Delhi Ramleela: यहां दादा रावण से होता है पोते राम-लक्ष्मण का सामना! महिलाओं के किरदार निभाते हैं पुरुष
Delhi Ramleela: महावीर प्रसाद गुप्ता ने बताया कि सन 1970 में जब वे दिल्ली आए तो उन्होंने किशन पहलवान के साथ यहां रामलीला करवानी शुरू की. वे पिछले 50 सालों से रामलीला में अलग-अलग किरदार निभा रहे हैं.
Delhi Ramleela: नवरात्र (Navratri 2022) शुरू होते ही रामलीला (Ramleela) का मंच भी सजने लगा है. देश की राजधानी दिल्ली (Delhi) में भी अलग-अलग जगहों पर रामलीला होता है. यहां तो कई रामलीला ऐसी हैं, जहां एक ही परिवार के कई लोग मंच पर अलग-अलग किरदार निभाते हैं. इन्हीं में से एक तिकोना पार्क अखाड़ा मोरी गेट (Mori Gate) की रामलीला है. इस रामलीला में 73 साल के महावीर प्रसाद गुप्ता (Mahaveer Prasad Gupta) रावण (Ravana) की भूमिका निभाते हैं, तो वहीं उनके पोते रुद्राक्ष भगवान राम (Lord Ram) और आरव लक्ष्मण (Laxman) का किरदार निभाते हैं. मोरी गेट की भारती आदर्श रामलीला कमेटी के प्रधान महावीर प्रसाद गुप्ता का कहना है कि उन्होंने 8 साल की उम्र में रामलीला में किरदार निभाना शुरू किया था.
महावीर प्रसाद गुप्ता ने बताया कि सन 1970 में जब वे दिल्ली आए तो उन्होंने किशन पहलवान के साथ यहां रामलीला करवानी शुरू की. महावीर प्रसाद गुप्ता पिछले 50 सालों से रामलीला में अलग-अलग किरदार निभाते आ रहे हैं. रामलीला का मंच सजते ही महावीर प्रसाद गुप्ता खुद को रोक नहीं पाते और इस उम्र में भी मंच पर पहुंच जाते हैं. बचपन में वानर सेना का हिस्सा रहे महावीर प्रसाद गुप्ता भगवान राम, दशरथ के साथ-साथ परशुराम का किरदार निभा चुके हैं. हालांकि, पिछले 25 सालों से लगातार रावण बन रहे हैं.
दादा को देख पोता भी रामलीला में निभाने लगे किरदार
इस बीच महावीर प्रसाद गुप्ता से प्रेरित होकर उनके पोते रुद्राक्ष और आरव भी रामलीला में किरदार निभाने लगे. रामलीला में भगवान राम, जिसका किरदार रुद्राक्ष और लक्ष्मण का किरदार निभाने वाले आरव का सामना रावण का किदार निभाने वाले अपने दादा महावीर प्रसाद गुप्ता से होता है. यही नहीं मोरी गेट रामलीला की खासियत यह भी है कि यहां आज भी सीता से लकर मंदोदरी और कौशल्य से लेकर कैकई तक के सारे किरदार पुरुष ही निभाते हैं. भारती आदर्श रामलीला कमेटी की रामलीला में हारमोनियम, ढोलक और तबले की जुगलबंदी के बीच कलाकार चौपाइयों का गायन करते हुए अभिनय करते हैं. कमेटी की महासचिव सपना टांक पहलवान कहती हैं कि 1969 में उनके पिता किशन पहलवान ने इसकी स्थापना की थी. पिता के निधन के बाद वह भाई के साथ इस विरासत को आगे बढ़ी रही है.
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