्हें पार्टी की दिल्ली ईकाई का अध्यक्ष बनाया है. शास्त्री का एनसीपी में जाना कांग्रेस के लिए इसलिए झटका हैं क्योंकि दिल्ली में पार्टी की हालत बहुत ही खराब है. कांग्रेस दिल्ली की सत्ता से 2013 से गायब है. दिल्ली के तीनों नगर निगमों पर बीजेपी का कब्जा है तो विधानसभा में आम आदमी पार्टी का. विधानसभा में कांग्रेस का कोई विधायक नहीं है. शास्त्री ने 2020 में ही कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था.
कांग्रेस के नेताओं पर क्या लगाए थे आरोप
एनसीपी में शामिल होने के बाद शास्त्री ने कहा कि वहां (कांग्रेस में) काम करना आसान नहीं था. सबसे बड़ी समस्या यह है कि पार्टी हाईकमान उन लोगों को आगे बढ़ा रहा है जो समाज से जुड़ ही नहीं पा रहे हैं. पंजाब इसका उदाहरण है और बाकी राज्यों की स्थिति भी सब जानते हैं. इसके बाद भी उन्होंने कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी की तारीफ की. शास्त्री ने कहा कि राहुल और प्रियंका मेहनत से काम कर रहे हैं. लेकिन जो लोग उनके आस-पास हैं वो ईमानदार नहीं हैं. और उनमें अपने काम को लेकर कोई प्रतिबद्धता नहीं है.
दिल्ली में जब कांग्रेस की सरकार थी तो योगानंद शास्त्री 2008 से 2013 तक विधानसभा के स्पीकर थे. दिल्ली विधानसभा चुनाव में उन्होंने प्रदेश कांग्रेस के नेताओं पर टिकट बेचने का आरोप लगाया था. उन्होंने उस समय कहा था कि प्रदेश कांग्रेस की कमान ऐसे व्यक्ति के पास है जो किसी का सम्मान नहीं करता और ऐसे लोगों से घिरा है जो विधानसभा चुनाव के टिकट बेचने में शामिल है. यह आरोप लगाते हुए उन्होंने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया था.
दिल्ली में कमजोर होती कांग्रेस
योगानंद शास्त्री दिल्ली की मालवीय नगर विधानसभा सीट का 2 बार और एक बार महरौली विधानसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया. इससे पहले इसी साल दिल्ली कांग्रेस के पूर्व प्रभारी पीसी चाको कांग्रेस छोड़कर एनसीपी में शामिल हो गए थे.
दिल्ली के तीनों नगर निगमों में पार्षद की 270 सीटें हैं. अप्रैल 2017 में हुए चुनाव में बीजेपी ने 181, आप ने 48 और कांग्रेस ने 30 सीटों पर जीत दर्ज की थी. अन्य के हिस्से में 11 सीटें गई थीं. इस चुनाव में बीजेपी ने 43 सीटों का इजापा किया था. वहीं कांग्रेस को 48 सीटों का घाटा उठाना पड़ा था. कांग्रेस की सबसे बुरी हालत विधानसभा में है. पिछले दो चुनाव से पार्टी दिल्ली में विधानसभा की एक भी सीट नहीं जीत पा रही है. यह स्थिति तब है, जब कांग्रेस ने 1998 से 2013 तक लगातार दिल्ली में अपनी सरकार चलाई थी.