Supreme Court: जुए के अपराध की व्याख्या से जुड़ी ने एक विशेष अनुमति याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया है. याचिका में सवाल उठाया गया कि क्या जुआ अधिनियम, 1867 के तहत ताश खेलने के लिए दोषी ठहराए गए शख्स को ऐसा अपराध कहा जा सकता है जो 'नैतिक पतन' के बराबर है. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के 2019 के फैसले के खिलाफ सतेंद्र सिंह तोमर द्वारा दायर याचिका पर जस्टिस एमएम सुंदरेश औऱ जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच ने नोटिस जारी किया.
याचिकाकर्ता पर एक कॉलोनी में ताश खेलने का था आरोप
ग्वालियर हाईकोर्ट की एक खंडपीठ ने एक एकल न्यायाधीश के आदेश को रद्द कर दिया था. इसमें स्क्रीनिंग कमेटी को पुलिस में कांस्टेबल के पद के लिए याचिकाकर्ता की उम्मीदवारी को रद्द करने के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने का निर्देश दिया गया था. आरोप था कि याचिकाकर्ता ने एक कॉलोनी में ताश खेलने के लिए 1867 अधिनियम की धारा 13 के तहत दोषी ठहराए जाने के कारण नैतिक पतन का कार्य किया था. स्क्रीनिंग कमेटी ने कहा कि वह अनुशासित बल में नौकरी के लिए फिट नहीं है. यह कहते हुए कि इस तरह के उम्मीदवार की भर्ती न करना नियोक्ता के विवेक पर है, एकल न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ डिवीजन बेंच के समक्ष एक अपील दायर की गई, जिसे 23 जनवरी, 2019 को अनुमति दी गई थी. उक्त आदेश सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लगाया जाता है.
'एकल न्यायाधीश के फैसले को बरकरार नहीं रखा जा सकता'
बेंच ने कहा कि मध्य प्रदेश राज्य बनाम अभिजीत सिंह पवार में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले के मद्देनजर, एकल न्यायाधीश के फैसले को बरकरार नहीं रखा जा सकता है. अभिजीत सिंह पवार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि एक उम्मीदवार द्वारा उसके खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों के बारे में खुलासा किए जाने के बाद भी नियोक्ता के पास पूर्ववृत्त और उम्मीदवार की उपयुक्तता पर विचार करने का अधिकार होगा.
तोमर की विशेष अनुमति याचिका में उनके वकील ने तर्क दिया कि अधिनियम, 1867 की अनुसूची में अपराधों की सूची में धारा 13 के तहत अपराध का उल्लेख नहीं किया गया है. लेकिन इसे केवल अपराधों की उदाहरणात्मक सूची के रूप में देखा गया है और यह संपूर्ण नहीं है.
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