Bhalswa Landfil: दिल्ली की भलस्वा लैंडफिल में आग लगने के मामले को लेकर दिल्ली सरकार ने दिल्ली पॉल्यूशन कंट्रोल कमिटी (डीपीसीसी) से रिपोर्ट मांगी है. डीपीसीसी को 24 घंटे में रिपोर्ट सौंपने के निर्देश दिए गए हैं. दिल्ली सरकार ने एमसीडी के कामकाज की निंदा करते हुए कहा कि लैंडफिल साइट में लगी आग एमसीडी में हो रहे भ्रष्टाचार का नतीजा है. दिल्ली सरकार का कहना है कि दिल्ली के कूड़े के पहाड़ पिछले 15 सालों की एमसीडी के लापरवाही का नतीजा हैं.
आग लगने का क्या है कारण?
दिल्ली के पर्यावरण मंत्रालय के मुताबिक लैंडफिल साइट्स में आग लगने का सबसे बड़ा कारण उसमे से लगातार निकलने वाली मीथेन गैस है. यह मीथेन गैस न केवल आग की घटनाओं को बढ़ावा देती है बल्कि वायुमंडल के लिए भी हानिकारक है. दिल्ली सरकार के विशेषज्ञों का कहना है कि एमसीडी अपने काम को सही रूप में कर रही होती तो इसको काफी पहले रोका जा सकता था.
स्कूल को किया गया बंद
भलस्वा लैंडफिल में लगी आग स्थानीय लोगों के लिए बड़ी परेशानी बन गई है. फायर बिग्रेड आग को बुझाने की कोशिश कर रही है हालांकि आग पर अभी भी पूरी तरह से काबू नहीं किया जा सका है. आग और उसके कारण उत्पन्न हुआ प्रदूषण स्थानीय लोगों के साथ-साथ स्कूली छात्रों के लिए भी खतरनाक बनता जा रहा है. इसी को देखते हुए भलस्वा लैंडफिल साइट के समीप स्थित एक स्कूल को एक हफ्ते के लिए बंद कर दिया गया है.
पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने कही ये बात
दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने लैंडफिल साइट्स पर लगने वाली आग की घटनाओं पर अपनी गंभीरता जताई है. उन्होंने बताया कि दिल्ली में इस समस्या से स्थाई रूप से नियंत्रण पाने के लिए मुंबई के डंपिंग स्थल पर लगे हुए गैस सकिंग सिस्टम को अपनाने के लिए डीपीसीसी और एमसीडी को निर्देश दिए हैं.
होगी कार्रवाई
मंगलवार को भलस्वा की लैंडफिल साइट में लगी आग की घटना के बारें में जानकारी देते हुए पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने बताया कि डीपीसीसी को 24 घंटे में पूरी घटना की विस्तृत जांच करके रिपोर्ट विभाग को सौंपने के निर्देश जारी किये गए हैं. डीपीसीसी की रिपोर्ट के आधार पर उचित कार्रवाई की जाएगी.
लगाए ये आरोप
उन्होंने बताया कि लैंडफिल साइट्स में लगातार हो रहे आग के मामले बीजेपी द्वारा संचालित एमसीडी के भ्रष्टाचार का नतीजा हैं. पिछले 15 सालों से सो रही एमसीडी की लापरवाही ही दिल्ली में कूड़े के पहाड़ बनने का कारण हैं. यदि समय-समय पर इसके निवारण के लिए नई उपलब्ध तकनीकों को अपनाया जाता तो आज दिल्लीवाले धुंए में जिन्दगी नहीं व्यतीत कर रहे होते.
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