Delhi News: केंद्र के अध्यादेश (Delhi Ordinance Row) को लेकर आम आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के बीच जारी सियासी जंग के बीच सुप्रीम कोर्ट में अवकाश प्राप्त न्यायाधीश का मदन बी लोकुर (SC Retired Justice Madan B Lokur) का एक लेख भावनात्मक रूप से राहत देने वाला है. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) उसी आर्टिकल को ट्विटर पर सभी से साझा करते लिखा है कि अध्यादेश निर्वाचित सरकार के लिए एक तरह से संवैधानिक धोखाधड़ी है.
जस्टिस लोकुर के लेख पर दिल्ली के सीएम ने कही ये बात
दिल्ली मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सुप्रीम कोर्ट के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश मदन बी लोकुर के लेख का हवाला देते हुए अपनी टिप्पणी में लिखा है कि उनका यह लेख केंद्र के अध्यादेश की असंवैधानिकता को उजागर करता है. हमारी सरकार हमेशा से यह कहती आई कि अध्यादेश लोकतांत्रिक मूल्यों और गैर संवैधानिक है. उसी का जिक्र पूर्व न्यायाधीश लोकुर ने अपने एक लेख में किया है. उन्होंने अपने लेख में लिखा है कि केंद्र सरकार की ओर से जारी अध्यादेश दिल्ली के लोगों के निर्वाचित प्रतिनिधियों और संविधान पर एक संवैधानिक धोखाधड़ी है.
पूर्व जस्टिस के लेख में क्या है?
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश मदन बी लोकुर ने अपने लेखा में लिखा है कि बाबासाहेब अम्बेडकर ने 4 नवंबर 1948 को संविधान सभा में संवैधानिक नैतिकता की बात की थी. वर्तमान सरकार भी यह जानती है कि लोकतांत्रिक संविधान के शांतिपूर्ण कामकाज के लिए संवैधानिक नैतिकता को बनाए रखने की जरूरत है. इसके बावजूद संवैधानिक नैतिकता का दुर्भाग्य यह है कि इससे जुड़ी दो अहम बातें आज भी अमल में नहीं हैं. पहला यह है कि प्रशासन के स्वरूप का संविधान के स्वरूप के साथ घनिष्ठ संबंध है. दूसरा यह है कि संविधान को बिना बदले विकृत करना पूरी तरह से संभव है. केवल प्रशासन के स्वरूप को बदलकर इसे असंगत और संविधान की भावना के विपरीत बनाकर ऐसा किया जा सकता है.
निर्वाचित सरकार का पुराने फार्मेट में काम करना मुश्किल
पूर्व जस्टिस के जिस लेख को दिल्ली के सीएम ने सभी से ट्विटर पर साझा किया है उसमें लिखा है कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार संशोधन अध्यादेश 2023 दिल्ली में प्रशासन के स्वरूप को बदलने वाला है. साथ ही यह संविधान की भावनाओं के अनुरूप नहीं है. अध्यादेश की संवैधानिक वैधता का निर्णय तो सर्वोच्च न्यायालय मामला सामने आने के बाद करेगी. साथ ही यह भी कहा गया है कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि यह कम से कम 1991 से दिल्ली में प्रचलित प्रशासन के स्वरूप को पलट देगा. निर्वाचित सरकार पुराने फार्मेट के अनुरूप काम करने की स्थिति में नहीं होगी. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बाबासाहेब अम्बेडकर द्वारा संविधान की भावना का आह्वान करना और लोकतांत्रिक संविधान के शांतिपूर्ण कामकाज के लिए संवैधानिक नैतिकता के प्रसार की आवश्यकता पर जोर देना गलत था?