Delhi News: पुरानी दिल्ली के बारे में जानकारियों का भंडार रखने वाले और दिल्ली शहर के इतिहास पर काम करने वालों लोगों को किताबें और जानकारियां देने वाले अब्दुल सत्तार का मंगलवार को निधन हो गया. दरअसल, जो लोग सत्तार को जानते थे वे उन्हें किताबों का प्रेमी कहते थे. सत्तार उस शहर के बारे में किताबें इकट्ठा करते थे जहां वो पले-बढ़े थे. वहीं अगर किसी को जरुरत होती थी तो सत्तार दिल्ली के ऊपर लिखी गई किताबों को उनके साथ साझा करते थे.


सत्तार के बारे में इतिहासकार और लेखक सोहेल हाशमी ने कहा कि सत्तार लगभग 70 साल के थे और कुछ समय से बीमार रहते थे. अब्दुल सत्तार ने दिल्ली कॉलेज में पढ़ाई की और फिर दिल्ली प्रशासन के साथ काम किया. वह 2004 में रिटायर्ड हुए. उन्हें दिल्ली शहर पर लिखी किताबों में गहरी दिलचस्पी थी और उनके पास इन किताबों का बहुत अच्छा और रेयर कलेक्शन था.


सोहेल हाशमी ने बताया कि 'मैं, सत्तार और दिल्ली कॉलेज के दो पूर्व छात्रों सलीम और सुलेमान के साथ दिल्ली में उर्दू-माध्यम के स्कूलों के लिए एक इंटर-स्कूल उर्दू बहस का आयोजन किया था. आगे उन्होंने बताया कि विचार यह था कि इन स्कूलों में छात्रों को बहस के माध्यम से वर्तमान मुद्दों से जोड़ा जाए, तभी मैं सत्तार से मिलने आया और दिल्ली शहर में उनकी दिलचस्पी का पता चला. जब भी मुझे पुरानी दिल्ली में कोई जगह नहीं मिलती थी क्योंकि यहां बहुत सी नई बिल्डिंग्स बन गई थीं तो मैं सत्तार से पूछता था और उन्हें उस जगह की जानकारी जरूर होती थी. किताबों में उनके प्यार और रुचि के कारण वह दोस्तों से किताबें इकट्ठा करते थे जो बाद में हजरत शाह वलीउल्लाह सार्वजनिक लाइब्रेरी को दान कर दिया जाता था.'


दो पांडुलिपियों पर कर रहे थे काम
सोहेल हाशमी ने कहा कि सत्तार दो पांडुलिपियों पर काम कर रहे थे. उन्होंने किताब लिखने के बारे में काफी देर से सोचना शुरू किया. इससे पहले उनकी दिलचस्पी किताबें इकट्ठा करने में थी. वहीं इतिहासकार और लेखक राणा सफवी ने कहा कि 'जब मैं अपनी पहली किताब लिख रहा था तो सत्तार ने बहुत सारी जानकारी और किताबें साझा की. जब मैं शाहजहांनाबाद के बारे में लिख रहा था तो उनके पास कई प्रथम-संस्करण की पुस्तकें थीं वे अपने ज्ञान, पुस्तकों और समय के प्रति बहुत उदार थे. वो बहुत बड़े पुस्तकप्रेमी थें.'



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