Delhi: दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने रेलवे के एक दिव्यांग (Divyang) कर्मचारी के छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) स्थानांतरण को रद्द कर दिया है. साथ ही कहा है कि सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि दिव्यांगजनों को उन स्थानों पर स्थानांतरित करके अनावश्यक और निरंतर उत्पीड़न का शिकार न होना पड़े, जहां उन्हें अपने कामकाज के लिए अनुकूल माहौल नहीं मिल पाता है.


जस्टिस चंद्रधारी सिंह ने कहा कि कानून दिव्यांगजन के लिए समान अवसर प्रदान करता है और इसे सुनिश्चित करने के लिए कई नियम हैं जो बताते हैं कि ऐसे कर्मचारियों के स्थानांतरण और पोस्टिंग ऐसी होनी चाहिए कि उन्हें उनके पसंदीदा स्थान पर पोस्टिंग का विकल्प दिया जाए और उन्हें ‘रोटेशनल ट्रांसफर’ से छूट भी दी जा सकती है.


कोर्ट में हाल ही में दिए आदेश में क्या कहा था?


अदालत ने हालिया आदेश में कहा, ‘‘सरकार यह सुनिश्चित करेगी कि दिव्यांग व्यक्तियों को ऐसे स्थानों पर स्थानांतरित, तैनाती करके अनावश्यक और लगातार उत्पीड़न का शिकार न होना पड़े, जहां उन्हें अपने काम करने के लिए अनुकूल माहौल नहीं मिल पाता है. इसके अलावा, इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि दिव्यांग व्यक्तियों को उनकी पोस्टिंग के स्थान पर आवश्यक चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध हों.’’


याचिकाकर्ता रेल मंत्रालय की ओर से शुरू सरकारी कंपनी, इरकॉन इंटरनेशनल लिमिटेड का कर्मचारी है. याचिकाकर्ता ने कहा कि वह घुटने तक की लंबाई वाले कृत्रिम अंग पर आश्रित है, जिसे दिल्ली में एक कार्यशाला में नियमित रखरखाव की आवश्यकता है और वह यहां चिकित्सा पेशेवरों की देखरेख में है. याचिकाकर्ता ने कहा कि दिल्ली के बाहर तैनाती से वह स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच से वंचित हो जाएंगे, जिसकी उन्हें उनकी विशेष और गंभीर चिकित्सा स्थिति के कारण जरूरत है.


इलाज में बाधा बन सकता है ट्रांसफर- जस्टिस 


न्यायमूर्ति सिंह ने कहा कि संविधान में निहित मूल्यों की उचित सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अदालत का रुख दिव्यांग व्यक्ति की परेशानी के प्रति अधिक संवेदनशील और सहानुभूतिपूर्ण होना चाहिए. अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता का दूसरे राज्य में स्थानांतरण उसके इलाज में बाधा बन सकता है. अदालत ने उल्लेख किया कि दिव्यांगजनों के अधिकार अधिनियम की धारा 20 में कहा गया है कि सरकार ऐसे सभी लोगों को उचित आवास, बाधा मुक्त और अनुकूल वातावरण प्रदान करेगी.


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