जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी ने पीएचडी एडमिशंस के दौरान वंचित वर्ग के स्टूडेंट्स के साथ भेदभाव किए जाने के आरोपों को खारिज करते हुए कहा है कि ये आरोप सरासर गलत हैं. उन्होंने कहा कि सेलेक्शन कमेटी को स्टूडेंट्स की कैटेगरी के बारे में कोई जानकारी नहीं होती. इसलिए वे किसी प्रकार का भेदभाव नहीं कर सकते. दरअसल जेएनयू की स्टूडेंट्स यूनियन का कहना है कि पीएचडी एडमिशंस के दौरान मार्जिनलाइज्ड सेक्शन के स्टूडेंट्स से वीवा-वॉयस के दौरान भेदभाव किया गया. जबकि जेएनयू ने कहा कि ये आरोप सरासर गलत हैं और एडमिशंस के दौरान पूरी पारदर्शिता बरती गई है.


नहीं होती स्टूडेंट की कैटेगरी के बारे में जानकारी –


इस बारे में बात करते हुए जेएनयू ने आगे कहा कि पीएचडी सेलेक्शन कमेटी को स्टूडेंट्स की कैटेगरी के बारे में जानकारी नहीं दी जाती ताकि स्टूडेंट्स के साथ भेदभाव न किया जा सके.


जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ (जेएनयूएसयू) की अध्यक्ष आइशी घोष ने रविवार को आरोप लगाया था कि मौखिक परीक्षा में बैठने वाले कई उम्मीदवारों के साथ संवैधानिक नियमों का उल्लंघन करते हुए उन्हें विशेषकर कम अंक दिए गए हैं. जबकि यूनिवर्सिटी ने इससे इंकार किया.


क्या कहा जेएनयू ने सफाई में –


जेएनयू ने उन मीडिया रिपोर्ट्स को पूरी तरह खारिज कर दिया, जिनमें वंचित वर्ग के पीएचडी उम्मीदवारों से भेदभाव का आरोप लगाया गया था. इस बारे में यूनिवर्सिटी का कहना है कि विश्वविद्यालय द्वारा अपनाई गई प्रवेश नीति के अनुसार, प्रत्येक अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति/पीडब्ल्यूडी उम्मीदवार जो पीएचडी प्रवेश के लिए जेएनयू प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करता है को वीवा-वॉयस के लिए बुलाया जाता है, भले ही उनकी संबंधित श्रेणियों में प्रवेश के लिए उपलब्ध सीटों की संख्या कुछ भी हो.


जबकि पीएचडी प्रवेश के लिए जेएनयू प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले अन्य श्रेणियों के छात्रों को उनकी संबंधित श्रेणियों में उपलब्ध सीटों की संख्या के आधार पर एक विशेष अनुपात में बुलाया जाता है. इसलिए इस तरह के आरोप सरासर गलत हैं.


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