Greater Noida Farmers Protest: अपनी 5 सूत्रीय मांगों को लेकर ग्रेटर नोएडा (Greater Noida) के 39 गांव के किसान 21 दिनों से  शहर के औद्योगिक विकास प्राधिकरण (Industrial Development Authority) के खिलाफ लगातार धरना प्रदर्शन और महापंचायत कर रहे हैं.  सोमवार को भी अखिल भारतीय किसान सभा (Akhil Bharatiya Kisan Sabha) के नेतृत्व में हजारों की संख्या में किसानों ने प्राधिकरण के खिलाफ ग्रेटर नोएडा की सड़कों पर प्रदर्शन किया, जिसमें भारी संख्या में महिलाओं की भी भागीदारी देखी गई . 


इस दौरान उनको पूर्व सांसद और कम्युनिस्ट नेता वृंदा करात का भी समर्थन मिला. इससे पहले किसानों द्वारा बीते 21 दिनों तक प्रदर्शन और पंचायत के माध्यम से प्राधिकरण को चेतावनी देते हुए कहा गया था कि उनकी मांगों पर जल्द से जल्द विचार किया जाए नहीं तो 15 मई को बड़ी संख्या में किसान प्रदर्शन करने के लिए बाध्य होंगे.  अखिल भारतीय किसान सभा के प्रवक्ता डॉ रुपेश वर्मा ने एबीपी न्यूज से बातचीत के दौरान कहा कि 4 गुना  सर्किल रेट मुआवजा , 10 फीसदी आबादी प्लॉट और बच्चों के लिए रोजगार संबंधित पांच सूत्रीय मांगों को लेकर लगातार धरना प्रदर्शन कर रहे हैं.


"मांग पूरी ना होने तक प्रदर्शन जारी रहेगा"
उन्होंने कहा "इससे पहले भी हमने ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण के समाने अपनी बात को रखी थी, लेकिन लगातार प्राधिकरण द्वारा हमारे अधिकारों से जुड़े इस महत्वपूर्ण विषय को अनदेखा किया जा रहा है. यह हमारे भविष्य से जुड़ा हुआ एक गंभीर विषय है. साथ ही  हमारी  पूंजी और संपत्ति का प्राधिकरण द्वारा दुरुपयोग है. इसलिए ग्रेटर नोएडा की सड़कों पर हजारों की संख्या में किसान गोल चक्कर पर उपस्थित होकर प्राधिकरण की तरफ पहुंचे. एक बार फिर प्राधिकरण को हम कहना चाहेंगे की यह प्रदर्शन तब तक जारी रहेगा, जब तक हमारी मांग को स्वीकार नहीं कर लिया जाता."


किसान संगठनों और कम्युनिस्ट नेता का भी मिला साथ
21 दिनों से ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण के खिलाफ ग्रेटर नोएडा के किसानों का हल्ला बोल सोमवार को भी जारी रहा. अखिल भारतीय किसान सभा इस प्रदर्शन का मुख्य रूप से नेतृत्व कर रहा है. साथ ही उन्हें अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति , संयुक्त किसान मोर्चा, किसान संगठन, मार्क्सवादी और पूर्व सांसद वृंदा करात का भी समर्थन मिल रहा है. अब देखना होगा कि लगातार अपनी मांगों को लेकर प्रदर्शन कर रहे ग्रेटर नोएडा के इन किसानों की बात को कब तक सुना जाता है.


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