धोखाधड़ी, आपराधिक साजिश सहित कई आरोपों के तहत पिछले 9 साल से ज्यादा समय से जेल में बंद एक महिला को दिल्ली की अदालत ने जमानत दे दी है. कोर्ट ने महिला को जमानत इस आधार पर दी है कि जिस जुर्म में वह आरोपी है, उसमें दोषी पाए जाने पर भी अधिकतम सजा सात साल है. अदालत ने कहा कि यह न केवल "न्याय का उपहास" है, बल्कि यह "हमारी न्यायिक प्रणाली को भी खराब रूप से प्रतिबिंबित" करता है. तीस हजारी कोर्ट कॉम्पलेक्स की एडिशनल सेशन जज हेमानी मल्होत्रा ने आरोपी की कैद की अवधि को देखते हुए यह टिप्पणी की.
महिला को 2012 में गिरफ्तार किया गया था
बता दें कि फर्जीवाड़े सहित कई आरोपों में महिला को 2012 में गिरफ्तार किया गया था, जिसके बाद अगस्त 2014 में संबंधित अदालत में आरोप पत्र दायर किया गया था लेकिन तब से, सीएमएम प्रभारी ने अभी तक महिला के खिलाफ आरोप तय नहीं किये थे.अदालत ने कहा कि आरोपी ने मामले में न्यायिक हिरासत में सात साल से अधिक समय बिताया था, जो कि सीएमएम को आदेश देने के लिए अधिकृत अधिकतम जेल समय से अधिक है.
मामले में पुलिस ने 133 गवाह बनाए हैं
कोर्ट ने कहा 2012 में मामले में आरोप पत्र दाखिल किए गए थे लेकिन तब से लेकर अब तक आरोपी महिला पर मुकदमा चलाने के लिए आरोप तय नहीं किए जा सके. मुख्य महानगर दंडाधिकारी यह बताने में विफल रहे हैं कि आरोप तय क्यों नहीं किए गए. अदालत ने ये भी कहा कि इस मामले में पुलिस द्वारा 133 गवाह बनाए गए हैं. अगर इसी तरह मामले की सुनवाई हुई तो आरोपी की सारी उम्र निकल जाएगी.
कोर्ट ने आरोपी महिला को दी जमानत
ये टिप्पणी करते हुए अदालत ने 10 मई के अपने आदेश में, आरोपी रक्षा जे उर्ष उर्फ प्रियंका सारस्वत को एक लाख रुपये के जमानत बांड के साथ-साथ समान राशि के दो जमानती जमा करने की शर्त पर जमानत दे दी. साथ ही निचली अदालत को मामले में आरोप तय करने पर बहस पूरी करने और जल्द से जल्द फैसला लेने के निर्देश भी दिए.
वहीं आरोपी की ओर से पेश हुए अधिवक्ता अर्चित कौशिक ने कहा कि उनके मुवक्किल के खिलाफ 30 से अधिक मामले हैं, लेकिन उनमें से कम से कम 15 में उन्हें बरी कर दिया गया है.
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