(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
Delhi Ordinance Row: सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज के बाद अब लॉ स्कोलर का आर्टिकल वायरल, अध्यादेश को बताया है 'असंवैधानिक'!
Delhi Ordinance Controversy: प्रतिनिधि लोकतंत्र और जिम्मेदार शासन संवैधानिक व्यवस्था के स्तंभ हैं, लेकिन केंद्र का अध्यादेश उसी को कमजोर करता है.
Delhi News: देश की राजधानी दिल्ली में केंद्र के अध्यादेश (Delhi Ordinance Row) को लेकर सियासी लड़ाई के साथ वैचारिक संघर्ष भी जारी है. यही वजह है कि एक दिन पहले सुप्रीम कोर्ट में अवकाश प्राप्त न्यायाधीश मदन बी लोकुर का एक लेख इस मसले पर आने के बाद गुरुवार को एक वरिष्ठ अधिवक्ता गौतम भाटिया (Gautam Bhatia) का लेख भी सामने आया है. जस्टिस लोकुर के लेख पर दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने अपनी प्रतिक्रिया दी थी. वहीं गौतम भाटिया के लेख पर आप ने रिट्वीट करते हुए लिखा है कि केंद्र का अध्यादेश प्रतिनिधि लोकतंत्र और जिम्मेदार शासन के सिद्धांतों को कमजोर करता है, जो हमारी संवैधानिक व्यवस्था के स्तंभ हैं. अध्यादेश पूरी तरह से असंवैधानिक है.
वहीं वरिष्ठ अधिवक्ता गौतम भाटिया ने अपने लेख मैनिफेस्टली आब्रिट्रेरी क्लियरली अनकॉंस्टीट्यूशनल में कहा है कि 2015 में आम आदमी पार्टी द्वारा दिल्ली विधानसभा चुनाव में महत्वपूर्ण अंतर से जीत हासिल करने के तुरंत बाद केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र की सेवाओं को अपने नियंत्रण लेने के लिए एक अधिसूचना जारी की. इसके बाद दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार के बीच आठ साल की लंबी कानूनी लड़ाई छिड़ गईए जिसमें भारत के सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष चार दौर की मुकदमेबाजी शामिल थी. मई 2023 में कोर्ट ने दिल्ली सरकार के पक्ष में निर्णायक फैसला सुनाया.
शीर्ष अदालत के फैसले से भी समस्या का अंत नहीं हुआ. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आठ दिनों बाद केंद्र सरकार ने भारत के राष्ट्रपति के माध्यम से 1991 के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार अधिनियम में संशोधन कर एक अध्यादेश लागू जारी कर दिया. अध्यादेश के जरिए केंद्र सरकार ने न्यायालय के फैसले को पलट दिया. दिल्ली विधानमंडल को उसके अपने अधिकार से वंचित कर दिया. साथ ही एक समानांतर निकाय की स्थापना की, जिसमें मुख्यमंत्री और दो नौकरशाह शामिल होंगे, जो दिल्ली के संबंध में सेवा संबंधी निर्णय लेने के लिए जिम्मेदार होंगे.
अब SC के रुख का इंतजार है
साफ है कि अध्यादेश प्रतिनिधि लोकतंत्र और जिम्मेदार शासन के सिद्धांतों को कमजोर करेगा, जो हमारी संवैधानिक व्यवस्था के स्तंभ हैं. अध्यादेश पूरी तरह से मनमाना है. इसके पीछे ऐसा कोई प्रभावी तर्क नहीं है जो दिल्ली से केंद्र को सत्ता के हस्तांतरण को उचित ठहरा सके. लेखक गौतम भाटिया की मानें तो अध्यादेश पूरी तरह से असंवैधानिक है. यह देखना बाकी है कि जब इस अंतहीन लड़ाई पर फैसला देने के लिए पांचवीं बार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाएगा तो परिणाम क्या होगा.
दिल्ली के CM ने क्या लिखा?
बता दें कि पूर्व जस्टिस मदन बी लोकुर के लेख पर दिल्ली मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने बुधवार को लिखा था कि उनका यह लेख केंद्र के अध्यादेश की असंवैधानिकता को उजागर करता है. हमारी सरकार हमेशा से यह कहती आई कि अध्यादेश लोकतांत्रिक मूल्यों और गैर संवैधानिक है. उसी का जिक्र पूर्व न्यायाधीश लोकुर ने अपने एक लेख में किया है. उन्होंने अपने लेख में लिखा है कि केंद्र सरकार की ओर से जारी अध्यादेश दिल्ली के लोगों के निर्वाचित प्रतिनिधियों और संविधान पर एक संवैधानिक धोखाधड़ी है.
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