Delhi Riots 2020: दिल्ली दंगे में आरोपी बाप-बेटा बरी, बयान से मुकर गए थे गवाह, कोर्ट ने पुलिस की मानसिकता पर उठाए सवाल
Delhi Riots: दिल्ली की अदालत (Delhi Court) ने सबूतों के अभाव में 2020 में घटित उत्तर पूर्वी दिल्ली सांप्रदायिक दंगे के दौरान चोरी और आगजनी के आरोपी पिता-पुत्र को सभी आरोपों से बरी किया.
Delhi Riots 2020 News: दिल्ली की एक अदालत ने चार साल पहले उत्तर पूर्वी दिल्ली के सांप्रदायिक दंगे के दौरान दंगा, चोरी और आगजनी के आरोपों से पिता-पुत्र की जोड़ी को बरी कर दिया. अदालत ने कहा कि पुलिस आरोपियों के खिलाफ पुख्ता सबूत नहीं पेश कर पाई. इस मामले पुलिस के बयान पूर्व निर्धारित मानसिकता से प्रेरित लगते हैं.
अदालत ने ये भी कहा कि इस मामले में गवाह अपने बयान से मुकर गए. दो पुलिसकर्मियों के बयान और घटनाक्रम का समय एक-दूससे से मैच नहीं करते. ऐसे में पीड़ित को कानून की नजर में आरोपी नहीं माना जा सकता है.
इस मामले में दिल्ली पुलिस ने बाप-बेटे पर आरोप लगाया था कि दोनों दिल्ली के खजूरी खास इलाके में दिल्ली दंगा के दौरान मारपीट, चोरी और आगजनी करने वाली भीड़ का हिस्सा थे, जिसने 25 फरवरी को खजूरी खास की गली नंबर 29 में एक विशेष समुदाय के लोगों की संपत्तियों की पहचान करने के बाद शिकायतकर्ताओं के घरों सहित अन्य घरों में आग लगा दी थी.
गवाहों का आरोपियों को पहचानने से इनकार
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश पुलस्त्य प्रमाचला ने कहा कि इस मामले में चार शिकायतकर्ताओं सहित सभी सरकारी गवाह मुकर गए और दंगाइयों के बीच दोनों को देखने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा कि यह मामला दो पुलिस कर्मियों, बीट कांस्टेबल प्रदीप कुमार और कालिक तोमर के बयानों पर टिका है, जिन्होंने 9 मार्च, 2020 को दोनों आरोपियों को स्टेशन के लॉक-अप में देखने के बाद जांच अधिकारी (आईओ) को सूचित किया और कहा कि आरोपियों को उन्होंने 25 फरवरी को दंगाई भीड़ का हिस्सा के रूप में देखा था.
पुलिस की भूमिका पर उठाए सवाल
अदालत ने नोट किया कि कालिक तोमर ने दंगों के बाद पहली बार दोनों आरोपियों को लॉक-अप में देखने के बारे में भी बयान दिया. अदालत में जिरह के दौरान कालिक ने उसी पुलिस स्टेशन में एक अन्य दंगा मामले (एफआईआर संख्या 121/20) में पांच मार्च को दोनों आरोपियों को गिरफ्तार करने वाली टीम का हिस्सा होने की बात स्वीकार की.
अदालत ने कहा यह संभव नहीं था कि आईओ की टीम में होने के नाते, उन्हें वर्तमान मामले में दर्ज एफआईआर के बारे में पता नहीं था. इसमें कहा गया है कि कालिक ने झूठा दावा किया है कि उसने दंगों की घटनाओं के बाद दोनों आरोपियों को पहली बार नौ मार्च को ही देखा था. वहीं, बीट कांस्टेबल प्रदीप कुमार के बयान के बारे में अदालत ने कहा कि जब पांच मार्च को पिता-पुत्र को गिरफ्तार किया गया था, तब उसने दोनों को नहीं पहचाना था.
अदालत ने कहा मैं इस मामले में दोनों आरोपियों को संदेह का लाभ पाने का हकदार पाता हूं. इसलिए, इस मामले में उन दोनों को उनके खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों से बरी किया जाता है.
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