Delhi Lok Sabha Elections: उत्तर पूर्वी दिल्ली में सांप्रदायिक दंगों को चार साल बीते चुके हैं. इन दंगों में अपना सब कुछ लुटाने वाले पीड़ित लोग धीरे-धीरे जिंदगी को पटरी पर लाने की कोशिशों में जुटे हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव ने उनके घावों को फिर से हरा कर दिया है. चुनावी चर्चा के लिए दिल्ली दंगा के पीड़ितों का कहना है कि इस घटना को हुए चार हो गए, लेकिन अभी तक इससे प्रभावितों को न्याय नहीं मिला.


उत्तर पूर्व दिल्ली निवासी 57 वर्षीय सलीम कस्सार ने न्यूज एजेंसी पीटीआई से बातचीत में कहा, ‘दंगों में मेरे भाई की हत्या कर उसका शव जला दिया गया. दस महीने बाद उसकी लाश के नाम पर अस्पताल ने एक टांग थमा दी. दंगों को चार साल बीत गए लेकिन मुझे और मेरे जैसे बहुत से लोगों को कोई न्याय नहीं मिला. मुझे इन चुनावों से नेताओं से कोई उम्मीद नहीं है’’


जरूरत के समय नेता लोग कहां थे?


चुनाव प्रचार के दौरान विभिन्न दलों के नेताओं से दंगा पीड़ित लोगों की केवल एक ही शिकायत है. जब हमारी जान पर बनी थी तो ये कहां थे?  दंगों के दौरान अपने भाई को खोने वाले 57 साल के कस्सार स्थानीय नेताओं से खासे खफा हैं. वह आरोप लगाते हैं कि हिंसा के बाद कोई भी नेता न उनसे मिलने आया और न ही उनकी मदद की. 


उन्होंने पीटीआई-भाषा को बताया कि हिंसा से पहले वह शिव विहार इलाके में रहते थे. वहां पर लोहे की अलमारी बनाने का उनका कारखाना था, जिसे दंगाइयों ने जला दिया. इसके बाद वह शिव विहार छोड़ मुस्तफाबाद में अपने परिवार के साथ किराये के मकान में रह रहे हैं. एक दुकान पर नौकरी कर अपनी गुजर बसर कर रहे हैं. कस्सार ने यह भी दावा किया कि दंगे में उनके भाई अनवर कस्सार की हत्या कर शव को जला दिया गया था. हिंसा के 10 महीने बाद काफी मशक्कत और डीएनए जांच के बाद एक अस्पताल के मुर्दाघर से उनके भाई की सिर्फ एक टांग मिली थी.    


राष्ट्रीय राजधानी के उत्तर पूर्वी हिस्से में 23 फरवरी 2020 को संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के समर्थकों और विरोधियों के बीच मौजपुर इलाके में झड़प हुई थी. इसके अगले दिन 24 फरवरी 2020 को इन झड़पों ने सांप्रदायिक दंगों का रूप ले लिया और हिंसा का तांडव 26 फरवरी 2020 की शाम तक चला था. हिंसा में एक पुलिसकर्मी समेत 53 लोगों की मौत हुई थी. जबकि करीब 600 लोग घायल हुए थे. दंगाइयों ने बड़े पैमाने पर घरों, दुकानों और गाड़ियों को आग लगा दी और लूटपाट की थी.


अब न्याय की कोई उम्मीद नहीं - कस्सार


लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने अपने दो बार के मौजूदा सांसद मनोज तिवारी को फिर से टिकट दिया है. जबकि आम आदमी पार्टी (आप) और कांग्रेस ने ‘इंडिया’ गठबंधन के तहत कन्हैया कुमार को मैदान में उतारा है. विभिन्न राजनीतिक दलों के उम्मीदवार हाथ जोड़कर वोट तो मांग रहे हैं, लेकिन दंगों के चार साल बाद भी इंसाफ का इंतजार कर रहे पीड़ितों को इस दिशा में अपने प्रतिनिधियों से मदद मिलने की कोई उम्मीद नहीं है.


उत्तर पूर्वी दिल्ली के पीड़ित लोग अब आपसी भाई चारे पर जोर देते हैं, लेकिन कहते हैं कि दंगों के बाद माहौल खराब हो चुका है. कस्सार ने आरोप लगाया कि नेताओं की वजह से ही माहौल इतना खराब हुआ कि भाई-भाई को देखने को राजी नहीं है. लोकसभा चुनाव में नेताओं से उम्मीद के सवाल पर उन्होंने कहा कि उन्हें किसी नेता से कोई उम्मीद नहीं है, क्योंकि नेता वोट मांगने के लिए हाथ जोड़ते हैं, लेकिन उसके बाद जरूरत पड़ने पर काम नहीं आते.


उत्तर पूर्वी दिल्ली संसदीय सीट के तहत आने वाले 10 विधानसभा क्षेत्रों में से सात सीलमपुर, बाबरपुर,घोंडा, गोकलपुरी (एससी), मुस्तफाबाद, करावल नगर और रोहताश नगर दंगों की चपेट में थे. यह दंगे 2020 में दिल्ली विधानसभा चुनाव का परिणाम आने के कुछ दिनों बाद भड़के थे. दंगा प्रभावित घोंडा, करावल नगर और रोहताश नगर विधानसभा क्षेत्रों में भारतीय जनता पार्टी ने जीत दर्ज की थी. जबकि सीलमपुर, बाबरपुर, गोकलपुरी (एससी) और मुस्तफाबाद में आम आदमी पार्टी (आप) जीती थी. 


सरकार से नुकसान का कोई मुआवजा नहीं मिला - मनोज कुमार


खजूरी इलाके में रहने वाले एक अन्य पीड़ित मनोज कुमार भी सरकार और मौजूदा सांसद से नाराज दिखे. उन्होंने बताया कि 26 फरवरी 2020 को उनकी बहन की शादी थी और इलाके के ही एक 'मैरिज हॉल' में करीब पांच लाख रुपये का शादी का सामान रखा हुआ था जिसे 25 फरवरी को दंगाइयों ने जला दिया. उन्होंने कहा कि चार साल बाद भी मुकदमा चल रहा है और अब तक न्याय नहीं मिला है.


मनोज कुमार को दावा है कि सरकार से नुकसान का कोई मुआवजा उन्हें नहीं मिला. मनोज कुमार ने कहा 'सरकार और सांसद से कोई उम्मीद नहीं है, जिन्होंने आज तक कुछ नहीं किया, वे आगे भी कुछ नहीं करेंगे.'


कसूरवार को मिले सजा - मोहम्मद वकील 


शिव विहार में रहने वाले और तेजाब हमले में अपनी आंखें गंवाने वाले 52 वर्षीय मोहम्मद वकील का मानना था कि यह चुनाव का दौर है. नेता आएंगे और आश्वासन देंगे लेकिन असल में कुछ नहीं करेंगे . उन्होंने कहा कि अब तक तो उनके पास किसी भी पार्टी का उम्मीदवार नहीं आया है और अगर वे आएंगे तो “ हम इंसाफ की मांग रखेंगे, क्योंकि कसूरवार को सजा मिलनी चाहिए.” वकील ने जोर देकर कहा कि हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सबको मिलकर रहना चाहिए और नफरत की राजनीति नहीं होनी चाहिए.


25 फरवरी 2020 को दंगाइयों द्वारा फेंकी गई तेज़ाब से भरी बोतल वकील के चेहरे पर आकर लगी थी जिससे उनकी आंखें चली गई. इन दंगों में उनके तीन मंजिला मकान को भी आग लगा दी गई थी. उन्होंने दावा किया कि सरकार से उन्हें पूरा मुआवजा नहीं मिला और इलाज में भी कोई मदद नहीं मिली. उन्होंने कहा कि एक संस्था ने उनका चेन्नई में इलाज कराया, जिससे अब वह अपने रोजमर्रा के काम खुद कर सकते हैं.  दिल्ली की सभी सात लोकसभा सीट पर 25 मई को चुनाव होगा. उत्तर-पूर्वी दिल्ली संसदीय क्षेत्र में 24,63,159 पात्र मतदाता हैं, जिनमें 11.36 लाख से अधिक महिलाएं हैं.


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