Delhi Ordinance Row: कांग्रेस ने अरविंद केजरीवाल से बनाई दूरी! AAP का साथ ना देने के पीछे आखिर क्या है मजबूरी?
Delhi Politics: केंद्र सरकार के अध्यादेश के खिलाफ समर्थन जुटाने में लगी आम आदमी पार्टी को देश की सबसे प्रमुख विपक्षीय दल कांग्रेस पार्टी का अभी तक समर्थन मिलता नहीं दिखाई दे रहा है.
Delhi News: अधिकारियों के ट्रांसफर-पोस्टिंग विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के आदेश के बाद आम आदमी पार्टी (AAP) जश्न में डूबी थी, लेकिन केंद्र सरकार द्वारा आदेश को पलटते हुए नए अध्यादेश लाने से आप को बड़ा झटका लगा. अब पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) व अन्य बड़े नेता देश भर के विपक्षी नेताओं से मुलाकात कर राज्य सभा में इसे रोकने के लिए विपक्षी दलों का समर्थन मांग रहे हैं जिससे इस अध्यादेश को कानून बनने से रोका जा सके. लेकिन देश की सबसे प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस (Congress) का आम आदमी पार्टी को समर्थन मिलता दिखाई नहीं दे रहा है. वहीं दूसरी तरफ नए संसद भवन उद्घाटन को लेकर कांग्रेस पार्टी द्वारा समारोह के बहिष्कार पर आम आदमी पार्टी का समर्थन मिल चुका है.
कांग्रेस का समर्थन न मिलने की क्या वजह?
जानकारों की मानें तो आम आदमी पार्टी का बढ़ता वोट प्रतिशत कांग्रेस पार्टी की राज्यों में जनाधार कम होने की प्रमुख वजह बना है. इसमें कोई दो राय नहीं. कुछ ऐसे राज्य हैं जो कांग्रेस पार्टी का गढ़ माने जा रहे थे, वहां पर सीधे-सीधे आम आदमी पार्टी ने सेंधमारी करते हुए कांग्रेस पार्टी को बड़ा नुकसान पहुंचाया. सबसे पहले देश की राजधानी दिल्ली में जो कांग्रेस पार्टी का मजबूत किला माना जाता था, वहां पर आम आदमी पार्टी ने 2013 से अब तक 2023 तक भारतीय जनता पार्टी से भी ज्यादा कांग्रेस पार्टी को नुकसान पहुंचाया.
इसके अलावा पंजाब राज्य में भी पीएम मोदी की प्रचंड लहर के बावजूद कांग्रेस पार्टी सरकार बनाने में कामयाब रही थी, लेकिन वहां पर भी कांग्रेस पार्टी का न केवल बीते विधानसभा चुनाव में वोट प्रतिशत कम होकर सत्ता चली गई. बल्कि अब आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस पार्टी की लोकसभा की डगर को भी बेहद कठिन बना दिया. इसके अलावा दूसरे राज्यों के भी कांग्रेस पार्टी की विधानसभा चुनाव की तैयारी पर आम आदमी पार्टी ने पूरी तरह पानी फेर दिया, जिसमें गुजरात गोवा जैसे राज्य भी शामिल हैं. वहीं कई राज्यों की निकाय चुनाव में भी आम आदमी पार्टी का बढ़ता कद अब कांग्रेस पार्टी को लगातार कमजोर कर रहा है. इसलिए जानकारों की मानें तो कांग्रेस पार्टी अपने इस राजनीतिक नुकसान का जवाब आम आदमी पार्टी को ऐसे मुद्दों पर देना चाहती है.
लोकल लीडर्स ने आलाकमान पर छोड़ा फैसला
एबीपी लाइव ने कांग्रेस प्रवक्ता से इस मामले पर बात करना चाहा तो उन्होंने यह कहते हुए कुछ भी बोलने से परहेज किया कि सारा कुछ शीर्ष कमान के फैसले के बाद निर्णय लिया जाएगा. वैसे राजनीति में कहा जाता है कि कोई किसी का दोस्त नहीं कोई किसी का दुश्मन नहीं और इसका सबसे बड़ा प्रमाण तो यही है कि 2013 में दिल्ली की सत्ता से अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत करने वाली आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के खिलाफ ही भ्रष्टाचार की आवाज बुलंद करके सत्ता में कदम रखा था और आज दिल्ली की सत्ता को मजबूती से हासिल करने के लिए उसे सदन में कांग्रेस के समर्थन की भी जरूरत पड़ रही है. अब संसद के सत्र में जब इस अध्यादेश को सदन में पेश किया जाएगा तो यह देखना दिलचस्प होगा कि आम आदमी पार्टी को किन-किन पार्टियों का साथ मिलता है.
केंद्र के खिलाफ AAP को मिला 6 दलों का साथ
केंद्र के अध्यादेश के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने की मुहिम में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को शुरुआती सफलता मिलती दिखाई दे रही है. उन्हें अब तक शिवसेना यूबीटी, राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस, जनता दल यूनाइटेड और राष्ट्रीय जनता दल ने इस मसले पर साथ देने का भरोसा दिया है. आप को वामपंथी दलों का साथ मिलना लगभग तय है. कांग्रेस ने इस मसले पर अभी कोई स्टैंड नहीं लिया है. दिल्ली इकाई आप को साथ देने के खिलाफ है. वहीं कांग्रेस केंद्रीय नेतृत्व का कहना है कि अभी उसने इस मसले पर अंतिम फैसला नहीं लिया है. दिल्ली के अलावे भी कई राज्यों के नेता आप को रियायत देने के मूड में नहीं हैं. यानी कांग्रेस अभी असमंजस में है, लेकिन ज्यादा संभावना इसी बात की है कि पार्टी आप से दूरी बनाए रखेगी.
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