Delhi News: क्यों चर्चा में हैं 28 फरवरी को रिटायर होने जा रहीं दिल्ली पुलिस की ACP सुरिंदर जीत कौर?
ACP Surinder Jeet Kaur: सुरिंदर जीत कौर 110 से ज्यादा लड़कियों को देह व्यापार के चंगुल से आजाद करा चुकी हैं. उन्हें 2012 में राष्ट्रपति पुलिस पदक से सम्मानित किया गया.
ACP Surinder Jeet Kaur: दिल्ली पुलिस (Delhi Police) में एसीपी के पद पर तैनात सुरिंदर जीत कौर (Surinder Jeet Kaur) 38 साल दिल्ली पुलिस में सेवा देने के बाद इस महीने 28 फरवरी को रियाटर हो रही हैं. इस दौरान उन्होंने अपने करियर में कई उतार-चढ़ाव देखे और इन उतार-चढ़ावों के बीच उन्होंने अपनी ड्यूटी को बड़ी ही ईमानदारी और निष्ठा के साथ निभाया साथ ही कई उल्लेखनीय कार्य भी किये. उनके द्वारा किए गए कार्यों ने समाज को एक नई दिशा दी. सामाजिक उत्थान के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों की वजह से उन्हें कई बार पुरस्कारों से भी नवाजा गया. आइए जानते हैं दिल्ली पुलिस में कैसा रहा उनका कार्यकाल और उनके नाम क्या रहीं उपलब्धियां.
शानदार रहा सब इंस्पेक्टर से एसीपी तक का सफर
सुरिंदर जीत कौर का जन्म 05 फरवरी 1963 को हुआ था और 29 जुलाई 1985 को वह बतौर सब इंस्पेक्टर दिल्ली पुलिस में शामिल हुईं. ट्रेनिंग के दौरान ही उन्हें पीटीसी, झरोडा कलां में बेस्ट कैडेट और लॉ एग्जाम में प्रथम आने पर उपराज्यपाल द्वारा सम्मानित किया गया था. 18 अप्रैल 1994 में उन्हें पदोन्नत कर इंस्पेक्टर बनाया गया. अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने कड़ी मेहनत के साथ खुद को मिलीं जिम्मेवारियों का कुशलता के साथ निर्वहन किया.
110 से ज्यादा लड़कियों को देह-व्यापारियों के चंगुल से किया आजाद
उन्होंने लोदी कॉलोनी थाने में एसएचओ के पद पर रहते हुए कई अहम जिम्मेदारियों और कार्यों को अंजाम दिया जिसके बाद उन्हें संवेदनशील थाना कमला मार्केट का एसएचओ नियुक्त किया गया जहां वो 24 अगस्त 2009 से 17 अक्टूबर 2011 तक तैनात रहीं. इस दौरान उन्होंने बेहतरीन साहस और कर्तव्य निष्ठा का उदाहरण पेश करते हुए जीबी रोड स्थित रेड लाइट एरिया के वेश्यालयों से 110 लड़कियों को देह का व्यापार कराने वालों के चुंगल से छुड़ाया. उनके इस अभियान में "रेस्क्यू फाउंडेशन" और "शक्ति वाहिनी" एनजीओ ने साथ दिया.
अमानवीय स्थिती में काम कर रहे 90 बच्चों को छुड़ाया
सुरिंदर जीत कौर लगातार कार्यस्थल पर महिलाओं को उत्पीड़न की जिंदगी से बचा कर उनके जीवन में बदलाव लाने और उसे बेहतर बनाने के लिए प्रयासरत रहीं. इस दौरान उन्होंने ना केवल उनका पुनर्वास किया बल्कि अपने कार्य क्षेत्र से बाहर जा कर निजी स्तर पर उनमें से कुछ की शादी भी कराई. इसके अलावा उन्होंने "बचपन बचाओ आंदोलन" और "चाइल्ड लाईन हेल्प लाईन" एनजीओ की सहायता से 90 से ज्यादा नाबालिग बच्चों को बचाया जो अमानवीय हालात में फैक्ट्रियों में 'बाल मजदूर' के रूप में कार्य कर रहे थे.
राष्ट्रपति पुलिस पदक से किया गया सम्मानित
उत्कृष्ट तरीके से ड्यूटी को अंजाम देते हुए उन्होंने जिस तरह से कई मौकों पर लड़कियों और बच्चियों को बचाया उसके लिए ना केवल आम लोगों ने उसकी प्रशंसा की बल्कि विदेशी मीडिया ने भी इसकी काफी सराहना की. उन्हें समाज, गरीब लड़कियों और बच्चों के प्रति किये गए योगदान के लिए सम्मानित किया गया. अपने काम से ना केवल उन्होंने खुद सम्मान अर्जित किया बल्कि अपने कार्यकाल के दौरान राजधानी दिल्ली के 186 थानों में से कमला मार्केट थाने को सबसे बेहतरीन थाना होने का भी सम्मान दिलाया. उनकी उत्कृष्ट और मेधावी सेवाओं के लिए 2012 में स्वतंत्रता दिवस के मौके पर उन्हें राष्ट्रपति पुलिस पदक से नवाजा गया.
लगातार महिलाओं की बेहतरी के लिए काम किया
कमला मार्केट थाने से ट्रांसफर होने के बाद उन्हें अक्टूबर 2011 में नानकपुरा के स्पेशल पुलिस यूनिट फ़ॉर वीमेन एंड चिल्ड्रेन में भेजा गया जहां उन्होंने जरूरतमंद महिलाओं की खूब सहायता की. 2014 में प्रमोशन और ट्रांसफर के बाद वो नई दिल्ली डिस्ट्रिक्ट में तैनात की गईं, जहां उन्होंने महिलाओं से संबंधित सभी मामलों का बेहतरीन तरीके से निपटारा किया. इसके बाद 2017 में उनका तबादला साउथ ईस्ट डिस्ट्रिक्ट के क्राइम अगेंस्ट वीमेन सेल में किया गया जहां उन्होंने पूरे जोश और उत्साह के साथ उन जरूरतमंद महिलाओं की सहायता की जो दहेज संबंधित मामलों, घरेलू हिंसा आदि से पीड़ित थीं.
जब 2020 में कौर पर टूटा दुखों का पहाड़
इस बेहद संवेदनशील और जिम्मेदार महिला पुलिस अधिकारी के लिए साल 2020 एक बहुत बड़ा सदमा लेकर आया जिसने उन्हें अंदर तक तोड़ दिया. दरअसल, कोरोना काल के दौरान उन्हें साउथ ईस्ट डिस्ट्रिक्ट के कोविड-19 सेल का इंचार्ज बनाया गया था जिसमें उनकी ड्यूटी संक्रमित लोगों और वो किस-किस से मिले, उनके रिकॉर्ड को दर्ज कर उन्हें ट्रैक करना था. इसी दौरान वो, उनके पति, पिता और घर के कुछ और सदस्य इस महामारी के चपेट में आ गए थे. सब तो ठीक हो गए, लेकिन उनके पति एम्स ट्रॉमा में 26 दिन तक मौत से जंग लड़ने के बाद हार गए. उस दौरान सुरिंदर जीत कौर भी वहीं दूसरे वार्ड में एडमिट थीं लेकिन उनकी आखिरी बार वीडियो कॉल के माध्यम से ही फोन पर बात हो सकी.
नहीं जी सकीं अपने सपनों को
अपने पति की मौत के बाद वो काफी टूट चुकी थीं. 2023 में उनके रिटायरमेंट में बाद दोनों कनाडा जा कर अपने बेटे के पास सैटल होने वाले थे लेकिन जिंदगी ने उन्हें ये मौका नहीं दिया कि वो अपनी उस जिंदगी को अपने पति और बेटे के साथ जी सकें, जिसे वो अपने कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए नहीं जी सकीं.
जीवन के सबसे बुरे दौर को अकेले ही झेला
अपने जीवन के सबसे कठिन दौर में जब उन्हें सहारे की जरूरत थी तब वह बिल्कुल अकेली पड़ चुकी थीं, कोरोना काल में तात्कालिक यात्रा पाबंदियों की वजह से ना तो वो अपने बेटे के पास कनाडा जा पाईं और ना ही उनका बेटा ही उनके पास आ पाया. धीरे-धीरे उन्होंने अपने पति के मौत के गम को भुला दिया और एक बार फिर से पूरी कर्मठता के साथ अपनी नौकरी को करने लगीं.
अधिकारियों और मीडिया ने भी की उनके कामों की प्रशंसा
उनके प्रयासों और उपलब्धियों को उनके वरिष्ठ अधिकारियों और मीडिया द्वारा भी सराहा गया. उनके वरिष्ठ अधिकारियों जॉइंट सीपी देवेश चंद्रा श्रीवास्तव और डीसीपी आर.पी. मीणा ने उनकी प्रशंसा में पुलिस रिकॉर्ड में उनके लिए बेहतरीन शब्दों का प्रयोग किया और उन्हें पुलिस डिपार्टमेंट से प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया. उनका जीवन पुलिसकर्मियों के साथ महिलाओं के लिये भी एक प्रेरणा स्वरूप है.
वर्तमान में सुरिंदर जीत कौर सिक्योरिटी यूनिट में एसीपी के पद पर तैनात हैं और देश के नेताओं और महत्वपूर्ण शख्सियत की वीवीआईपी सिक्योरिटी की जिम्मेदारी संभाल रही हैं. 28 फरवरी को वह भले ही रिटायर हो रही हों लेकिन उनके द्वारा समाज की बेहतरी के लिए किये गए कार्य हमेशा ही दिल्ली पुलिस, आम लोगों खास तौर पर महिलाओं को प्रेरित करते रहेंगे. हंमे उम्मीद है कि पुलिस सेवा से रिटायर होने के बाद वो जहां भी रहेंगी अपने स्वभाव की वजह से लोगों की जिंदगियों को बेहतर बनाने के लिए प्रयास करती रहेंगी.
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