Farmers Protest: किसान आंदोलन खत्म होने के बाद टिकरी बॉर्डर पर चला बुलडोजर, जानें- खास बात
Farmers Protest: टिकरी बॉर्डर पर ईंट सीमेंट और गारे से बने एक पक्के मकान पर शनिवार को बुलडोजर चला दिया गया. ये मकान किसी आम मकान से कम नहीं था.
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Kisan Andolan End: दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर पिछले 378 दिनों से चल रहे किसानआंदोलन की समाप्ति हो गई है. शनिवार यानी 11 नवंबर से किसानों ने दिल्ली के बॉर्डरों को खाली करना शुरू कर दिया है. लेकिन 1 साल से ज्यादा लंबे समय से चल रहे किसान आंदोलन के दौरान बड़ी संख्या में अलग-अलग राज्यों से आए किसान बॉर्डरों पर डटे रहे है. कृषि कानूनों के विरोध में बॉर्डरों पर रहने के लिए किसानों ने कई इंतजाम भी किए, कोई झोपड़ी बनाकर रहने लगा तो किसी ने ट्रैक्टर और ट्रॉली में ही अपना बसेरा कर लिया. इस पूरे 1 साल में ये तस्वीरें भी देखने को मिली कि कभी वाहनों की आवाजाही के लिए इस्तेमाल होने वाली यहां की सड़कें किसानों के पक्के मकान में तबदील हो गयी थीं.
रोहतक के टीटोली गांव से दिल्ली के टिकरी बॉर्डर पर किसान आंदोलन के दौरान पक्के मकान भी बनाएं गए और आंदोलन स्थल पर बने इन पक्के मकानों ने सबका ध्यान अपनी और आकर्षित किया. इसी कड़ी में टिकरी बॉर्डर के मंच के पास मौजूद ईंट सीमेंट और गारे से बने एक पक्के मकान पर शनिवार को बुलडोजर चला दिया गया. ये मकान किसी आम मकान से कम नहीं था, गांव में अक्सर लोग इसी तरह का मकान बनाकर रहते है, ये मकान टिकरी बॉर्डर पर मौजूद मंच के पास में ही बने हुए था, और पिछले दिनों जब भी कोई टिकरी बॉर्डर पर जाता था उनकी सबसे पहले नज़र इसी मकान पर पड़ती थी, जिसको आज जेसीबी मशीन से बड़ी मशक्कत के बाद तोड़ दिया गया. और खास बात ये है कि इन मकान में पंखा, ऐसी, टीवी, फ्रिज जैसी तमाम सुविधाएं मौजूद थी.
टीटोली गांव के प्रधान भूप सिंह ने कही ये बात
टीटोली गांव के प्रधान भूप सिंह ने ABP न्यूज़ को बताया कि आंदोलन लंबा चलने की वजह से उनके गांव के लोगों को झोपड़ी में रहने में काफी दिक्कत आती थी, बारिश, आंधी तूफान से उनके गांव के लोग काफी परेशान थे इसलिए उन्होंने ईंटों से पक्का मकान बनाने का फैसला किया था, उन्होंने बताया कि करीब एक हफ्ते की मशक्कत के बाद उन्होंने पक्की ईंट, कच्ची ईंट, सीमेंट से एक मकान बनाया, जिसमें करीब एक लाख का खर्च आया. इस मकान में करीब 12000 ईंटों को इस्तेमाल किया गया था, इस मकान को बनाने में गांव की महिलाओं ने और कई मजदूरों ने मदद की थी, जिससे ये मकान तैयार हो सका, और इस मकान में करीब 20 लोग रहते थे.
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