Lok Sabha Elections: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी को 2024 में सत्ता से बेदखल करने के लिए बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की अगुवाई में 23 जून को विपक्षी एकता के लिए बड़ी बैठक होने जा रही है, जिसमें कांग्रेस (Congress) सहित सभी विपक्षी दलों को शामिल होने का निमंत्रण दिया गया है. दिलचस्प यह है कि विपक्षी एकता कायम होने से ठीक पहले दिल्ली से लेकर पटना तक में टूट-फूट का दौर शुरू हो गया है. दिल्ली में जहां आम आदमी पार्टी (AAP) कांग्रेस को सीधे तौर पर आंख दिखा रही है, वहीं पटना में महागठबंधन सरकार से जीतन राम मांझी (Jitan Ram Manjhi) की पार्टी अलग हो गई है. इसको लेकर सवाल हो रहे है कि विपक्षी दलों में इकरार होने से पहले ही दिल्ली से लेकर पटना तक में टूट-फूट और टकराव का शुरू हो गया है. ऐसे में यह पार्टियां 2024 लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मुकाबला कैसे कर पाएंगी?
दिल्ली-पंजाब और गुजरात में क्या होगा समझौते का सूत्र?
दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है. दिल्ली में 7 और पंजाब में 13 लोकसभा की, यानी दोनों ही राज्यों में 20 सीटें हैं. कांग्रेस का इन दोनों ही राज्यों में जनाधार है. यहां के स्थानीय नेताओं ने आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन करने से पहले ही मना कर दिया है. उनकी ओर से लगातार कहा जा रहा है कि आम आदमी पार्टी के साथ समझौता करने से कांग्रेस को नुकसान होगा. गुजरात में लोकसभा की 26 सीटें हैं. कांग्रेस नेताओं का तर्क है कि गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान आप के चुनावी मैदान में आने के कारण ही कांग्रेस को भारी नुकसान हुआ था. आप की एंट्री के कारण बीजेपी को जीत मिली.
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और टीएमसी आमने सामने
पश्चिम बंगाल में कांग्रेस और टीएमसी आमने सामने हैं. प्रदेश स्तर पर कांग्रेस नेताओं की ओर से लगातार ममता बनर्जी सरकार का विरोध किया जा रहा है. ऐसे में वहां पर कांग्रेस और टीएमसी के बीच भी समझौता को लेकर जानकार सवाल खड़े कर रहे हैं, क्योंकि बंगाल में टीएमसी के सामने अभी ऐसी कोई पार्टी नहीं है, जिसकी जमीनी पकड़ मजबूत हो. बंगाल में लोकसभा की 42 सीटें हैं.
यूपी में टकराव के बाद कैसे होगा इकरार
पिछले नौ साल से यूपी में कांग्रेस, सपा और बसपा गठबंधन को लेकर कई प्रयोग हुए, लेकिन मोदी और उसके बाद योगी के सामने विपक्ष का कोई प्रयोग सफल नहीं हो पाया. पहले सपा और कांग्रेस के बीच 2017 विधानसभा में गठबंधन हुआ था. राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने एक साथ वोट मांगे, लेकिन बीजेपी की रणनीति के सामने इन दोनों का चेहरा फेल रहा. 2019 के लोकसभा चुनाव में बुआ और बबुआ यानी अखिलेश यादव और मायावती के बीच गठबंधन हुआ, लेकिन मोदी लहर में यह गठबंधन भी असफल रहा. चुनाव होते ही इनके बीच टकराव शुरू हो गया. ऐसे में सवाल यह है कि नए सिरे से इनके बीच अब कैसे इकरार हो पाएगा? हालांकि जानकारों का कहना है कि राजनीति में कुछ भी संभव है. यूपी में लोकसभा की कुल 80 सीटें हैं, जिसमें ज्यादातर सीटें भाजपा के खाते में हैं.
बिहार से ही बिखराव, कैसे दे पाएंगे सियासी संदेश
विपक्षी एकता की शुरुआत 23 जून को बिहार के पटना से होनी है. इससे पहले ही महागठबंधन से जीतन राम माझी की पार्टी अलग हो गई. इससे पहले उपेंद्र कुशवाहा भी जेडीयू से अपना नाता तोड लिया था. जानकारों का कहना है कि बिहार से ही बिखराव शुरू हो गया है तो देश भर में विपक्षी एकता का संदेश कैसे जा पाएगा. बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटे हैं, जिसको लेकर महागठबंधन के बीच समझौता होना है. जबकि एनडीए की ओर से विपक्षी एकता में लगातार सेंध लगाने की कोशिश की जा रही है. इसके लिए राजनीति तौर पर भी मैसेज देने की कोशिश है, लेकिन विपक्षी एकता को लेकर होने वाली बैठक के बाद बनने वाली रणनीति को भी देखना दिलचस्प होगा.
'विपक्षी एकता पर नहीं पड़ेगा असर'
वरिष्ठ पत्रकार अनिल चमड़िया का कहना है कि बिहार में जीतन राम मांझी का जमीनी स्तर पर वजूद नहीं है. एक सीट पर भी अपनी ताकत से जिताने की स्थिति में नहीं है. बिहार सरकार से अलग होने से विपक्षी एकता पर कोई असर नहीं पड़ेगा. अलग होना इसलिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि जब विपक्षी एकता को लेकर बैठक होने जा रही है, उससे ठीक पहले अलग होने से एक सियासी संदेश तो जाता ही है. कांग्रेस आज खुद को रिवाइव कर रही है. ऐसी स्थिति में वह आम आदमी पार्टी के किसी शर्त को माने, यह संभव नहीं है. आने वाले दिनों में कांग्रेस की अच्छी स्थिति होगी. ऐसे में कांग्रेस के लिए पंजाब और दिल्ली जैसे राज्यों को छोड़ना संभव नहीं है.
'ऐसे करने पर तो कांग्रेस खत्म हो जाएगी'
वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह के अनुसार, देश में ज्यादातर लोकल पार्टियां, क्षेत्रिय पार्टियां अपने स्टेट तक सीमित हैं. ऐसे में इनके बीच तालमेल हो पाना असंभव हैं. विपक्ष में एक मात्र कांग्रेस ही राष्ट्रीय पार्टी है, जिसका जनाधार लगभग हर राज्य में है. ऐसे में यदि आप की ओर से यह कहा जाए कि कांग्रेस दिल्ली और पंजाब छोड दे. बंगाल में ममता बनर्जी कहे कि कांग्रेस यहां चुनाव में न उतरे. यह कैसे संभव होगा? बिहार में विपक्षी एकता को लेकर होने वाली रैली केवल कहने भर की है. इससे बहुत ज्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती. क्योंकि कोई भी पार्टी अपने हिस्से में बांटने को तैयार नहीं है. सभी यहीं चाहते हैं कि कांग्रेस हमारे स्टेट दूर रहे, जो कांग्रेस के लिए संभव नहीं है. ऐसे तो कांग्रेस खत्म हो जाएगी. पहले से कांग्रेस के साथ जिसका गठबंधन है, वही आगे चलता रहेगा. यह जरूर है कि विपक्षी एकता के बीच एनडीए का भी कुनबा बढ़ने जा रहा है. यूपी में ओमप्रकाश राजभर, आंध्रा में चंद्रबाबू नायडू, बिहार में जीतन राम मांझी, उपेंद्र कुशवाहा सहित अन्य राज्यों में भी क्षेत्रिय दलों को एनडीए में शामिल करने की तैयारी चल रही है.
'एक दूसरे पर दबाव बना रहीं तीनों पार्टियां'
कांग्रेस को करीब से जानने वाले पत्रकार राशिद किदवई का कहना है कि विपक्षी एकता की सबसे बड़ी परेशानी आम आदमी पार्टी और ममता बनर्जी की पार्टी है. इन दोनों ही पार्टियों की कांग्रेस के साथ समझौता नहीं हो पा रहा, जिसके कारण यह स्थिति बनी हुई है, लेकिन पीएम नरेंद्र मोदी को 2024 में सत्ता से बाहर करने के लिए इन्हें मजबूरी में साथ आना पड़ेगा. इसके लिए ये तीनों ही पार्टियां एक दूसरे पर दबाव बना रही हैं, जिससे वह अधिक से अधिक राजनीतिक फायदे में रहें.
सत्यपाल मलिक ने विपक्षी एकता पर क्या कहा?
विपक्षी एकता की बात करने वाले और सीट बंटवारे को लेकर फॉर्मूला बताने वाले पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक विपक्षी एकता में पडी फूट पर किसी प्रकार की प्रतिक्रिया देने से साफ तौर पर मना करते हैं. उनका कहना है कि इस विषय पर मेरा बोलना कतई उचित नहीं है. जब भी मौका आएगा मैं जरूर बोलूंगा.
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