Delhi Road Accident Case: दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने एक रोड एक्सीडेंट में अपनी जान गंवा देने वाले साइकिल चालक के परिवार के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कहा है कि दिल्ली परिवहन निगम (DTC) जैसे एक सार्वजनिक परिवहन उपक्रम से अप्रशिक्षित, अक्षम और बिना लाइसेंस वाले ड्राइवरों को बिना सोचे-समझे निर्दोष जनता पर थोपने की उम्मीद नहीं है. हाईकोर्ट ने अपनी अहम टिप्पणी में कहा कि सार्वजनिक परिवहन उपक्रम को विशेष रूप से वैध ड्राइविंग लाइसेंस होने के बावजूद भी अपने संभावित कर्मचारियों के पिछले रिकार्ड की जांच करने की जरूरत है.
दरअसल साल 2011 में 26 साल का एक युवक साकेत में डीटीसी बस की टक्कर में घायल हो गया था, जिसे अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया था. इसके बाद बस के चालक के खिलाफ एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी, जिसमें कहा गया था कि वह वाहन को तेज और लापरवाही से चला रहा था. ऐसे में बस पीछे से आई और युवक को टक्कर मार दी. चार्जशीट से पता चला था कि मौत बस के चालक की लापरवाही से गाड़ी चलाने के कारण हुई. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में मौत का कारण कई चोटों को बताया गया था. साथ ही जांच के दौरान पता चला कि चालक का ड्राइविंग लाइसेंस फर्जी था.
ये भी पढ़ें- Delhi News: दिल्ली की इस मेट्रो लाइन पर सबसे पहले मिलेगी 5G की सुविधा, दो महीने से चल रहा है ट्रायल
मृतक के परिवार को इतने लाख रुपये मुआवजा देने का सुनाया गया था फैसला
इसके बाद मृतक के परिवार ने मोटर वाहन दावा न्यायाधिकरण (दक्षिण जिला, साकेत न्यायालय) का दरवाजा खटखटाया था, जिसने मृतक के परिवार के पक्ष में ब्याज सहित कुल 19,44,600 रुपये का मुआवजा देने का फैसला सुनाया था. डीटीसी ने इस आदेश को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. जस्टिस गौरांग कंठ ने 23 सितंबर को अपने फैसले में कहा कि जब बीमा कंपनी ने बस चालक के विवरण को सत्यापित करने के लिए नोटिस जारी किया, तो डीटीसी ने कोर्ट में सबूत नहीं पेश किया. कोर्ट ने कहा कि सुनवाई और साक्ष्यों से स्पष्ट है कि डीटीसी अपराधी चालक के कौशल को साबित करने के लिए कोई सुबूत नहीं पेश कर सका. यह भी साबित हुआ कि ड्राइवर को नियुक्त करने से पहले उसकी ड्राइविंग क्षमता के साथ ही ड्राइविंग लाइसेंस की वास्तविकता के बारे में कोई आवश्यक जांच नहीं की गई.
बीमा पॉलिसी का उल्लंघन है डीटीसी का काम
कोर्ट ने कहा कि डीटीसी ने बीमा नीति का उल्लंघन किया है और वह अपने आप को देयता से मुक्त नहीं कर सकता है. डीटीसी का यह कार्य बीमा पॉलिसी का उल्लंघन है. पीठ ने कहा कि यहां उल्लेख करना प्रासंगिक है कि संबंधित अवधि में दिल्ली में डीटीसी बसों को तेज और लापरवाही से गाड़ी चलाने के कई मामलों में न सिर्फ आम नागरिकों को गंभीर चोटें आई हैं, बल्कि मौतें भी हुईं, जिन्हें भुलाया नहीं जा सकता है. जस्टिस गौरांग कांत की पीठ ने कहा कि वैध लाइसेंस का होना किसी सरकारी उपक्रम द्वारा ड्राइवरों के रोजगार के लिए बुनियादी योग्यता है. उम्मीद की जाती है कि विशेष प्रशिक्षण पास करने के बाद ही चयनित उम्मीदवारों को रोजगार की पेशकश की जाती है. हाईकोर्ट ने तब दावा न्यायाधिकरण के आदेश में हस्तक्षेप किए बिना डीटीसी की अपील खारिज कर दी.
ये भी पढ़ें- Delhi Pollution: दिल्ली में प्रदूषण से निपटने के लिए सरकार की तैयारी, सीएम अरविंद केजरीवाल ने सुझाया 15 सूत्रीय प्लान