Delhi News: ग्यारह माह बाद एक बार फिर केंद्र में भावी सरकार के गठन के लिए लोकसभा चुनाव होगा. यही वजह है कि प्रस्तावित लोकसभा चुनाव 2024 में जीत हासिल करने और विरोधियों को चुनावी मात देने के लिए सियासी दांव-पेंच का सिलसिला एक-दूसरे के खिलाफ अभी से चरम पर पहुंच गया है. आठ दिन पहले पीएम नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने भोपाल की एक रैली में लोगों को संबोधित करते हुए विपक्षी दलों के सामने समान आचार संहिता (UCC) का मुद्दा उठाकर अहम चुनौती पेश कर दी है. एक तरह से उन्होंने लोकसभा चुनाव के लिहाज से अहम मुद्दा भी सामने लाकर रख दिया है. उसके बाद से सियासी दलों के बीच सियासी घमासान की स्थिति है. सभी सियासी दल इसको लेकर पक्ष में माहौल बनाने में जुट गए हैं. उसी के हिसाब से सियासी ताने-बाने भी सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच बुने जा रहे हैं. ऐसे में विपक्ष के सामने बीजेपी (BJP) को चुनावी मात देने की अहम चुनौती है.
'स्टेट के अंदर रहकर खुद को रिप्रिजेंट करना होगा'
इसी मसले पर पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल से पूछा गया कि क्या विपक्ष दलों के नेता पीएम मोदी को आगामी लोकसभा चुनाव में चुनौती दे पाएंगे? तो कपिल सिब्बल ने विपक्षी एकता को लेकर 23 जून को संपन्न पटना मीटिंग का जिक्र करते हुए कहा कि मैं विपक्षी दलों की एकता के मामले को लेकर बहुत ही आशावादी हूं. किसी भी लोकतंत्र को मजबूत विपक्ष के दाम पर ही सुरक्षित रखा जा सकता है. इस मामले में अहम समस्या सबका एक साथ एक मंच पर आना है. टाइम्स नाउ के फ्रैंकली स्पीकिंग कार्यक्रम में बोलते हुए उन्होंने आगे कहा कि कोई भी व्यक्ति स्टेट से ज्यादा अहम नहीं है. सभी को स्टेट के अंदर रहकर ही खुद को रिप्रिजेंट कराना होता है. इस मामले में कांग्रेस के पास अभी संख्या बल नहीं है. इसके बावजूद विपक्षी एकता की संकल्पना को कांग्रेस को केंद्र में रखकर ही मूर्त रूप दिया जा सकता है.
'यूथ की मांग के हिसाब से सेट करना होगा एजेंडा'
सिब्बल ने आगे कहा कि बीजेपी को सत्ता से बेदखल करने के लिए विपक्षी दलों को न्यू विजन पर काम करना होगा. उसका यह विजन सत्ताधारी पार्टी और केंद्र की सरकार से अलग होना चाहिए. विपक्ष को जनता के सामने भविष्य का वैकल्पिक एजेंडा मजबूती से सामने रखना होगा. यहां पर उन्होंने आगाह करते हुए कहा कि कॉमन मिनिमम प्रोग्राम कार्यक्रम से काम नहीं चलेगा. इस प्रोग्राम के तहत सियासी सौदेबाजी होती है. यानी विपक्षी दलों को विद विजन, नो डिविजन की रणनीति पर काम करना होगा. उन्होंने कहा कि सभी के लिए 12वीं कक्षा तक फ्री स्कूलिंग एक एजेंडा हो सकता है. यह एक ऐसा एजेंडा है, जो आम लोगों की जरूरतों का हिस्सा है. इसी तरह कई अन्य मुद्दों हैं, जिस पर सहमति बनाकर विपक्ष दलों के नेता सत्ताधारी पार्टी को चुनौती दे सकते हैं. कहने का मतलब यह है कि विपक्ष को आईटमाइज्ड एजेंडा फार फयूचर जनरेशन और यूथ की मांग के हिसाब से सेट करना होगा. यह एजेंडा सराकर के एजेंडे से अलग होना चाहिए.
'सिर्फ 10 फीसदी समस्या है'
विपक्षी दलों के बीच अलग-अलग मुद्दों व हितों लेकर तकरार पर उन्होंने कहा कि मैं चाहता हूं कि इस पर सहमति बने. पटना में विपक्षी एका को लेकर बैठक के बाद शिमला, जयपुर और बेंगलुरु में बैठक रद्द होने कोई समस्या नहीं है. न हीं ही टीएमसी, आप, आरजेडी, सपा, सीपीआई और सीपीआईएम व अन्य सियासी दलों के अपने-अपने हित विपक्षी एकता की राह में रोड़ा बन सकते हैं. विपक्षी एकता की राह में ये निगेटिव प्वाइंट जरूर हैं, लेकिन आपसी बातचीत के जरिए इससे आगे बढ़ा जा सकता है. ऐसा करने पर ही विपक्ष लोकसभा चुनाव 2024 में बीजेपी को हराने की स्थिति होगा. उन्होंने ये भी कहा कि विरोध के बीच भी सह-अस्तित्व संभव है. ऐसा इसलिए कि गुजरात, राजस्थान, एमपी, कर्नाटक, तेलंगाना सहित पूरे, साउथ में मतभेद कोई मुद्दा नहीं है. विपक्ष के समक्ष केवल 10 प्रतिशत मामलों में समस्या है. 90 फीसदी मामलों में कोई समस्या नहीं है.
'कुछ बयान पार्ट ऑफ पॉलिटिक्स होते हैं'
यूपी में अखिलेश यादव द्वारा यह कहना कि हम 80 की 80 सीटों पर चुनाव लड़ेंगे और जीतेंगे, तो इस बारे में मैं यह भी कहना चाहूंगा कि अमित शाह भी बेंगलुरू में जाकर जनसभा में बड़ा बयान देते हैं. इस तरह के बयान पार्ट ऑफ पॉलिटिक्स होते हैं. अहम यह है कि हम एक साथ आएं. यानी सभी को रिचार्ज करने की जरूरत है. यह पूछे जाने पर कि विपक्षी एका पैचवर्क से मोदी को चुनौती देना संभव है. उन्होंने कहा कि यह मैं नहीं जानता. ये बात भी सही है कि पीएम मोदी लोकप्रिय नेता हैं, लेकिन उनकी लोकप्रियता उन्हें कहीं और लिए जा रहा है. मुझे उम्मीद है विपक्षी एकता को लेकर काम प्रोगेस में है और इस दिशा में प्रयास जारी रखने की जरूरत है.