Delhi News: दिल्ली जल बोर्ड(DJB) ने दिल्ली(Delhi) के सभी 34 सीवर ट्रीटमेंट प्लांट (STP) में केमिकल के जरिए सीवर के पानी को शोधित करने की योजना बनाई है. इससे सीवर के पानी की गुणवत्ता में 82 फीसदी का बड़ा सुधार देखा गया है. सीवर का पानी यदि साफ होकर यमुना में गिरेगा तो इससे यमुना कम गंदी होगी. वर्तमान में यमुना विहार में इस तकनीक से पानी शोधित किया जा रहा है. वहीं, रिठाला(Rithala) सीवेज उपचार संयंत्र (एसटीपी) और सोनिया विहार(Soniya Vihar) में जल्द ही यह तकनीक अपनाई जाएगी. इससे जल बोर्ड पर वित्तीय बोझ नहीं पड़ेगा. साथ ही प्रदूषक तत्व बीओडी(BOD) और टीएसएस(TSS) का स्तर भी मानक के अनुसार हो जाएगा.


BODऔर TSS के स्तर को कम किया हैः जल मंत्री 


दिल्ली के जल मंत्री सत्येंद्र जैन ने बताया कि नई तकनीक के जरिए सीवेज के पानी को ट्रीट करके बीओडी और टीएसएस के स्तर को कम से कम लेवल पर पहुंचाकर सरकार ने रिकॉर्ड कायम किया है. इस उपचारित पानी का उपयोग पीने के अलावा अन्य सभी उद्देश्यों के लिए किया जा सकता है. यह उपचारित पानी आगे यमुना नदी में गिरेगा, जिससे बाद में नदी की स्थिति में सुधार होगा. सरकार पूरी प्रक्रिया को लागत प्रभावी बनाने के साथ समय की बचत और पर्यावरण के अनुकूल बनाने के लिए पूरी मेहनत से काम कर रही है. 2025 तक यमुना नदी की सफाई पूरी करने की कड़ी में ओखला में 16 एमजीडी सीवर ट्रीटमेंट प्लांट में केमिकल के जरिए पानी को ट्रीट करने की पहल की गई है. इस अनोखी तकनीक की मदद से ओखला सीवर ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) में भी सीवर के पानी का बेहतर तरीके से ट्रीटमेंट किया जा रहा है. यही वजह है कि ओखला एसटीपी में पानी की गुणवत्ता में 82 फीसदी का सुधार है.


सीवेज ट्रीट करने की लागत घटकर हुई 1 रुपये /किलोलीटर


पहले दिल्ली सरकार को एसटीपी को अपग्रेड करने के लिए 30-40 करोड़ रुपए खर्च करने पड़ते थे. अब समय की बचत के साथ-साथ सीवेज के पानी को ट्रीट करने की लागत 1 रुपये प्रति किलोलीटर से भी कम हो गई है. इसी के साथ ही केमिकल के इस्तेमाल से सीवर पानी बेहतर तरीके से शोधित किया जा रहा है. थर्ड पार्टी की ऑडिट रिपोर्ट में ओखला के 16 एमजीडी एसटीपी में उपचारित अपशिष्ट पानी को लेकर सकारात्मक परिणाम देखने को मिले है. रिपोर्ट के मुताबिक आउटलेट यानी शोधित पानी में बायोलॉजिकल ऑक्सीडेशन डिमांड (बीओडी) जहां पहले 23 मिला है. वहीं, अब घटकर 4 तक पहुंच गया है. इसके अलावा सीओडी 70 से 20 पहुंच गया है. टीएएस पहले 38 था, जो कि अब 7 तक पहुंच चुका है.


सीवर के गंदे पानी को किया जाता है शोधित


ऑयल एंड गैस व पीएच जैसे अन्य मानक भी रिपोर्ट में सही मिले हैं. इस रिपोर्ट से साफ है कि लगातार सीवर के पानी की क्वालिटी में सुधार देखा गया है. यमुना में पहले की तुलना में अब बेहतर व पूरी तरह से शोधित पानी गिर रहा है. सीवर के पानी की बायोलॉजिकल ऑक्सीडेशन डिमांड (बीओडी) 300 तक होती है. सीवर के गंदे पानी को शोधित कर 10 तक लाया जाता है. इसके बाद नाले में डाल दिया जाता है. सीवर के शोधित पानी में दो बातों को देखा जाता है. पहला बीओडी और दूसरा सीओडी होता है. बीओडी ऑक्सीजन की मात्रा है जो एरोबिक स्थितियों के तहत कार्बनिक पदार्थों को विघटित करते हुए बैक्टीरिया द्वारा खपत होती है.


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वहीं, सीओडी पानी में कुल कार्बनिक पदार्थों के रासायनिक ऑक्सीकरण के लिए आवश्यक ऑक्सीजन की मात्रा है. बायोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड जितनी ज्यादा होगी, पानी की ऑक्सीजन उतनी तेजी से खत्म होगी और बाकी जीवों पर उतना ही खराब असर पड़ेगा. आसपास के वातावरण पर विपरीत असर पड़ता है. पानी के संपर्क में आने से चर्म रोग होते हैं. इसके अलावा टीएसएस भी पानी की गुणवत्ता जांचने का एक महत्वपूर्ण उपाय है. टोटल सस्पेंडेड सॉलिड (टीएसएस) सूक्ष्म कणों का वह भाग है जो पानी में निलंबन में रहता है. यह जितना कम होगा, पानी की गुणवत्ता उतनी ही बेहतर होगी.


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