Dussehra: कोरोना संक्रमण के कारण लगी पाबंदियां हटने के बाद इस बार दो साल बाद पूरे उल्लास के साथ दशहरा (Dussehra) मनाया जा रहा है. लेकिन रावण का पुतला बनाने वाले कारीगरों का कहना है कि अब रावण के पुतले बनाने में न तो पहले जैसा मुनाफा है और ना ही वैसी मांग है. उनका यह भी कहना है कि पुतलों की मांग अबतक कोविड पूर्व काल के स्तर पर नहीं पहुंची है. दिल्ली के तितारपुर गांव से पूरे देश में पुतले भेजे जाते हैं, दशहरे पर रावण, उसके भाइयों कुंभकरण और मेघनाथ के पुतलों का दहन किया जाता है.
करीब 45 साल से पुतले बनाने का व्यवसाय कर रहे 73 वर्षीय महेंद्र पाल ने कहा, “कुछ साल पहले, दशहरे के लिए 100 पुतले बनाता था. इस बार मैंने सिर्फ 21 पुतले बनाए हैं. पुतले बनाने में ना तो पहले जैसा मुनाफा है और न ही मांग है. लिहाजा मेरे पास कोई वजह नहीं है कि मैं ज्यादा पुतले बनाऊं.” यह बहुत पहले की बात नहीं है जब दशहरे से एक महीने पहले ही पश्चिम दिल्ली की सड़कों पर बांस से पुतले के लिए ढांचे बनाने वाले कारीगर दिख जाते थे. पुतले का धड़, सिर और हाथ पैर, बहुत ध्यान से बनाए जाते थे. इसके बाद लकड़ी के ढांचे में विस्फोटक भरकर उन्हें जोड़ा जाता था.
मगर महामारी, बढ़ते प्रदूषण और पटाखों पर प्रतिबंध के चलते पुतलों की मांग तेज़ी से कम हुई है. गलियां सुनसान पड़ी हैं. पुतलों की ऊंचाई तीन फुट से 50 फुट तक होती है और इसे पूरा करने में छह से सात घंटे लगते हैं और इसकी कीमत 500 से 700 रुपये प्रति फुट होती है. कारीगर कोविड से पहले हर विक्रेता को 60-100 पुतले बेचा करते थे, लेकिन अब सिर्फ 20-30 पुतले ही बिक रहे हैं.
हरियाणा के पानीपत में टैक्सी चलाने वाले पाल को इस बात का संतोष है कि वह कुछ पैसा कमा लेंगे जिससे वह अपने घर का रंग-रोगन करा पाएंगे. उन्होंने कहा, “ महामारी के दौरान जो स्थिति थी, उससे हालात काफी बेहतर हैं. उस वक्त मैं अयोध्या भेजे जाने के लिए बनाए गए कुछ पुतलों के अलावा मुश्किल से कोई पुतला बेच सका था. लेकिन बिक्री और मांग उतनी नहीं है कि मैं खुश हो सकूं.”
वहीं पुतला बनाने वाले एक अन्य कारीगर महिंद्र कुमार ने कहा, “ मार्केट का कुछ पता नहीं है इस साल. फिर उत्सव या पटाखों पर प्रतिबंध का भी डर है, इसलिए ज्यादातर लोगों ने सोचा कि कम पुतले तैयार करना बेहतर है, क्योंकि हम अब नुकसान सहन नहीं कर सकते हैं.” दिल्ली में आयुर्वेदिक दवाएं बेचने वाली एक दुकान में काम करने वाले कुमार ने कहा कि कई लोगों ने उनसे पूछताछ तो की, लेकिन बुकिंग नहीं कराई. कई कारीगर राजस्थान, हरियाणा और बिहार के दिहाड़ी मजदूर हैं, जो राजधानी में पैसे कमाने के लिए आते हैं. कई का कहना है कि वे इस साल 8-10 हजार रुपये से ज्यादा नहीं कमा पाएंगे.
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