Delhi Riots: उमर खालिद की कोर्ट में दलील- 'गवाहों की सुनी-सुनाई बातों के आधार पर दो साल से जेल में हूं'
उमर खालिद ने मंगलवार को दिल्ली उच्च न्यायालय में दलील दी कि वह दो साल से कुछ संरक्षित गवाहों की सुनी-सुनाई बातों के आधार पर दिए गए बयान की वजह से जेल में है और इन बातों के समर्थन में कुछ आधार नहीं है.
Delhi News: दिल्ली में इस साल फरवरी में हुई हिंसा के सिलसिले में यूएपीए के तहत गिरफ्तार जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के पूर्व छात्र उमर खालिद (Umar Khalid) ने दिल्ली हाई कोर्ट में दलील दी कि वह दो साल से कुछ संरक्षित गवाहों की सुनी-सुनाई बातों के आधार पर दिए गए बयान की वजह से जेल में है और इन बातों के समर्थन में कुछ आधार नहीं है.
मंगलवार को न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर की पीठ के समक्ष खालिद के वकील ने कहा, "अभियोजन पक्ष को वास्तव में यह तय करने की जरूरत है कि मेरे खिलाफ क्या मामला है." पीठ खालिद की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें निचली अदालत की ओर से उसकी जमानत याचिका को खारिज करने को चुनौती दी गई है. निचली अदालत ने 24 मार्च को मामले में खालिद की जमानत याचिका खारिज कर दी थी. वकील ने कहा, "मैं दो साल से जेल में हूं क्योंकि आपके पास बयान है."
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खालिद के वकील ने कहा कि संरक्षित गवाह का बयान एकमात्र ऐसा बयान था जिसमें उसके खिलाफ कुछ आरोप हैं लेकिन यह सुनी-सुनाई बातें हैं और इनमें पुष्टि की कमी है. वकील ने गवाह का बयान पढ़ा और कहा, 'यह एक ऐसा मामला है जहां मुझे फंसाने के लिए बयान दिया गया है. इसका दिल्ली में हिंसा से कोई संबंध नहीं है."
वकील ने कहा, "इस शख्स ने अपने बयान में माना है कि उसने 22 दिसंबर 2019 को चक्का जाम की अपील की थी और फिर अपने आपको पाक साफ बताने वाला बयान दिया और मुझे फंसाने की कोशिश की है ताकि उसके पाप धुल जाएं जबकि मेरी उपस्थिति का कोई सबूत नहीं था. यह पूरा मामला सिर्फ संदेशों के जरिए लोगों को यूएपीए के तहत फंसाने का है."
वकील ने दलील दी कि अब किसी भी शख्स के बयान के आधार पर यूएपीए के तहत मामला दर्ज कर लिया जाता है और इसी वजह से खालिद इस मामले में आरोपी है. वकील ने कहा कि इस मामले में पुलिस का दायर आरोप पत्र लच्छेदार और निराधार है. अदालत ने मामले को आगे की सुनवाई के लिए बुधवार को सूचीबद्ध किया है. खालिद के वकील ने सोमवार को दिल्ली हाई कोर्ट में दलील दी कि संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन 'अन्यायपूर्ण कानून' के विरुद्ध था और यह किसी भी तरह से प्राधिकार के खिलाफ कृत्य नहीं था और पुलिस ने उसपर कई कृत्यों के जो आरोप लगाए हैं, वे 'आतंक' के दायरे में आते तक नहीं हैं और प्रदर्शनकारी यूएपीए के तहत परिकल्पित हिंसा को अंजाम नहीं दे रहे थे.
हाई कोर्ट ने इससे पहले खालिद पर 21 फरवरी 2020 को अमरावती में दिए भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ कुछ आपत्तिजनक शब्दों का इस्तेमाल करने के लिए सवाल उठाए थे. खालिद को 13 सितंबर 2020 को गिरफ्तार किया गया था और तब से वह हिरासत में है. खालिद, शरजील इमाम समेत कई लोगों को फरवरी 2020 में उत्तर पूर्वी दिल्ली में भड़के दंगों के सिलसिले में यूएपीए के तहत गिरफ्तार किया गया था. उन पर दंगों की साजिश रचने का आरोप है. इन दंगों में 53 लोगों की मौत हो गई थी और 700 से ज्यादा लोग जख्मी हुए थे. सीएए के समर्थकों और विरोधियों की बीच झड़प होने के बाद उत्तर पूर्वी क्षेत्र के कई इलाकों में हिंसा भड़क गई थी.