यमुना में 2020 के बाद सबसे ज्यादा प्रदूषण, फीकल कॉलीफोर्म प्रति 100ML 79 लाख, जानें स्वास्थ्य पर असर
Yamuna Water: टेरी के रिसर्च फेलो एसके सरकार के मुताबिक यमुना के पानी सुधार सीवेज वाटर का 100 प्रतिशत ट्रीटमेंट होने पर ही हो सकता है. डीजेबी द्वारा सीवेज ट्रीट किए जा रहे हैं, लेकिन बड़े पैमाने पर अनट्रीटेड वाटर अब भी यमुना गिर रहे हैं.
Delhi Yamuna Water: दिल्ली के यमुना में फीकल कॉलीफोर्म का स्तर पिछले चार साल में सबसे ज्यादा खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है. दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) की लेटेस्ट जल गुणवत्ता रिपोर्ट के अनुसार असगरपुर इलाके में यमुना के पानी में फीकल कोलीफॉर्म की सांद्रता 79 लाख यूनिट प्रति 100 मिली (एमपीएन) है. प्रदूषण का यह स्तर दिसंबर 2020 के बाद से सबसे ज्यादा है.
टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) के मुताबिक इसके लिए सीवेज वाटर का प्रमुख रूप से जिम्मेदार है. डीपीसीसी की मासिक रिपोर्ट के मुताबिक यमुना के पारी में फीकल कॉलीफोर्म 79,00,000 एमपीएन प्रति 100 एमएल पहुंच गया. यह साल 2023 के 3,20,000 और 2021 के 6,80,000 से ज्यादा काफी ज्यादा है. साल 2020 में फीकल कोलीफॉर्म का स्तर 1,20,00,000 रिपोर्ट किया गया था.
बता दें कि नदी के पानी को उसी स्थिति में स्वास्थ्य के लिए अच्छा माना जा सकता है जब फीकल कॉलीफोर्म की मात्रा प्रति 100 एमएल 2500 तक सीमित हो. दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समति की रिपोर्ट के मुताबित पल्ला में यमुना का प्रवेश करते ही डीओ लेवल 6.1 एमजी प्रति लीटर दर्ज किया गया. बीओडी का स्तर 3 एमजी प्रति लीटर और फीकल कोलीफॉर्म का लेवल 1100 आइडियल माना जाता है.
हालांकि, आईएसबीटी पुल इलाके में यमुना के पानी में डीओ स्तर शून्य दर्ज किया गया. इस इलाके में बीओडी लेवल 47 यूनिट प्रति लीटर और फीकल कोलीफॉर्म 4,90,00 प्रति लीटर पाया गया. जबकि तय मानक के मुताबिक बीओडी लेवल 5एमजी प्रति लीटर और डीओ 5एमजी प्रति लीटर से नीचे नहीं होना.
यह स्थिति उस समय है जब इस साल की शुरुआत में बेहतर मॉनसून की वजह से दो अक्टूबर तक यमुना को बेहतर माना गया. उसके बाद प्रदूषण की मात्रा में बढ़ोतरी हुई.
टेरी के रिसर्च फेलो एसके सरकार के मुताबिक यमुना के पानी सुधार सीवेज वाटर का 100 प्रतिशत ट्रीटमेंट होने पर ही हो सकता है. दिल्ली में यमुना के प्रदूषण की मुख्य वजह इसके नाले हैं, जिसमें सीवेज वाटर गिरते हैं और वही अनट्रीटेड वाटर यमुना में मिलते हैं. दिल्ली जल बोर्ड द्वारा सीवेज वाटर ट्रीट किए जा रहे हैं, लेकिन बड़े पैमाने पर अनट्रीटेड वाटर भी यमुना गिर रहे हैं.
दिल्ली जल बोर्ड ने नवंबर 2024 में एनजीटी के सामने पेश हलफनामे में बताया था कि सीवेज वाटर 792 एमजीडी प्रति दिन जनरेट होता है. 60 एमजीडी सीवेज को ट्रीट हो रहा है. जबकि एसटीपी की चमता 712 एमजीडी सीवेज ट्रीट करने की है. डीजीबी ने एनजीटी से ये भी बताया है कि साल 2026 हम 100 प्रतिशत सीवेज वाटर ट्रीट करने की स्थिति होंगे.
यमुना नदी में फीकल कोलीफॉर्म की मात्रा सितंबर के कई गुना बढ़ गई। इससे नदी में प्रदूषण का स्तर बहुत बढ़ा है। यही वजह है कि अक्टूबर और नवंबर में यमुना में सफेद झाग दिखाई देने लगे थे. दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (डीपीसीसी) की रिपोर्ट के मुताबिक नदी में मल का स्तर अब तक का सबसे ज्यादा है.
दरअसल, फीकल कोलीफॉर्म पानी में मल की मौजूदगी का संकेतक है. यह पानी के प्रदूषण का एक महत्वपूर्ण सूचक है। इसका मतलब है कि नदी में बहुत ज्यादा मात्रा में गंदा पानी मिल रहा है।
फीकल कोलीफॉर्म स्वाथ्य के लिए कितना खतरनाक?
पर्यावरण विशेषज्ञ और चिकित्सकों के मुताबिक यमुना नदी में बनने वाले फीकल कोलीफॉर्म झाग में अमोनिया और फॉस्फेट की काफी ज्यादा मात्रा होती है. इससे ऑर्गेनिक पार्टिकुलेट मैटर यानी कार्बन के कण निकलते हैं. इससे निकलने वाली गैसे सीधे वायुमंडल में जाकर नुकसान पहुंचाती है. इससे सांस और स्किन से जुड़ी समस्याओं में इजाफा होता है. गले में दर्द और आंखों में जलन जैसी गंभीर समस्या भी हो सकती है. लोग एलर्जी के भी शिकार हो सकते हैं. लंबे समय तक इसके संपर्क में रहने से लिवर-किडनी को नुकसान पहुंच सकता है.
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