दिल्ली में कांग्रेस को पिछले कुछ चुनावों में मिली हार के बाद से उसकी हालत लगातार कमजोर होती जा रही है. इसका परिणाम यह हुआ है कि उसके नेता पार्टी छोड़कर दूसरे दलों का दामन थाम रहे हैं. राजधानी दिल्ली में ही कांग्रेस के 50 से अधिक नेता दूसरे दलों में जा चुके हैं. आशंका जताई जा रही है कि अगले साल होने वाले नगर निगम के चुनाव से पहले कांग्रेस के और नेता उसका साथ छोड़ सकते हैं. 


50 से अधिक नेता छोड़ चुके हैं कांग्रेस का साथ


बीजेपी छोड़ कांग्रेस में आए कीर्ति आजाद और उनकी पत्नी पूनम आजाद ने इसी हफ्ते टीएमसी की सदस्यता ली है. इससे पहले दिल्ली विधानसभा अध्यक्ष डॉक्टर योगानंद शास्त्री राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में शामिल हो गए थे. दिल्ली में कांग्रेस के पूर्व विधायक प्रहलाद सिंह साहनी, शोएब इकबाल, रामसिंह नेताजी और अंजलि राय भी पार्टी छोड़ चुकी हैं. इनके अलावा दिल्ली के नगर निगमों में पार्षद सुरेंद्र सेतिया, गुड्डी देवी, सुल्ताना आबाद, आले मोहम्मद, इकबाल, अर्पिया चंदेला, गीतिका लथूरा, उषा शर्मा, तर्वन कुमार और नीतू चौधरी भी कांग्रेस का साथ छोड़ चुके हैं. 


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दिल्ली में कांग्रेस का यह हाल तब है, जब उसने 1998 से 2013 तक लगातार दिल्ली में अपनी सरकार चलाईं. शीला दीक्षित लगातार तीन कार्यकाल तक मुख्यमंत्री रहीं. लेकिन सत्ता छोड़ने के बाद कांग्रेस कमजोर होती चली गई. इस दौरान कांग्रेस ने कई प्रदेश अध्यक्ष बदले लेकिन कोई भी अपने नेताओं का मनोबलन नहीं बढ़ा सका.  


आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में कांग्रेस को किया कमजोर


दरअसल दिल्ली में आम आदमी पार्टी के उदय के बाद कांग्रेस से के लिए जगह कम होती चली गई. पिछले 3 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा है. कांग्रेस ने 2008 के विधानसभा चुनाव में 70 में से 43 सीटों पर कब्जा जमाया था. उसे 40.31 फीसदी वोट मिले थे. वहीं 2013 के चुनाव में कांग्रेस केवल 8 सीटें ही जीत पाई थी. उसे 24.55 फीसदी वोट मिले. वहीं पहली बार चुनाव लड़ रही आप ने 28 सीटें और करीब 29 फीसदी वोट हासिल किया था. बिना मांगे ही कांग्रेस ने समर्थन देकर आम आदमी पार्टी की पहली सरकार बनवाई थी. 


साल 2015 के चुनाव में कांग्रेस का दिल्ली से सफाया हो गया. वह विधानसभा में कोई सीट तक नहीं जीत पाई. और उसका वोट घटकर करीब 10 फीसदी रह गए. वहीं आप ने 70 में से 67 सीटें जीतकर तहलका मचा दिया था. उसका वोट फीसद भी बढ़कर 54.34 फीसदी हो गया था. इसी तरह 2020 के चुनाव में कांग्रेस ने 66 सीटों पर चुनाव लड़ा. वह 63 पर जमानत तक नहीं बचा पाई थी. उसे केवल 4.26 फीसदी वोट मिले थे. 


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