Delhi News: दिल्ली की एक अदालत ने 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगा (2020 Delhi Riots) मामले में 10 लोगों को आरोपों से बरी कर दिया है. इन आरोपों में गैरकानूनी तरीके से इकट्ठा होना और आगजनी शामिल है. अदालत ने कहा कि केवल तीन पुलिस गवाहों के बयानों पर भरोसा करना सही नहीं है. कोर्ट ने कहा कि आरोपी व्यक्तियों की पहचान को लेकर तीन पुलिसकर्मियों और एक जांच अधिकारी के बनावटी दावे ने संदेह पैदा किया है.


अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला 10 आरोपियों के खिलाफ मामले की सुनवाई कर रहे थे, जिनके खिलाफ गोकलपुरी पुलिस स्टेशन ने आगजनी और घर में घुसने समेत कई अपराधों से जुड़ा केस दर्ज किया था. अभियोजन पक्ष ने कोर्ट में कहा था कि आरोपी एक दंगाई भीड़ का हिस्सा थे, जिसने तोड़फोड़ की थी. इसने कहा था कि 24 फरवरी, 2020 के सांप्रदायिक दंगों के दौरान बृजपुरी के चमन पार्क इलाके में एक इमारत की पहली मंजिल में लूटपाट की थी और पिज्जा की दुकान में आग लगा दी गई थी. 


चश्मदीदों के बयान में दिखा विरोधाभास
सेशन कोर्ट ने मौजूदा सबूतों को ध्यान में रखते हुए कहा कि दो चश्मदीदों ने दुकान को दंगाइयों द्वारा जलाए जाने पर विरोधाभासी रुख दिखाया है और इससे उनकी विश्वसनीयता पर सवाल उठता है. हेड कांस्टेबल संजय ने कांस्टेबल विपिन और सहायक उप-निरीक्षक हरि बाबू के साथ ड्यूटी पर होने की बात कही थी जिसपर अदालत ने कहा कि दिन के ड्यूटी रोस्टर के अनुसार, विपिन और बाबू को चमन पार्क में ड्यूटी सौंपी गई थी, जबकि संजय को जौहरीपुर में ड्यूटी सौंपी गई थी.


अभियोजन पक्ष के पास साक्ष्य की कमी- कोर्ट
कोर्ट ने कहा कि यह साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं है कि संजय को दो अन्य पुलिस अधिकारियों के साथ ड्यूटी ज्वाइन करने का निर्देश दिया गया था. कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष के साक्ष्य में एक और कमी है. ऐसे में चश्मदीदों द्वारा किए गए दावे की विश्वसनीयता प्रभावित होती है.


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