Delhi Pollution: हर साल 1 से 15 नवंबर के बीच दिल्ली की हवा हो जाती है जहरीली, पर्यावरण विभाग की रिपोर्ट में हुआ चौंकाने वाला खुलासा
दिल्ली पर्यावरण विभाग की रिपोर्ट के अनुसार राजधानी में 1 से 15 नवंबर के बीच हवा इतनी जहरीली हो जाती है कि सांस लेना मुश्किल हो जाता है. गौरतलब है कि ये हर साल इसी अवधि के दौरान प्रदूषण बढ़ता है.
Delhi Pollution: दिल्ली में नवंबर महीने से प्रदूषण का स्तर काफी चिंताजनक बना हुआ है और दिसंबर महीने में भी स्थिति में कोई सुधार नजर नहीं आ रहा है. वैसे ये इस साल ही नहीं बल्कि हर साल की बात है कि 1 से 15 नवंबर के बीच दिल्ली की हवा में सांस लेना दूभर हो जाता है. दरअसल इस पीरियड के दौरान पराली और पटाखों का धुंआ राजधानी की हवा को जहरीली बना देता है. बता दें कि दिल्ली पर्यावरण विभाग ने पिछले पांच सालों के आकलन के आधार पर ये रिपोर्ट तैयार की है.
क्या कहती है दिल्ली पर्यावरण विभाग की रिपोर्ट
दिल्ली पर्यावरण विभाग की रिपोर्ट के अनुसार राजधानी में 1 से 15 नवंबर के बीच पीएम 2.5 का औसत लेवल 285 एमजीसीएम तक पहुंच जाता है ये ग्रैप यानी ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान के तहत काफी गंभीर स्थिति मानी जाती है. वहीं डीपीसीसी के अधिकारी बताते हैं कि इस अवधि के दौरान दिल्ली की वायु में सबसे ज्यादा प्रदूषण घुल जाता है. इसकी वजह ये है कि इस दौरान पंजाब और हरियाणा में जलाई जाने वाली पराली का धुंआ भी राष्ट्रीय राजधानी का ही रूख करता है. इसके अलावा दिवाली का त्योहार भी इसी दौरान मनाया जाता है. त्योहार के मद्देनजर सरकार द्वारा लाख मना किए जाने के बावजूद लोग आतिशबाजी करने से बाज नहीं आते हैं. नतीजतन पटाखों का धुआ भी प्रदूषण के स्तर को बढ़ा देता है. वहीं हवाएं धीमी होने से भी पॉल्यूशन का लेवल बढ़ जाता है. हालांकि इन सबमें सबसे प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण पराली ही माना गया है.
15 अक्टूबर से बढ़ने लगते हैं पराली जलाने के मामले
पराली जलाने के मामले 15 अक्टूबर से बढ़ने लगते हैं और नंवबर के पहले हफ्ते में ये चरम पर पहुंच जाते हैं. वहीं दिवाली के त्योहार भी अक्टूबर के अंत या नवंबर की शुरुआत में ही होता है नतीजतन पटाखे और पराली का धुंआ दिल्ली की हवा को जहरीला बना देते हैं. बता दें कि ये आकलन सर्दियों में प्रदूषण के बढ़ने को लेकर किया गया है. इसमें बताया गया है कि अक्टूबर से फरवरी के बीच दिल्ली में प्रदूषण के स्तर में कितना और कैसे उतार-चढ़ाव आता है. आकलन के दौरान हर महीने को 15-15 दिनों में वर्गीकृत किया गया है और इस दौरान प्रदूषण के मुख्य कारण को जानने की कोशिश की गई है. इसका उद्देश्य यही है कि 15 दिनों के आकलन के हिसाब से सरकार भी अपना एक्शन प्लान तैयार कर सके.
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