Delhi News: दिल्ली में साल 2020-21 में हुए किसान आंदोलन में पंजाब के किसानों की एकता ने बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. किसानों के विरोध प्रदर्शन के दबाव में आकर लगातार एक साल से ज्यादा सतय तक चले किसान आंदोलन के बाद केंद्र सरकार ने विवादास्पद तीन कृषि कानूनों को वापस ले लिया था. तीन साल पहले के किसान आंदोलन में किसानों के 32 समूहों ने हिस्सा लिया था. इस बार के आंदोलन में किसानों के समूहों की संख्या में इजाफा हुआ है. इस बार किसानों के 50 समूहों ने आंदोलन में शिरकत की है. 


दरअसल,  केंद्र सरकार द्वारा तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के बाद के दो सालों में किसानों के कई समूहों में विभाजन हुआ और कुछ नए संगठन उभर कर सामने आये. नतीजन विभिन्न संगठनों के बीच असहमतियां भी बढ़ी और कई समूह टूट कर नए समूह में गठित हुए. इसी कारण इस बार के किसान आंदोलन में सक्रिय किसान संगठनों की संख्या बढ़कर लगभग 50 हो गई हैं. जबकि इससे पहले हुए आंदोलन में सरकार के कृषि कानून को चुनौती देने और उसे निरस्त करावने के लिए 32 किसान समूह एकजुट हो कर सरकार के खिलाफ खड़े थे.


तीन साल पहले के आंदोलन में KMSC नहीं था शामिल 


इस बार किसान आंदोलन का नेतृत्व गैर राजनीतिक, संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) कर रहा है, जो जुलाई 2022 में मूल संयुक्त किसान मोर्चा (एसकेएम) से अलग हो गया था. इसके समन्वयक पंजाब स्थित भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) सिधुपुर फार्म यूनियन के अध्यक्ष जगजीत सिंह दल्लेवाल हैं. मौजूदा विरोध प्रदर्शन में दूसरा संगठन केएमएम का गठन पंजाब स्थित यूनियन किसान मजदूर संघर्ष समिति (केएमएससी) के संयोजक सरवन सिंह पंढेर द्वारा किया गया था. केएमएससी ने 2020-21 में कृषि कानूनों के खिलाफ मुख्य विरोध प्रदर्शन में शामिल न होकर कुंडली में दिल्ली सीमा पर एक अलग मंच स्थापित किया था.


किसानों की मुख्य मांगें


पिछली बार जहां कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन था, तो इस बार किसान फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी देने वाले कानून को बनाने की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं. किसान चाहते हैं कि सरकार की ओर से न्यूनतम समर्थन मूल्य मूल्य की कानूनी गारंटी दी जाए, किसानों के 12 सूत्रीय एजेंडे में मुख्य मांग सभी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी के लिए एक कानून बनाना और डॉ. एम.एस. स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार फसल की कीमतों का निर्धारण करना है. इसके अलावा और कई मांग है, जिसे पूरा कराने पर किसान संगठनों के नेता जोर दे रहे हैं. 



  • न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी देने वाले कानून को बनाने की मांग.

  • किसानों और मजदूरों की पूर्ण कर्ज माफी.

  • भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 का कार्यान्वयन, जिसमें अधिग्रहण से पहले किसानों से लिखित सहमति और कलेक्टर दर से चार गुना अधिक मुआवजा देने का प्रावधान है.

  • अक्टूबर 2021 में लखीमपुर खीरी हत्याकांड के अपराधियों को सजा.

  • भारत में विश्व व्यापार संगठन (WTO) से हटने और सभी मुक्त व्यापार समझौतों पर रोक लगाना.

  • किसानों और खेतिहर मजदूरों के लिए पेंशन.

  • दिल्ली विरोध प्रदर्शन के दौरान मरने वाले किसानों के लिए मुआवजा, जिसमें परिवार के एक सदस्य के लिए नौकरी शामिल है.

  • बिजली संशोधन विधेयक 2020 को रद्द करना.

  • मनरेगा के तहत प्रति वर्ष 200 (100 के बजाय) दिनों का रोजगार, 700 रुपए की दैनिक मजदूरी और योजना को खेती से जोड़ना.

  • नकली बीज, कीटनाशक, उर्वरक बनाने वाली कंपनियों पर सख्त दंड और जुर्माना, बीज की गुणवत्ता में सुधार.

  • मिर्च और हल्दी जैसे मसालों के लिए राष्ट्रीय आयोग का गठन.


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