Delhi News: प्रोफेसर इकबाल हुसैन ने जामिया के प्रो वाइस चांसलर और उसके बाद कार्यवाहक वीसी के रूप में खुद की नियुक्ति को रद्द करने के फैसले के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. उन्होंने अपनी याचिका के जरिए एक एकल बेंच के फैसले को चुनौती दी है. एकल बेंच के जस्टिस ने जामिया के प्रो वीसी के रूप में उनकी नियुक्ति को रद्द कर दिया था. 


दिल्ली हाई कोर्ट की एकल पीठ के जस्टिस से इस मामले में यह सुनिश्चित करने का आदेश दिया था कि जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में शैक्षणिक और प्रशासनिक मशीनरी से संबंधित गतिविधियां प्रभावित न हों. दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस रेखा पल्ली और जस्टिस सौरभ बनर्जी की पीठ ने प्रोफेसर इकबाल हुसैन की याचिका को सोमवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है. 


क्या है पूरा मामला? 


दिल्ली हाई कोर्ट एकल बेंच के जस्टिस ने हुसैन को प्रति कुलपति बनाए जाने तथा बाद में विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलपति के तौर पर नियुक्ति को यह कहते हुए रद्द कर दिया था कि नियुक्तियां संबंधित कानून के अनुरूप नहीं की गई थीं. उन्होंने यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि विश्वविद्यालय की शैक्षणिक और प्रशासनिक मशीनरी को नुकसान या पूरी तरह से ठप्प होने से बचाने के लिए कार्यवाहक कुलपति के पद पर एक सप्ताह के भीतर नई नियुक्ति की जाए.


इस बीच अदालत ने जामिया विश्वविद्यालय के ‘विजिटर’ (राष्ट्रपति) को एक नियमित कुलपति की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू करने का आदेश जारी करने को कहा था. अदालत ने मोहम्मद शामी अहमद अंसारी और अन्य की याचिकाओं की सुनवाई करते हुए कहा था, ‘‘चूंकि प्रतिवादी प्रो इकबाल हुसैन की नियुक्ति कानून के अनुरूप नहीं किया गया, इसलिए कुलपति कार्यालय में उनके कार्यवाहक कुलपति के रूप में बने रहने की हम इजाजत हम नहीं दे सकते.’’


दरअसल, तत्कालीन कुलपति प्रोफेसर नजमा अख्तर ने 14 सितंबर 2023 को इकबाल हुसैन को जामिया मिलिया इस्लामिया का प्रति कुलपति नियुक्त किया था. इसके बाद 12 नवंबर 2023 को अख्तर की सेवानिवृत्ति पर हुसैन के कार्यवाहक कुलपति का कार्यभार संभालने के बारे में रजिस्ट्रार के कार्यालय द्वारा एक और अधिसूचना जारी की गई.


अधिसूचना का याचिकाकर्ताओं ने विरोध किया था. विरोधी पक्ष ने दलील दी थी कि ये नियुक्तियां जामिया मिलिया इस्लामिया अधिनियम के प्रावधानों और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के नियमों के विपरीत है. इसके बाद एकल पीठ के जस्टिस ने अपने फैसले में कहा था कि कार्यवाहक कुलपति के रूप में हुसैन की नियुक्ति कानूनी रूप से वैध नहीं थी.


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