Hand-Foot-Mouth Disease: राजधानी दिल्ली के स्कूलों में हाथ, पैर और मुंह की बीमारी (Hand-Foot-Mouth Disease) को लेकर एडवाइजरी जारी की गई है. दरअसल, हाल के हफ्तों में यहां एचएफएमडी ((HFMD) मामलों में बढ़ोतरी देखी गई थी. ऐसे में अब बच्चों के अभिभावकों को इस वायरस को लेकर जागरूक किया जा रहा है. यह वायरस 10 साल से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित कर रहा है. इसमें बच्चों के हाथ, पैर और मुंह पर छाले पड़ रहे हैं.
चिंता की बात यह है कि इस वायरस के लिए अभी तक कोई वैक्सीन नहीं आई है. हिंदुस्तान टाइम्स अखबार में छपी खबर के मुताबिक संस्कृति स्कूल की प्रिंसिपल ऋचा शर्मा अग्निहोत्री ने कहा कि स्कूल ने अपनी वेबसाइट पर अभिभावकों के लिए एक एडवाइजरी जारी की थी और इसे अभिभावकों के बीच प्रसारित किया था. उन्होंने बताया कि इस वायरस को लेकर पहली एडवाइजरी जारी की जा चुकी है. उन्होंने इसमें अभिभावकों को बताया है कि उन्हें बच्चों को स्कूल भेजते समय किन बातों का ध्यान रखना है.
पांच साल से कम उम्र के बच्चे भी हो रहे प्रभावित
इसके साथ ही स्कूल के इन-हाउस डॉक्टर ने भी इसे लेकर पिछले गुरुवार यानी 4 अगस्त को एडवाइजरी जारी कर इसके लक्षण, इलाज और उपायों को लेकर रूपरेखा तैयार की थी. पिछले एक सप्ताह में जूनियर स्कूल के छात्रों में हाथ, पैर और मुंह की बीमारी (HFMD) के कुछ मामले सामने आए हैं. हालांकि, यह एक दूसरे से नहीं फैलता है लेकिन, पांच साल से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करता है.
बच्चे को रैशेज होने पर डॉक्टर से सलाह लेने की जरूरत
अभिभावकों से अपने बच्चों में एचएफएमडी लक्षणों की जांच करने और क्लास टीचर को इसे लेकर जानकारी देने को कहा गया है. इसके अलावा, माता-पिता से कहा गया है कि वे बच्चों को तब तक स्कूल न भेजें जब तक कि उनके शरीर पर हुए छाले या चकत्ते पूरी तरह से ठीक न हो जाएं और बुखार कम से कम 24 घंटे तक कम न हो जाए. एडवाइजरी में कहा गया है कि किसी भी बच्चे को रैशेज होने पर डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए कि वह संक्रामक है या नहीं.
द इंडियन स्कूल की प्रिंसिपल क्या कहा?
वहीं, द इंडियन स्कूल की प्रिंसिपल तानिया जोशी ने कहा कि उनके स्कूल में एचएफएमडी के मामले दर्ज नहीं किए गए थे लेकिन, माता-पिता में बीमारी को लेकर चिंता थी. हालांकि, स्कूल की तरफ से सभी अभिभावकों को इस बीमारी को लेकर अच्छी तरह से समझा दिया गया है. कक्षाओं को भी दिन में दो बार साफ किया जा रहा है. स्कूल में सुरक्षित वातावरण देने के लिए लगातार फॉगिंग की जा रही है.
वहीं, बाल रोग विशेषज्ञ और बीएल कपूर अस्पताल के प्रमुख सलाहकार आरके अलवधी ने कहा कि शहर में इस साल पहले से ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं. उन्होंने कहा कि अगर किसी बच्चे को रैशेज है तो उसे जल्द से जल्द आइसोलेट किया जाए. यह बीमारी छोटे बच्चों, प्रीस्कूल या शुरुआती स्कूल के बच्चों या 10 साल से कम उम्र के बच्चों को प्रभावित करती है.