School Re-opening: देश में हर रोज 2 लाख से ज़्यादा संक्रमण के मामले सामने आ रहे हैं. इस बीच हाल में कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि पूरे देश के कई राज्यों में चरणबद्ध तरीक़े से स्कूल खुल सकते हैं. हालांकि इस संबंध में कई राज्यों की सरकारों की ओर से स्कूलों को खोलने को लेकर दिशा-निर्देश जारी कर दिया गया है.


महाराष्ट्र में पिछले एक हफ्ते में रोजन 40 हजार से 45 हजार कोरोना संक्रमण के मामले दर्ज किये जा रहे हैं. फिर भी राज्य सरकार ने स्कूलों को खोलने की अनुमति दे दी गयी है. जबकि हरियाणा के शिक्षा मंत्री ने भी राज्य के स्कूलों को चरणबद्ध तरीके से खोलने के संकेत दिए हैं. हालांकि हरियाणा राज्य सरकार ने इस संबंध अंतिम निर्णय नहीं लिया है.


बच्चों के 100 फ़ीसदी टीकाकरण से ऑफलाइन मोड में स्कूल खोलने में मिलेगी मदद


ख़बरों के मुताबिक दिल्ली सरकार स्कूलों को दुबारा खोलने पर विचार कर रही है, लेकिन इस संबंध में दिल्ली सरकार की तरफ से कोई फैसला नहीं आया है. वहीं दिल्ली के डिप्टी सीएम ने हाल ही में कहा था कि छात्रों का सौ फ़ीसदी टीका सरकार को ऑनलाइन से ऑफलाइन मोड में स्कूल खोलने में सहायता मिलेगी. 


डिप्टी सीएम सिसोदिया ने शनिवार को कहा कि, "दिल्ली में कोरोना संक्रमण के मामलों में कमी आरही है." उन्होंने आगे कहा कि, उच्च कक्षाओं में पढ़ने वाले अधिकतर छात्रों ने कोरोना का टीका लगवा लिया है. जिसके बाद दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) के सामन एक प्रस्ताव रखा जाएगा.


वहीं प्राइवेट स्कूलों के संघ से संबंधित एक्शन कमेटी ने भी स्कूल खोलने को लेकर पत्र लिखा है. इस पत्र में कमेटी ने कहा है कि 60 फ़ीसदी से अधिक छात्रों ने कोरोना का टीका लगवा लिया है, इसलिए प्रशासन को स्कूलों को खोलने ओअर विचार करना चाहिए. 


स्वास्थ्य विशेषज्ञों का इस संबंध में यह है कहना 
डॉक्टर चंद्रकांत लहरिया (Epidemiologist and Public Policy Specialist) ने बच्चों में कोरोना के संक्रमण के खतरे के संबंध में बताया कि, "कोरोना संक्रमण के इस लहर में बच्चों में वयस्कों के सामान ही संक्रमण विकसित हुआ है." डॉ. लहरिया ने आगे कहा, "हालांकि इस मामले येह्बात सकारात्मक कही जा सकती है क्योंकि वयस्कों की तुलना में शून्य से 17 साल की उम्र के लोगों के अस्पताल में भर्ती होने की दर कम है. स्वास्थ्य बच्चों में गंभीर बीमारी के होने की संभावना कम है, वहीं संक्रमण के नए वैरिएंट के बावजूद बच्चों संक्रमण का असर कम है.


यूरोपियन सेंटर फॉर डिजीज प्रिवेंशन एंड कंट्रोल के जरिये जुलाई में एक रिपोर्ट प्रकाशित की गई. इस रिपोर्ट के मुताबिक, जब कोरोना के डेल्टा वैरिएंट का SARS-CoV2 पूरे विश्व में फैला उस समय स्कूलों के खुला रखने का फायेदा, बच्चों में बीमारी के संक्रमण से कहीं अधिक था. उन्होंने इसके लिए तथ्य दिया कि स्कूल जाने वाले बच्चों में संक्रमण के गंभीर लक्षण विकसित होने की संभावना कम थी, भले ही उन्हें यह बीमारी हो गई हो. रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि स्कूलों को बंद करने के फैसले को अंतिम उपाय के रूप में इस्तेमाल किया जाना चाहिए.


टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपी खबर के मुताबिक, प्रमुख सार्वजानिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के संघ इंडियन एसोसिएशन ऑफ़ प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन (IAPSM) ने स्कूलों को फिर से खोलने की पुरजोर वकालत की है. संघ की अध्यक्ष डॉ. सुनीला गर्ग कहा कि, "प्री-स्कूल की कक्षायें को फिर से शुरू करना चाहिए." बंद से जो नुक्सान है उसकी भरपाई नहीं की जा सकती है. इस बंद ने बच्चों के स्कूल ड्रॉपआउट की संख्या में और बाल विवाह के मामलों में तेजी आई है. 


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