Ramadan 2022: जानिए- यूपी, दिल्ली, बिहार में कब से रमजान की शुरुआत हो सकती है
Ramadan 2022: दिल्ली, यूपी, बिहार सहित पूरे देश में पवित्र रमजान महीने की शुरुआत 3 अप्रैल से होगा. जबकि केरल में रमजान एक दिन पहले 2 अप्रैल को होगा. हालांकि इसकी शुरुआत चांद देख कर तय होगी.
Ramadan 2022: पवित्र रमजान (Holy Ramadan) महीने में कुछ ही दिन दिन और बाकी हैं. यह महीना मुसलमानों (Muslims) के लिए सबसे पवित्र माना जाता है. इस्लामिक कैलेंडर (Islamic Calendar) का नौवां महीना रमजान है. इस पूरे महीने में दुनिया भर के मुसलमानों के जरिये राष्ट्रीयता, जातीयता, नस्ल, रंग, भेद को परे रख कर, समाज के प्रति एकजुटता दिखाते हुए, सारे बुरे कामों और आत्मिक अशुद्धियों को दूर कर रोज़ा (Fasting) और प्रार्थना का आयोजन किया जाता है. इस महीने में रोजेदारों को सूरज के उगने से लेकर, सूर्यास्त तक खाने पीने की अनुमति नहीं होती है.
उत्तर प्रदेश, दिल्ली और बिहार में कब है रमजान
इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार, चांद देख कर रमजान के पवित्र महीने की शुरूआत होती है, जबकि इस्लामिक कैलेंडर का नौवां महीना रमजान है. इस्लामिक कैलेंडर और सोलर कैलेंडर की तुलना करने पर, रमजान की पहली तारीख रविवार 3 अप्रैल को पड़ती है. संभव है कि, इस बार रमजान के पहले रोजे की शुरुआत इसी दिन से हो, हालांकि रमजान महीने की तारीख चांद दिखने पर ही तय होगी. रमजान का आखिरी रोज़ा 3 मई को खत्म हो सकता है.
केरल में एक दिन पहले से शुरू होता है रमजान
वेसे तो पूरे भारत में रमजान की शुरुआत एक ही दिन से होती है, लेकिन केरल एकमात्र ऐसा राज्य है जहां रमजान दूसरे राज्यों के मुकाबले एक दिन पहले शुरू होता है. केरल के मुसलमान मध्य एशिया यानि अरब के मुताबिक रोज़ा रखते हैं. ऐसी मान्यता है, चांद निकलने का मतला अरब सागर और मध्य एशिया है, जिसमें केरलवासी भी अपने आपको शामिल करते हैं.
क्यों है विशेष रमजान
- रमजान का इस्लाम में एक विशेष महत्त्व है. इस महीने में दुनिया भर के मुसलमान के जरिये रोज़ा यानि उपवास की प्रथा का पालन सबसे महत्वपूर्ण प्रथाओं में से एक है. रमजान का रोजा इस्लाम के पांच स्तंभ तौहीद (एकेश्वरवाद), सलात (नमाज), जकात (दान), रोज़ा और हज़ में से एक है.
- इस्लाम की सबसे पवित्र पुस्तक कुरआन की पहली आयत रमजान के महीने में पैगंबर हजरत मोहम्मद पर उतारी गई थीं. रोज़ा, रोजेदारों को आध्यात्मिकता और दान पर ध्यान लगाने के लिए प्रेरित करता है. यह रोज़ेदारों में आत्मसंयम और गरीबों और मजलूमों के दर्द को समझने में मदद करता है, साथ ही यह रोजेदारों के जिस्म और दिमाग को शुद्ध करने में मदद करता है.
- रोज़ा” शब्द का हिंदी अर्थ “व्रत” होता है. जबकि रोज़ा का अरबी में अर्थ “सोम” होता है और इसी शब्द से रोज़ा की उत्पत्ति हुई है. “सोम” का शब्दकोश में जो अर्थ है वह है, “किसी चीज से रुकना या किसी चीज को छोड़ देना है.” इसी प्रकार रोजेदार वह है जो स्वयं को खाने-पीने और बुरे व्यसनों से रोकता है जैसे झूट बोलना, निंदा करना, गलत देखना, गलत बात करना आदि आदि.
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