Mahmood Madani: धार्मिक मदरसों के लिए एनसीपीसीआर की गाइडलाइन पर सुप्रीम कोर्ट की रोक का जमीअत उलमा के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने स्वागत किया और उन्होंने कहा कि एनसीपीसीआर चेयरमैन ने अपनी हद को पार किया था.


जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने सुप्रीम कोर्ट के उस अंतरिम आदेश का स्वागत किया है जिसमें राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) द्वारा मदरसों की मान्यता रद्द करने और स्वतंत्र मदरसों में शिक्षा ग्रहण करने वाले बच्चों को स्कूलों में प्रवेश दिलाने के दिशानिर्देश पर रोक लगा दी गई है. मौलाना मदनी ने इस फैसले को 'ठंडी हवा का झोंका' बताया, लेकिन साथ ही कहा कि हमारा संघर्ष अभी लंबा है.


सुप्रीम कोर्ट ने आज मदरसों के मामले पर दो अहम फैसले दिए हैं हालांकि यह फैसला अंतरिम है. पहला फैसले ने केंद्र और राज्य सरकारों के सरकारी मदरसों को बंद करने के फैसले पर रोक लगा दी. राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) ने जून महीने में राज्यों को इससे संबंधित सिफारिश की थी. केंद्र की तरफ से इसको लेकर राज्यों को एक्शन लेने को कहा गया था. दूसरा फैसला कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और त्रिपुरा सरकार के उस आदेश पर भी रोक लगाई, जिसमें मदरसों में पढ़ने वाले स्टूडेंट्स का सरकारी स्कूल में ट्रांसफर कराना था. 


एबीपी न्यूज़ से खास बातचीत में मौलाना महमूद मदनी ने एनसीपीसीआर के चेयरमैन प्रियांक कानूनगो के हालिया बयानों और कार्रवाइयों की आलोचना करते हुए कहा कि ऐसा लगता है कि उन्होंने तथ्यों से आंखें मूंद ली हैं. वह एक ओर, इस्लामी पुस्तकों के पाठ्यक्रम पर आपत्ति जताते हैं, जिसे कुछ लोग अपने विचार से सही भी मानते होंगे, हालांकि सच्चाई इसके विपरीत है. इस विषय पर अगर वह बैठकर संवाद करेंगे तो निश्चित रूप से संतुष्ट हो जाएंगे लेकिन उनका रवैया आक्रामक और एकतरफा प्रतीत होता है.


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