JNU administration withdraws order: जेएनयू में अनुशासन व्यवस्था को बनाए रखने के लिए बीते 28 फरवरी को जेएनयू प्रशासन (JNU) द्वारा सख्त नियमों को लागू किया गया था. नए नियमों के तहत जेएनयू परिसर में अनुशासनहीनता होने पर छात्रों पर 5,000 से लेकर 50,000 रुपए तक का जुर्माना तय किया गया था. इसके अलावा, गंभीर मामलों के आरोपी छात्रों को हॉस्टल और यूनिवर्सिटी से निकालने के लिए भी सजा का प्रावधान तय किया गया था, लेकिन छात्रों के भारी विरोध के बाद 2 मार्च को जेएनयू प्रशासन द्वारा इस फैसले को वापस (JNU administration withdraws order) ले लिया गया.
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्रों ने लागू किए गए नए नियमों को तुगलकी फरमान करार दिया गया था. उसके बाद अलग-अलग छात्र संगठनों द्वारा भी जेएनयू प्रशासन के इस फैसले का भारी विरोध किया जा रहा था. इस बात को ध्यान में रखते हुए जेएनयू प्रशासन द्वारा अधिसूचना जारी कर इन नियमों को वापस लेने की जानकारी दी गई. दरअसल, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर के शिक्षण संस्थानों में शुमार जेएनयू अक्सर कई मामलों को लेकर सुर्खियों में रहता है. यहां के छात्र देश और विदेश के मसलों पर स्वतंत्र रूप से अपनी बातों को रखते हैं. इस दौरान कई विचारधाराओं के बीच आरोप-प्रत्यारोपों की वजह से टकराव के हालात भी उत्पन्न होते रहते हैं. इन चुनौतियों से निपटने के लिए जेएनयू प्रशासन द्वारा यह निर्णय लिया गया था, जिसे अब वापस ले लिया गया है.
छात्रों पर जुर्माने का आदेश, तुगलकी फरमान
इस मसले पर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद जेएनयू इकाई के मंत्री विकास पटेल ने एबीपी लाइव से बातचीत के दौरान कहा कि जेएनयू प्रशासन की ओर से जारी आदेश पूरी तरह से तुगलकी फरमान जैसा था. जो छात्रों के विरोध के बाद इसे वापस ले लिया गया. उचित एवं सकारात्मक कारणों के साथ प्रदर्शन करना छात्रों का संवैधानिक अधिकार है, जिसे छीना नहीं जा सकता. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद यह मांग भी करती है कि भविष्य में अगर इससे जुड़े कोई नियम लाए जाते हैं तो सबसे पहले छात्रों से संवाद किया जाए. इस आदेश को वापस लिए जाने के फैसले का अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद स्वागत करती हैं.