Happy Lohri 2023: राजधानी दिल्ली में लोहड़ी और मकर संक्राति पर्व को लेकर बाजार सज गए हैं. यहां त्योहार से पहले ही बाजार में लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी है. राजधानी दिल्ली के बाजारों में लोग लोहड़ी का सामान खरीदने के लिए आ रहे हैं. जिन दुकानों में लोहड़ी का सामान मिल रहा है वहां लोगों का जमावड़ा लगातार बना हुआ है. इस पर्व में तिल के लड्डू, मूंगफली, गजक, अलसी के लड्डू, खजूर समेत अन्य तरह की चीजें दुकानों पर सजी हुई हैं. लोहड़ी और मकर संक्रांति के अवसर पर तिल के लड्डू 240 रुपये किलो, मूंगफली 140 से 160 रुपये किलो के हिसाब से मिल रही है. वहीं तिलपटी 240 रुपये किलो, गुड़पट्टी 200 से 240 रुपये किलो, रेवड़ी 200 रुपए किलो, गजक 240 से 280 रुपये किलो, पॉप कॉर्न 50 रुपये पैकेट, मुरमुरे का लड्डू 140 से 160 रुपये किलो, चिड़वा 100 से 120 रुपये प्रति किलो के हिसाब से मिल रहा है.
लोहड़ी का त्योहार आज
मकर संक्रांति के एक दिन पहले मनाया जाने वाला पर्व लोहड़ी, मकर संक्रांति की तरह ही उत्तर भारत में मनाया जाने वाला खास त्योहार है. इसे पूरे पंजाब सहित हरियाणा और दिल्ली में विशेष धूम-धाम के साथ मनाया जाता है. ये पर्व खासकर सिख समुदाय के लोग मनाते हैं. लोहड़ी के मौके पर घर के बाहर खुली जगह पर लकड़ी और उपलों से आग जलाई जाती है, जिसके चारों तरफ लोग परिक्रमा करते हैं. लोहड़ी पर नई फसल की कटाई करने की परंपरा है और उस कटी हुई फसल का पहला भोग अग्नि को समर्पित कर अच्छी फसल के लिए धन्यवाद किया जाता है. इसके बाद आग के चारों तरफ चक्कर लगाकर सभी लोग अपने सुखी जीवन की कामना करते हैं. इस दौरान लोग गीत गाते हैं और ढोल-नगाड़ों के साथ नाचते-गाते हैं. लोहड़ी के दिन आग में तिल, गुड़, गजक, रेवड़ी और मूंगफली चढ़ाई जाती हैं.
किसानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है ये त्योहार
मकर संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाती है और इससे एक दिन पहले 13 जानवरी को लोहड़ी का पर्व मनाया जाता है. इस बार लोहड़ी की पूजा का शुभ मुहूर्त रात 8 बजकर 57 मिनट पर है. लोहड़ी फसलों से जुड़ा हुआ है, इसलिए यह त्योहार किसानों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. इसे किसानों का नव वर्ष भी माना जाता है. लोहड़ी त्यौहार के उत्सव के साथ फसल के मौसम की शुरुआत को चिह्नित करने की यह एक पुरानी परंपरा है.
क्यों मनाई जाती है लोहड़ी?
लोहड़ी का पर्व क्यों मनाया जाता है, इसे लेकर कई तरह की मान्यताएं प्रचलित हैं. ऐसी ही एक मान्यता है दुल्ला भट्टी की कहानी, इस त्योहार पर दुल्ला भट्टी की कहानी को खास रूप से सुना जाता है. मान्यता के अनुसार मुगल काल में अकबर के शासन काल के दौरान दुल्ला भट्टी पंजाब में ही रहते थे. कहा जाता है कि दुल्ला भट्टी ने पंजाब की लड़कियों की उस वक्त रक्षा की थी जब संदल बार में लड़कियों को अमीर सौदागरों को बेचा जा रहा था. वहीं एक दिन दुल्ला भट्टी ने इन्हीं अमीर सौदागरों से लड़कियों को छुड़वा कर उनकी शादी हिन्दू लड़कों से करवाई थी, जिसके बाद दुल्ला भट्टी को नायक की उपाधि से सम्मानित किया गया और हर साल हर लोहड़ी पर ये कहानी सुनाई जाने लगी. लोहड़ी को लाल लोई के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन और रात में सिख और पंजाबी समुदाय के लोग आग जलाते हैं और उसमें गेहूं की बालियां चढ़ाते हैं.
लोहड़ी को माना जाता है सर्दियों का अंत
लोहड़ी की रात को साल की सबसे लंबी रात माना जाता है, जिसके बाद दिन बड़े होने लगते हैं और रातें छोटी होने लगती हैं. लोहड़ी को सर्दियों के मौसम के अंत का प्रतीक भी माना जाता है, जैसे ही सूर्य उत्तर की ओर बढ़ता है उसे उत्तरायण कहते हैं जो लंबी शरद ऋतु या शीतकाल के बाद होता है. वहीं लोग लोहड़ी को सूर्य देवता और अग्नि के त्योहार के रूप में मनाते हैं. यह माघी से एक रात पहले मनाया जाता है, जिसे मकर संक्रांति के रूप में भी जाना जाता है और लूनिसोलर विक्रमी कैलेंडर के सौर भाग के अनुसार और आमतौर पर मकर संक्रांति से एक दिन पहले पड़ता है. हिंदू कैलेंडर के अनुसार लोहड़ी 'पौष' के आखिरी दिन सर्दियों के अंत और 'माघ' की शुरुआत का प्रतीक है. वहीं आचार्य बृजमोहन शर्मा के अनुसार इस बार मकर संक्रांति 15 जनवरी को मनाई जायेगी. इस बार मकर राशि में सूर्य नारायण 14 जनवरी को रात्रि में लगभग 08:44 में प्रवेश करेंगे और उस समय सूर्य अस्तंगमित होंगे तो 15 जनवरी को प्रातः काल ही मकर संक्रांति पर शास्त्र सम्वत है. लोहड़ी पर पंजाब, जम्मू और कश्मीर के जम्मू क्षेत्र और हिमाचल प्रदेश में एक दिन का आधिकारिक अवकाश है.