Delhi University News: पिछले एक सदी से देश और दुनिया में दिल्ली विश्वविद्यालय (Delhi University) ने खुद की एक बेहतर शैक्षिक संस्थान के रूप में अपनी पहचान बनाई है. अब वही डीयू बहुत जल्द एक कॉरपोरेट कंपनी का हिस्सा बनने की राह पर है. डीयू प्रशासन ने दिल्ली विश्वविद्यालय को एक फाउंडेशन (Delhi University foundation) के रूप में बदलने का फैसला लिया है. अब इस फैसले के खिलाफ एकेडमिक फार एक्शन एंड डेवलपमेंट टीचर एसोसिएशन (AADTA) ने खुलकर मोर्चा खोल दिया है. एएडीटीए ने डीयू एग्जीक्यूटिव काउंसिल (EC) की बैठक से एक दिन पहले अपनी ओर से जारी बयान में कहा कि यह डीयू का निगमीकरण (Corporatization of DU) करने की दिशा में उठाया गया न केवल खतरनाक कदम है बल्कि एससी, एसटी, ओबीसी, महिला, कमजोर, दलित और गरीब परिवार के बच्चों को उच्च शिक्षा (Higher Education) से दूर करने की एक साजिश (Conspiracy) भी है.
फिलहाल, एएडीटीए के नेताओं की मानें तो दिल्ली विश्वविद्यालय को एक डीयू फाउंडेशन में तब्दील करने का फैसला लिया गया है. इसके पीछे डीयू के केवल दो अधिकारियों यानि कुलपति और रजिस्ट्रार का हाथ है. दोनों ने डीयू को शेयर होल्डिंग के साथ एक लिमिटेड कंपनी में परिवर्तित करने का फैसला लिया है. डीयू एग्जीक्यूटिव काउंसिल की पिछली बैठक में डीयू प्रशासन ने इस मसले को रिपोर्टिंग आइटम के रूप में लगाया था. इस फैसले का एग्जीक्यूटिव काउंसिल के पांच सदस्यों में से दो सदस्य यानी सीमा दास और राजपाल सिंह पवार ने कड़ा विरोध जताया था.
कॉरपोरेटाइजेशन के खिलाफ AADTA की मुहिम
एक बार फिर शुक्रवार यानी तीन फरवरी को ईसी की बैठक प्रस्तावित है. बैठक से एक दिन पहले एएडीटीए के पदाधिकारियों ने डीयू के सभी विभागों और कॉलेजों के शिक्षकों को डीयू प्रशासन के इस फैसले के खिलाफ न केवल जानकारी दी बल्कि शिक्षा के निजीकरण के खिलाफ सभी से आवाज बुलंद करने की भी अपील की है. कार्यरत शिक्षकों और विश्वविद्यालय समुदाय ने बड़े पैमाने पर डीयू को एक कंपनी में तब्दील करने की साजिश पर रोष जताया है.
एएडीटीए की सीमा दास और राजपाल सिंह पवार का आरोप है कि डीयू को एक कंपनी में तब्दील करने की ये साजिश राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की आड़ में रची जा रही है. ईसी के दोनों सदस्यों को इस बात की आशंका है कि एजुकेशन फंडिंग एजेंसी से डीयू पर 1000 करोड़ रुपए लोन लेने का दबाव भी बनाया है. ऐसा डीयू में इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट के नाम पर किया जा रहा है. तय है कि सरकारी एजेंसी या निजी एजेंसी लोन देगी तो पैसा वापस भी मांगेगी. डीयू प्रशासन द्वारा पैसा वापस न कर पाने की स्थिति में, पिछले दरवाजे से कारपोरेट कंपनियों को इसमें साझीदार बनाया जाएगा. अगर ऐसा हुआ तो बहुत जल्द डीयू का एक कंपनी में तब्दील होने की पूरी संभावना है. ऐसी स्थिति में डीयू प्रशासन की एसी और ईसी से निर्णय लेने की शक्ति कमजोर होगी. कॉरपोरेटर्स नई शिक्षा नीति 2020 का लाभ उठाते हुए डीयू का अधिग्रहण कर लेंगे.
निगमीकरण का टूल न बनें वीसी-रजिस्ट्रार
एकेडमिक फार एक्शन एंड डेवलपमेंट टीचर एसोसिएशन के पदाधिकारियों का कहना है कि एक कंपनी के रूप में विश्वविद्यालय कोचिंग जैसी गतिविधियों में शामिल होगी, जो डीयू की प्रतिष्ठा को हमेशा के लिए समाप्त करने जैसा होगा. ऐसे में डीयू में शिक्षा के व्यावसायीकरण को बढ़ावा मिलेगा. दिल्ली विश्वविद्यालय सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों जैसे एससी, एसटी, ओबीसी, पीडब्ल्यूडी, ईडब्ल्यूएस और महिलाओं को खुद से दूर रखने का उपकरण बन जाएगा. एएडीटीए के मीडिया प्रभारी राजेश झा का कहना है कि 2023 दिल्ली विश्वविद्यालय का शताब्दी वर्ष भी है. हम डीयू के शताब्दी वर्ष में ही उसके कॉरपोरेटाइजेशन का खुल्लमखुल्ला विरोध करते हैं. हमारी मांग है कि डीयू का निगमीकरण न हो. अगर ऐसा हुआ तो यह सामाजिक न्याय के एजेंडे और सार्वजनिक वित्त पोषित विश्वविद्यालय के नियमों के विरूद्ध माना जाएगा.
स्टूडेंट फंड का बेजा इस्तेमाल
एएडीटीए का कहना है कि मामला यहीं तक सीमित नहीं है. डीयू प्रशासन सरकार के इशारे पर न केवल सरकारी विश्वविद्यालय को कंपनी में तब्दील करने पर उतारू है बल्कि यूनिवर्सिटी डेवलपमेंट फंड में जमा छात्रों के पैसों में से 50 लाख रुपए डीयू फाउंडेशन के डेवलपमेंट फंड में ट्रांसफर करने की भी योजना है. यहां पर अहम सवाल यह है कि सरकार न केवल डीयू का निगमीकरण करने पर उतारू है बल्कि उसमें छात्रों के पैसे का निगमीकरण की योजना को मूर्त रूप देने में इस्तेमाल होगा.
डीयू एक्ट 1922 का खुला उल्लंघन
नाम बदलने से डीयू के दुश्मन होने के उसके चरित्र में कोई बदलाव नहीं आता है, जो डीयू अधिनियम 1922 के खंड 6 द्वारा प्रदान किए गए सभी जातियों, वर्गों और पंथों के लिए खुला है. यह खंड 4 (विश्वविद्यालय की शक्ति) और खंड 5 (क्षेत्रीय अधिकार क्षेत्र) का भी उल्लंघन करता है.
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