Delhi News: सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त की गई समिति तीनों कृषि कानूनों को पूरी तरह से निरस्त करने के पक्ष में नहीं थी. इतना ही नहीं समति ने निर्धारित मूल्य पर फसलों की खरीद का अधिकार राज्यों को देने और आवश्यक वस्तु कानून को खत्म करने का सुझाव भी दिया था. इस रिपोर्ट को 19 मार्च 2021 को सुप्रीम कोर्ट को सौंपा गया था लेकिन अब इसे सार्वजनिक कर दिया गया है. इस रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यों की समिति के एक सदस्य ने जारी किया है.


रिपोर्ट को सार्वजनिक जारी करते हुए पुणे के किसान नेता अनिल घनवट ने कहा कि उन्होंने समिति द्वारा दी गई रिपोर्ट जारी करने के लिए सुप्रीम कोर्ट को लिखा था. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, जिससे अब वह खुद इसे अपने दम पर जारी कर रहे हैं.


85.7 प्रतिशत किसान संगठन कृषि कानून के समर्थन में थे


घनवट ने कहा कि समिति की द्विपक्षीय बातचीत से पता चला था कि किसान आंदोलन कर रहे केवल 13.3 प्रतिशत किसान कानूनों के पक्ष में नहीं थे. 3.3 करोड़ से अधिक किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाले लगभग 85.7 प्रतिशत किसान संगठनों ने कानूनों का समर्थन किया था.


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सुप्रीम कोर्ट की समिति द्वारा दी गई रिपोर्ट में तीन कृषि कानूनों पर सिफारिशें थीं, जिसमें कई अन्य मुद्दों के अलावा किसानों को सरकारी मंडियों के बाहर निजी संस्थाओं को फसल बेचने की अनुमति दी गई थी. प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए घनवट ने कहा कि समिति ने कानूनों में कई बदलावों का भी सुझाव दिया था, जिसमें राज्यों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) प्रणाली को कानूनी बनाने की स्वतंत्रता देना शामिल था.


स्वतंत्र भारत पार्टी के अध्यक्ष घनवट ने कहा कि रिपोर्ट की अब कोई प्रासंगिकता नहीं बची है. क्योंकि कानूनों को निरस्त कर दिया गया है, लेकिन इससे भविष्य में कृषि क्षेत्र के लिए नीतियां बनाने में मदद मिलेगी. घनवट ने कहा कि संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) के बैनर तले कानूनों के खिलाफ आंदोलन करने वाले 40 यूनियनों को बार-बार अनुरोध करने के बावजूद कोई सबमिशन नहीं किया.