New Delhi: दिल्ली में इस साल नए शैक्षणिक सत्र के शुरुआत के साथ तीन लाख ऐसे छात्रों की पहचान की गई है, जो क्लास से गैरहाजिर रहते हैं. यह संख्या दिल्ली के स्कूलों के कुल छात्रों की संख्या का 18 फीसदी है. ये छात्र या तो लगातार सात दिन स्कूल नहीं आए या 30 में से 20 दिन गैरहाजिर रहे. एक अप्रैल से 20 अक्तूबर तक ऐसे तीन लाख 48 हजार 344 छात्रों की पहचान की गई है. यह आंकड़ा जुटाया है दिल्ली के बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने. इसका मकसद दिल्ली के स्कूलों में इस तरह की गैरहाजिरी और ड्राप आउट रेट को कम करना है.


क्या कहते हैं आंकड़े


आयोग की ओर से जुटाए गए आंकड़ों के मुताबिक गैरहाजिर रहने वाले छात्रों में से करीब 72 फीसदी छात्र 11 से 16 साल की आयु के हैं. वहीं 11 से 13 साल आयु के बच्चों की संख्या एक लाख 35 हजार 558 है. यह संख्या 19 फीसदी के बराबर है. इस तरह गैरहाजिर रहने वालों में 55 फीसदी लड़के और 45 फीसदी लड़कियां हैं. दिल्ली में नए शैक्षणिक सत्र की शुरुआत इस साल एक अप्रैल से हुई है. कोरोना की वजह से लगाई गई पाबंदियों के बाद से इस साल हर कक्षा के क्षात्रों के लिए उपस्थिति को अनिवार्य बनाया गया है. 


इंडियन एक्सप्रेस' की खबर के मुताबिक अब तक जो तीन लाख 48 हजार छात्र स्कूलों में गैरहाजिर मिले हैं, उनमें से 73 हजार 513 के परिवार से बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने टेलीफोन पर संपर्क किया है. इसमें इन बच्चों के स्कूल से गैरहाजिर रहने के कारणों का पता चला है. इसमें 41 फीसदी छात्र बीमारी की वजह से स्कूल से गैरहाजिर रहे. वहीं 25 फीसदी अभिभावकों ने कहा कि वे अपने बच्चों के साथ गांव चले गए थे. वहीं करीब 11 फीसदी छात्रों के परिजनों ने कहा कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि उनका बच्चा स्कूल नहीं जा रहा है. वहीं एक फीसदी परिजनों ने कहा कि उनके परिवार में किसी की मौत की वजह से उनका बच्चा स्कूल नहीं जा रहा है. 


क्या हैं स्कूल से एबसेंट रहने की प्रमुख वजहें


इसी तरह 0.3 फीसदी बच्चे अपने माता-पिता की मौत, 0.22 फीसदी बच्चे बाल मजदूरी, 0.1 फीसदी बच्चे शादी और 0.1 फीसदी बच्चे यौन उत्पीड़न या मारपीट की वजह से स्कूल नहीं गए. जिन 73 हजार से अधिक बच्चों के माता-पिता से संपर्क किया गया, उनमें से 33 हजार 131 बच्चे हस्तक्षेप के बाद स्कूल लौट आए. इनमें 87 फीसदी वो बच्चे थे, जिनके माता-पिता ने यह बताया था कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं है कि उनका बच्चा स्कूल नहीं जा रहा है. वहीं बाल मजदूरी और बाल विवाह वाले बच्चों के स्कूल वापस लौटने की दर सबसे कम रही. बाल मजदूरी के 144 मामलों में से 11 बच्चे स्कूल लौटे तो बाल विवाह के 51 मामलों में से एक बच्चा ही स्कूल लौटा. 


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