New Delhi: दिल्ली के करोल बाग के बैंक स्ट्रीट में में साल 1927 से स्थापित एक प्राइमरी स्कूल को तोड़कर उसकी जगह कॉमर्शियल शॉप, रिटेल स्पेस, फूट कोर्ट और बहुमंजिला कार पार्किंग के निर्माण के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है. वकील और कार्यकर्ता अमित साहनी ने उत्तरी दिल्ली नगर निगम (एनडीएमसी), दिल्ली सरकार, दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) और ओएमटेक कंस्ट्रक्शन एंड आई इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड के खिलाफ याचिका दायर की है. कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए याचिका को 2 मई, 2022 के लिए सूचीबद्ध किया गया है.
NDMC ने रखा मल्टीलेवल पार्किंग बनाने का प्रस्ताव
याचिका में कहा गया है कि एनडीएमसी ने अक्टूबर 2021 में नगर विद्यालय के भवन को गिराकर बहुस्तरीय पार्किंग बनाने का प्रस्ताव रखा है. दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा मल्टीलेवल पार्किंग के निर्माण के लिए जारी निर्देशों की आड़ में 4200 वर्ग मीटर के स्कूल की जमीन ओमटेक को 181 करोड़ रुपये में बेची गई थी. याचिका में कहा गया है कि 2019 में एनडीएमसी ने छात्रों को शिव नगर के दूसरे स्कूल में स्थानांतरित करके स्कूल की इमारत का उपयोग करना बंद कर दिया, जो केवल 1420 वर्ग मीटर में बना हुआ है. इस स्कूल का आकार पिछले स्कूल की तुलना में काफी कम है और इसमें खेल के मैदान और हरित क्षेत्र जैसी बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं. इसके अलावा याचिका में कहा गया है कि शिवनगर स्कूल में काफी भीड़भाड़ है क्योंकि कोरोना महामारी के बाद अधिकांश माता-पिता निजी स्कूलों का खर्च उठाने में सक्षम नहीं हैं और अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भेज रहे हैं.
वंचिंत वर्गों के संवैधानिक अधिकारों पर पड़ेगा प्रतिकूल प्रभाव
याचिका में यह भी कहा गया है कि प्रतिवादी OMTECH एक फूड कोर्ट, दुकानों और कार्यालयों के साथ एक वाणिज्यिक भवन के रूप में परियोजना का विज्ञापन कर रहा है. विज्ञापन के अनुसार, पार्किंग भूमिगत होगी और केवल 500 वाहनों के लिए होगी. यह क्षेत्र की पार्किंग की जरूरत के लिए अपर्याप्त होगा. याचिका में कहा गया है कि एनडीएमसी और दिल्ली सरकार 14 साल से कम उम्र के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने के लिए बाध्य हैं और डीसीपीसीआर बाल अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक वैधानिक निकाय है. एनडीएमसी ने स्कूल की जमीन को नियमों का उल्लंघन करते हुए बेच दिया है और उसके खिलाफ हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली सरकार, डीसीपीसीआर द्वारा पारित निर्देशों के अनुसार कोई कार्रवाई नहीं हो रही है. इससे समाज के उन वंचित वर्गों के संवैधानिक अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा जिनके बच्चे सरकारी स्कूलों में पढ़ते हैं.
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