Delhi Forest: राजधानी दिल्ली में हवा की गुणवत्ता बहुत ख़राब श्रेणी में दर्ज की गयी है. दिल्ली की हवा की गुणवत्ता को बेहतर बनाने वाले पेड़ों को लेकर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में बुरी खबर है. जिसको लेकर इंडियन फारेस्ट डिपार्टमेंट ने एक रपोर्ट जारी किया है, इस रिपोर्ट के मुताबिक बीते एक दशक में पहली बार राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वन में कमी आयी है. यह क्षेत्र आधे किमी. से कम 0.44 वर्ग किमी. है. 


वन क्षेत्र में यह कमी तब हुआ है जब दिल्ली-एनसीआर की वायु गुणवत्ता लगातार खराब श्रेणी में दर्ज किया जा रहा है, जबकि देश के दूसरे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों ने वन क्षेत्र के घनत्व में वृद्धि दिखाई है. 


इंडिया-स्टेट ऑफ़ फारेस्ट रिपोर्ट 2021 में दिल्ली के वन क्षेत्र को लेकर यह कहा गया 
इस रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली भौगोलिक विस्तार (Geographical Expance) 1483 वर्ग किमी. है, जिसमें से 195 वर्ग किमी. क्षेत्र वन है. हालांकि तीन साल पहले तक यह वन क्षेत्र 195.44 वर्ग किमी. था. दिल्ली का वन क्षेत्र कुल भौगोलिक क्षेत्र का 13.2 फ़ीसदी है, जो राष्ट्रीय वन क्षेत्र 21.7 फ़ीसदी से काफी कम है.


वन क्षेत्र में कमी के बावजूद में पेड़ों की संख्या में हुई है वृद्धि
रिपोर्ट में दिल्ली में पौधरोपण (Replantation) से हरित क्षेत्र 18 वर्ग किमी की वृद्धि हुई है. दिल्ली का हरित क्षेत्र बीते दो वर्षों में अपने भौगोलिक क्षेत्र 21.88 फीसदी से बढ़कर 23.06 फीसदी हुआ है. स्टेट फारेस्ट रिपोर्ट 2019 के मुताबिक दिल्ली में पेड़ों का घनत्व 129 वर्ग किमी था, जो अब बढ़कर 147 वर्ग किमी. हो गया है. वहीं, स्टेट फारेस्ट रिपोर्ट 2021 के मुताबिक समग्र हरित क्षेत्र ( वन और पेड़) अब 342 वर्ग किमी. (एसएफआर 2021 के अनुसार) है, जो पहले 324.44 वर्ग किमी था. पिछले दो सालों में 2019-2021 में दिल्ली के कुल भौगोलिक क्षेत्र का हरित क्षेत्र 21.88 फीसदी से बढ़कर 23.06 फीसदी हो गया है.


दिल्ली सरकार ने बढ़े हरित क्षेत्र को लेकर थपथपाई अपनी पीठ 
दिल्ली सरकार में पर्यावरण मंत्री गोपाल रॉय ने कहा कि दिल्ली का हरित क्षेत्र इसके कुल भौगोलिक क्षेत्र 21.9 फ़ीसदी से बढ़ कर 23.1 फ़ीसदी हो गया है. उन्होंने इस अपनी सरकार की उपलब्धि बताते हुए कहा कि दिल्ली सरकार मार्च 2022 तक 33 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य रखा है. दिल्ली ऐसा पहला शहर जहां एक पेड़ काटने के बदले दस पेड़ लगाये जाते हैं. 


इस मामले में पर्यावरण विशेषज्ञों के यह है कहना
दिल्ली में वन क्षेत्र में कमी और पेड़ों की संख्या बढ़ने पर पारिस्थितिकी विशेषज्ञ (Ecology Experts) इस खुश होने वाला विषय नहीं मानते हैं. बकौल उनके दिल्ली पहले ही वास्तविक वनों को खो चुकी है, जो भी बचे वह भी आक्रामक प्रजातियों से ग्रस्त हैं. 


टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपी खबर में दिल्ली विश्विद्यालय के प्रोफेसर सीआर बाबू के मुताबिक, दिल्ली में वन जैव विविधता पार्कों के अलावा कहीं नहीं है. उन्हों ने एक वास्तविक जंगल की परिभाश बताते हुए कहा कि, वन की एक विशेष बनावट होती है जैसे लंबे कैनोपी के पेड़, मध्यम उंचाई के पेड़ और झाड़ियां आयर सबसे विशेष जमीन से लगी हुई घास और दूसरी वनस्पति. प्रोफेसर सीआर बाबू ने कहा कि इस तरह के जंगल अब समाप्त हो चुके हैं, फिलहाल जो हैं उनमें विदेशी विलायती कीकर या प्रोसोपिस जूलीफ्लोरा से प्रभावित हैं. 


विशेषज्ञों ने घटते वनों के लिए इन्हें ठहराया जिम्मेदार 
वनों के घटते घनत्व को लेकर एक वन अधिकारी ने कहा कि इसके के लिए सरकार के जरिये वनों के पेड़ों की कटाई है.  साथ ही बुद्नियादी ढांचों के विकास के कारण भी वनों का घनत्व कम हुआ है. वहीं इस संबंध में पारिस्थितिकी विशेषज्ञ (Ecology Experts) प्रदीप कृष्णा का कहना है कि दिल्ली गुणवत्तापूर्ण वन की कमी से जूझ रहा है. वृक्षारोपण (Treeplantation) में सही पेड़ों के चुनाव नहीं किया जा रहा है और ना ही उन पेड़ों को सही जगह पर लगाया जा रहा है. वहीं एसएफआई भी सही पेड़ों के चुनाव की तरफ ध्यान नहीं देता है. सेंट्रल रिज में भी 90 फ़ीसदी से अधिक पेड़ कीकर के हैं, साथ ही अधिकतर जगहों पर सबाबुल या ल्युकेना ल्युकोसेफला दोनों ही किसी भी नज़रिये से अच्छे नहीं हैं. यह एसएफआई को समझने की जरुरत है हमारा हरित क्षेत्र किससे बना है. 


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